जानिये निषाद पार्टी का भाजपा गठबंधन के साथ जुड़ने का महत्वपूर्ण सच-एकलव्य मानव संदेश की विशेष रिपोर्ट

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) एडिटोरियल रिपोर्ट, 2 अप्रैल 2019। जानिये निषाद पार्टी का भाजपा गठबंधन के साथ जुड़ने का महत्वपूर्ण सच-एकलव्य मानव संदेश की विशेष रिपोर्ट।
    गोरखपुर की पावन भूमि पर निषाद वंश में जन्मे महान दार्शनिक और मजबूत नेतृत्वकर्ता महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी के द्वारा निषाद (N.I.S.H.A.D.) पार्टी यानी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल पार्टी की स्थापना, विकास के अंतिम छोर, यानी हाशिये पर पड़े, इस देश के मूलवाशी समाज के, मजबूत उत्थान के लिए, राजनीतिक हथियार के रूप में 16 अगस्त 2016 में की गई थी। इससे पहले राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के रूप में एक बड़ा कैडर बेस्ड संगठन खड़ा किया गया 13 जनवरी 2013 को प्रयागराज/इलाहाबाद स्थित गुह्यराज निषाद राज के किले पर समाज के सर्वांगीण विकास की सोच को लेकर एक सपथ के द्वारा।
    निषाद पार्टी उत्तर प्रदेश के साथ सम्पूर्ण देश और दुनिया के निषाद वंश की 576 जातियों के कल्याण का मिशन लेकर चल रही है। निषाद वंश की जातियों की स्थिति आज़ाद भारत में आज बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंच गई है। इसका कल्याण केवल मजबूत राजनीतिक भागेदारी के माध्यम से ही हो सकता है। निषाद अपने आरक्षण को तर्क संगत बनाने के लिए पूरे भारत में आंदोलन चलाते रहते हैं, लेकिन ऐसा कोई संगठन या पार्टी अभी तक नहीं बन पा रही थी जो इनके अधिकारों के लिए मजबूत होकर लड़ सके। महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी के 6 साल का परिणाम है कि आज सभी दल निषाद नाम को लेकर गंभीर होने लगे हैं।
     निषाद पार्टी उत्तर प्रदेश में मझबार, तुरैहा, गोंड़ के परिभाषित आरक्षण को लागू कराने के लिए धारना, प्रदर्शन और रेल रोको आंदोलन लगातार करती रही है। इटावा का एक लाल वीर अखिलेश निषाद, समाज वादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार के समय 7 जून 2015 को गोरखपुर के कसरबल में रेल रोको आंदोलन के दौरान पुलिस गोली से शहीद भी हुआ। 29 दिसम्बर को गाजीपुर काण्ड की घटना सभी को याद है, एक निषाद को जेल में बंद रहते हुए निषाद आरक्षण के लिए अपनी जान भी देनी पड़ी। 7 मार्च का गोरखपुर पुलिस अत्यचार अभी भी लोगों को हिला देता है।
   इन आंदोलनों से ही दिसम्बर 2016 में अखिलेश यादव सरकार को 17 जातियों के आरक्षण का शासनादेश जारी करना पड़ा था। निषादों के आरक्षण के लिए 29 मार्च 2017 और 8 फरवरी 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी स्टे हटाकर स्वीकृति ही दे दी थी। लेकिन उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार इस को लागू नहीं कर पा रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सपथ पत्र भी दाखिल नहीं कर रही थी। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को डर था कि हमारे द्वारा इस आरक्षण को अगर लागू भी कर दिया जाता है तो इसका श्रेय निषाद पार्टी या अन्य ले सकते हैं। उधर सपा भी पूरे मन से निषाद आरक्षण को लागू कराने के लिए कभी भी तैयारी नहीं रही, जबकि यह पार्टी 1993 से लेकर आज तक निषाद वोट के सहारे सबसे ज्यादा लाभ उठाती रही है। बसपा की मायावती जी निषाद आरक्षण को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा समझती रही हैं। जबकि बसपा की नींव में सबसे ज्यादा निषाद वंश का ही योगदान रहा है। कांग्रेस ने 70 सालों में खुद ही इसको कभी गंभीरता से नहीं लिया, इसका उदाहरण मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बनी नई सरकारें हैं, जो माझी आदि के आरक्षण पर अभी तक कोई प्रगति नहीं कर सकी हैं।
     इसलिए निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी ने एक मौका देखा कि जब सभी पार्टियों ने निषादों को केवल बंधुआ और बिकाऊ वोट बैंक के रूप अब तक पहचाना है तो क्यों न एक बार भापजा के साथ जाकर निषाद वंश को उसका आरक्षण रूपी हक, जल्दी से दिलाकर सम्पूर्ण समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया जाय। क्योंकि राजनीति में कोई भी स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता है, मित्रता करके भी समाज का कल्याण किया जा सकता है।  क्योंकि सपा, बसपा गठबंधन निषाद पार्टी को धोखे में रखकर पटकनी देने की फिराक में था। इसीलिए गठबंधन के पोस्टर बैनरों में निषाद पार्टी को की महीने बीतने पर भी उचित सम्मान नहीं मिल रहा था। गठबंधन में कहां से चुनाव लड़ना है, यह वर्तमान लोकसभा चुनाव के फार्म भरने के दो चरण निकलने तक किलियर नहीं किया जा रहा था। और जैसे ही निषाद पार्टी ने 29 मार्च 2019 को गठबंधन से अलग होने की घोषणा की उसके 12 घंटे के भीतर ही गोरखपुर और कानपुर की लोकसभा सीटों पर निषादों को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। जो सपा की धोका देने की नीति को दर्षाता है। क्योंकि सपा को गोखपुर से ईं. प्रवीण कुमार निषाद का सांसद बनाना कस्ट दे रहा था। ईं. प्रवीण निषाद लगातार निषाद पार्टी के लिए निषाद पार्टी सांसद की तरह कार्य करने में व्यक्त रहे, नाकि सपा के गुलाम सांसद की तरह।   
   अब जो भाजपा के साथ गठबंधन हो रहा है वह दोनों ही पक्षों को लाभ देने के लिए हो रहा है, नाकि निषाद पार्टी भाजपा में मिलने जा रही है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े लगभग 13 प्रतिशत वोट वाले समाज को केवल संघर्ष के लिए ही लगाकर रखने से भला नहीं हो सकता है। दोस्ती से दोनों पक्षों को लाभ मिलता है और समाज तरक्की कर सकता है। किसी पार्टी में अन्दर रहकर नेता का भला होता है, जो अब तक होता रहा है, पार्टियों के गठबंधन से पूरे समाज का भला होता है
   निषाद पार्टी की भाजपा से गठबंधन में जो प्रमुख शर्तें हैं वो इस प्रकार हैं-
1.निषाद आरक्षण को पूरे उत्तर प्रदेश मेंलागू कराने के लिए,  दिसम्बर 2016 के शासनादेश और 29 मार्च 2017 व 8 फरवरी 2019 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऑर्डर के आधार पर बिना चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के तत्काल प्रमाण पत्र जारी करने की कार्यवाही की जाय।
2.निषाद आरक्षण के आंदोलनकारियों पर अब तक लगे सभी केस वापस लेने के साथ, जेल में बंद सभी आंदोलनकारियों को बिना शर्त रिहा किया जाय।
3.निषाद पार्टी को गठबंधन के तहत 2 सीटों पर अपने चुनाव चिन्ह और गोरखपुर के वर्तमान सांसद ईं.प्रवीण कुमार निषाद के सम्मान को बरकरार रखा जाय। जिससे देश की संसद में सभी निषादों की आवाज बुलंद होती रहे। मजबूत वकील के रूप में महामना डॉ. संजय कुमार निषाद हक की आवाज संसद में रखने पहुंच सकें।
   इन तीनों शर्तों में पहले सम्पूर्ण निषाद के कल्याण को ध्यान में रखा गया है और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उस पर सकारात्मक सहयोग का भरोसा दिया है। जल्दी ही निषाद वंश को सुखद समाचार भी मिलेगा। साथ ही निषाद पार्टी, राष्ट्रीय पार्टी और सत्ता के करीब रहने से निषादों के कल्याण के ज्यादा रास्ते खोलने में सहायक भी बन पाएगी।
    सम्पूर्ण निषाद वंश का कल्याण अपने नेता और संघर्ष के महानायक महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी की बात पर भरोसा करने और उनका मजबूती से साथ देने से ही होगा।
  जय निषाद राज
जसवन्त सिंह निषाद
(संपादक, प्रकाशक)
एकलव्य मानव संदेश
हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र
एवं
Eklavya Manav Sandesh
(Digital Chainal)
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश