अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) एडिटोरियल रिपोर्ट, 24 अप्रैल 2019। इस खबर पूरी खबर को जरूर घ्यान से एक बार पढ़ें-
मैंने कल 23 मार्च 2019 को शाम फेसबुक और व्हाट्सएप पर निषाद आरक्षण के विषय में भाजपा के द्वारा अभी से धोखा देने का एक नोट जारी किया था, वह मेरा निजी विचार था। क्योंकि में निषाद पार्टी का राष्ट्रीय सचिव हूँ और साथ में निषाद आरक्षण के लिए अपने मीडिया माध्यम एकलव्य मानव संदेश के माध्यम से सहयोग करता रहता हूँ। मैं किसी को बहकाने के लिए कार्य नहीं कर सकता हूँ।
निषाद आरक्षण की सबसे बड़ी विरोधी या दुश्मन बहुजन समाज पार्टी है, बहुजन समाज पार्टी कभी भी नहीं चाहती है कि निषाद आरक्षण प्राप्त करें। और इसीलिए वह कोर्ट और विधानसभा व संसद में भी हमारे आरक्षण का अपनी पूरी क्षमता से विरोध करने में कभी भी नहीं चूकती है।
समाजवादी पार्टी भी निषादों को आरक्षण पर 1993 से लगातार झुन झुना ही थमाती रही है। 2005 और 2016 में इस पार्टी ने निषाद आरक्षण आधा अधूरा ही लागू करने के लिए कार्य किया। इसके किसी भी सांसद ने निषाद आरक्षण के लिए संसद में कभी भी काम रोको प्रस्ताव नहीं लाया। राज्य सभा में मा.विसम्भर प्रसाद निषाद जी के निषाद आरक्षण के निजी प्रस्ताव का इसके सांसदों ने दोनों बार साथ नहीं दिया। और जब 2016 का उत्तर प्रदेश में निषाद आरक्षण लागू करने का जी.ओ. जारी किया गया तो वह भी अपनी संभावित हार को देखकर जारी कर निषादों को लुभाने और भ्रमित करने के लिए किया गया। जिस पर जब जनवरी 2017 में अम्बेडकर ग्रंथालय आदि द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे लिया गया तो उस स्टे के समर्थन में अखिलेश यादव सरकार ने अपने सरकारी महाधिवक्ता द्वारा यह लिख कर एफिडेविट लगाया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने निषादों सहित 17 जातियों को प्रमाण पत्र जारी नहीं करने का निर्णय लिया है। और इस आशय का प्रपत्र भी जनवरी में ही सभी जिलाधिकारियों को भेज दिया गया, जिससे 2016 के जी.ओ. के आधार पर 17 जातियों को प्रमाण पत्र जारी नहीं किये जा सके।
कांग्रेस निषाद आरक्षण पर हमेशा सबसे ज्यादा धोखा देने वाली पार्टी रही है। इस पार्टी ने निषाद आरक्षण पर जितने भी आयोग बने उनमें से किसी की भी रिपोर्ट कभी भी लागू ही नहीं होने दी यहाँ तक की ओबीसी आरक्षण भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आधा अधूरा ही लागू किया और लगभग 54 प्रतिशत ओबीसी को केवल 27 प्रतिशत आरक्षण वह भी क्रीमी लेयर के साथ लागू किया, जिसके परिणाम कोई बेहतर नहीं रहे और आज भी देश भर में ओबीसी का सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत के लगभग ही है यानी 27 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण सपना ही बना रह गया है।
भाजपा सरकार भी अभी तक निषाद आरक्षण पर कोई कार्य नहीं कर सकी थी। लेकिन निषाद पार्टी के भाजपा के साथ हुए वर्तमान गठबंधन में यह तय किया गया है कि निषाद आरक्षण को लागू कराने के लिए भाजपा की उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकारें जरूरी कदम जल्दी ही उठाएंगी। क्योंकि इस समय मामला चुनाव आचार संहिता का है तो जो भी कदम इस समय उठाये जा सकते हैं, उन पर कार्य जारी है। और जल्दी ही निषाद आरक्षण लागू कराने के लिए निषाद पार्टी भी अपना पूरा जोर भाजपा पर लगाती रहेगी।
निषाद आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जो भी पक्ष अब तक पैरवी कर रहे हैं उनकी भी लापरवाही सामने आ रही है, कि 29 मार्च 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के शर्तानुसार अनुसूचित जनजाति के 17 जातियों के प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश को वे 6 माह के अन्दर सरकार से सभी जिलों को नहीं भिजवा पाए औऱ अगर 6 माह में उत्तर प्रदेश सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के समर्थन में जी.ओ. जारी नहीं कर सकी थी तो सरकार के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की अवमानना का केश लगाया जा सकता था, जो ये नहीं लगा पाए।
विभिन्न पार्टियों के निषाद नेताओं ने उन पार्टीयों में रहकर केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि ही की है। इन सपा, बसपा, कांग्रेस, भाजपा, के नेताओं ने अपनी पार्टियों में कभी भी निषाद आरक्षण को प्राथमिकता नहीं दी। पूर्व में मा. मनोहर लाल वर्मा और फूलन देवी जी (दोनों का निधन या हत्या भी राजनीतिक कारणों से हो चुकी है), मा. सीताराम निषाद, मा.चौ.लालता प्रसाद निषाद जी और वर्तमान में केवल विशम्भर प्रसाद निषाद जी (राज्यसभा सांसद) जी और राम कुमार एडवोकेट कानपुर नगर के अलावा किसी भी निषाद सांसद या विधायक ने निषाद आरक्षण पर अपनी बात अपनी पार्टी में नहीं रखी। लेकिन इन सभी की बात का इनकी पार्टी में कभी कोई असर नहीं हुआ। और निषाद वंश ठगा सा रह गया।
निषाद आरक्षण पर एकमात्र नेता हैं महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जो पिछले 6 सालों से बेफिक्र सम्पूर्ण निषाद वंश को एकजुट करने के साथ निषाद आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे हैं। और 1 माह जेल में भी इसी खातिर 2015 में रह चुके हैं। सैकडों निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज होने के साथ जेल भी काट चुके हैं और आज भी गाजीपुर जेल में अर्जुन कश्यप सहित 3 लोग जेल में बंद हैं।
निषाद आरक्षण के लिए अखिलेश यादव सरकार में ही गोरखपुर और संत कबीर नगर की सीमा पर मगहर में पुलिस द्वारा चलाई गई गोली में इटावा के वीर युवा अखिलेश निषाद की जान भी चली गई और 29 नवम्बर 2018 के गाजीपुर काण्ड के बाद पुलिस अत्याचार के द्वारा जेल में बंद एक और बुजुर्ग की इलाज में लापरवाही से जेल में मौत हो गई। और मजबूरी में निषाद पार्टी के बढ़ते जनाधार से घबरा कर 2016 में जाते जाते अखिलेश यादव सरकार ने ऐसा शासनादेश जारी किया जो लागू ही नहीं हो पाया।
उत्तर प्रदेश की सरकारी मशीनरी में आज भी सपा, बसपा मानसिकता के कर्मचारी और अधिकारियों के कारण अनेकों जिलों में मझबार, तुरैहा और गोंड़ के प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं, कुछ ही जगह निष्पक्ष कर्मचारियों और अधिकारियों की मेहरबानी से प्रमाण पत्र जारी हो रहे हैं।
(इस वीडियो को एक बार पूरा नीचे दी गई लिंक को किलिक करके जरूर देखें-
https://youtu.be/iLjxfoPxmNMO )
क्योंकि बिना सत्ता के निषाद आरक्षण नहीं मिल सकता है, इसलिए निषाद एससी आरक्षण के लिए लगातार संघर्ष करने वाली निषाद पार्टी के सामने दो रास्ते हैं-
1.अपनी पार्टी की सरकार बनाना,
2.सरकार का साथी हो जाना।
क्योंकि अभी निषाद पार्टी इस मुकाम पर नहीं पहुंची है कि अपनी पार्टी की सरकार बना सके, इसलिए पार्टी अपने आरक्षण और सत्ता लाभ के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहले पीस पार्टी, समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके चुनाव लड़ चुकी है, कांग्रेस से भी अपनी शर्तों के साथ गठबंधन की बात की गई लेकिन कांग्रेस ने न पीस पार्टी को और नहीं निषाद पार्टी को अपने साथ लिया और बसपा की हठधर्मिता के कारण समाजवादी पार्टी भी धोखा देने के लिए लगी रही। गोखपुर में निषाद पार्टी के सहयोग से 2018 के लोकसभा उपचुनाव में जीत से मिली ऑक्सीजन ने सपा और बसपा के दिमाग को खराब कर दिया और दोनों ही पार्टियां निषाद पार्टी के लिए ही खत्म करने के लिए रास्ते खोजने लग गईं। इसके लिए निषाद पार्टी की जगह समाजवादी पार्टी ने निषाद प्रत्याशी पर अपना ध्यान केंद्रित कर निषाद एकता को तोड़ने की गहरी चाल बसपा और कांग्रेस के इसारे पर चली। क्योंकि निषाद पार्टी के उभार ने आज सभी पार्टीयों को ऐहसास करा दिया है कि अब निषाद वोट निषाद पार्टी के इसारे पर एकजुट हो रहा है और सपा, बसपा का बिस्तर ही समेट देगा। जो 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में हो चुका है। इसीलिए निषाद वोट को तितर बितर करने के लिए दोनों पार्टियों (सपा, बसपा) ने अपनी एकता करके निषाद पार्टी को धोखा दे दिया।
उधर आज भाजपा को भी पता है कि केंद्र में सत्ता प्राप्त करने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है क्योंकि की उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीट होने के साथ ही हिन्दू समुदाय का सबसे बड़ा वोट लगभग 13 प्रतिशत निषाद वंश का ही है और इनका साथ और उद्धार किये बिना भाजपा का कल्याण नहीं हो सकता है। इधर निषाद पार्टी को भी पता है कि बिना सत्ता के निषाद आरक्षण व अन्य सुविधाएं निषाद वंश के सम्पूर्ण कल्याण के लिए लागू नहीं कराई जा सकती हैं, तो सत्ता से 6 साल लड़ाई लड़कर भी देख लिया, अब सत्ता का साथ लेकर और देकर भी देखने में क्या बुराई है। इसी आधार पर ये गठबंधन दोनों दलों के लिए जरूरी और मजबूरी भी हो गया है।
निषाद पार्टी के इस उभार के कारण ही आज वर्तमान चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पहली बार सबसे ज्यादा 5 निषाद प्रत्याशी उतारे हैं-
1.धर्मेंद्र कश्यप-आंवला
2.साध्वी निरंजन ज्योति-फतेहपुर
3.अक्षयवर लाल गोंड़- (बहराईच-सुरक्षित)
4-ईं.प्रवीण कुमार निषाद- (संत कबीर नगर)
5-रमेश बिन्द-(भदोही)
और अब क्योंकि निषाद पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन गई है तो भाजपा नेता भी अपने मंचों से निषाद पार्टी का नाम और जय निषाद राज के नारे लगाने लगे हैं यानी निषाद वोट की कीमत पहचानने लगे हैं। आने वाले समय में निषाद आरक्षण सहित सभी मुद्दों पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को निषाद पार्टी और निषादों का साथ देना मजबूरी हो जाएगी, क्योंकि अगर भाजपा धोखा देगी तो 2022 में धोखा खाएगी भी।
क्योंकि मैं एक सम्पादक, प्रकाशक होने के साथ निषाद पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी हूँ, इसलिए निषाद वंश का उद्धार और निषाद वंश का आरक्षण ही मेरा उद्देश्य है, इसके लिए मैं किसी से समझौता नहीं कर सकता हूँ।
मैं निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी के निषाद वंश के उत्थान के लिए उठाए गए हर कदम में सहयोग करता रहूंगा। और भाजपा निषाद पार्टी के गठबंधन की जीत के लिए भी सहयोग देता रहूँगा। सम्पूर्ण निषाद समाज को चाहिए कि वह एकबार इस गठबंधन को जिताने के लिए अपनी एकजुटता बनाये रखे और निषाद आरक्षण व निषाद पार्टी विरोधी महागठबंधन व कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी शिशक्त देकर इन पार्टियों को सबक सिखाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए पूरी शक्ति लगा दे।
सभी निषाद पार्टी के समर्थक और कार्यकर्ताओं को चाहिए अपने अपने जिलों की इकाई से सम्पर्क करके अपने अपने घरों पर निषाद पार्टी के झंडे को जरूर लगायें और जय निषाद राज, निषाद पार्टी जिन्दाबाद, महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जिन्दाबाद के नारे को लिख कर अपनी शक्ति से दुश्मनों को डराते रहें, इसी में आपका कल्याण निहत है। जय निषाद राज
जसवन्त सिंह निषाद
राष्ट्रीय सचिव
निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी)
एवं
संपादक, प्रकाशक
एकलव्य मानव संदेश
1.हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र
2.ऐप (प्ले स्टोर से Eklavya Manav Sandesh लिख कर डाऊनलोड कर सकते हैं)
3.वेवसाईट
www.eklavyamanavsandesh.com
4.Eklavya Manav Sandesh यूट्यूब चैनल
5.Nishad Patrika यूट्यूब चैनल
पता-
कुआरसी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, 202002,
व्हाट्सएप नम्बर 9457311662
मोबाइल नंबर 9219506267
मैंने कल 23 मार्च 2019 को शाम फेसबुक और व्हाट्सएप पर निषाद आरक्षण के विषय में भाजपा के द्वारा अभी से धोखा देने का एक नोट जारी किया था, वह मेरा निजी विचार था। क्योंकि में निषाद पार्टी का राष्ट्रीय सचिव हूँ और साथ में निषाद आरक्षण के लिए अपने मीडिया माध्यम एकलव्य मानव संदेश के माध्यम से सहयोग करता रहता हूँ। मैं किसी को बहकाने के लिए कार्य नहीं कर सकता हूँ।
निषाद आरक्षण की सबसे बड़ी विरोधी या दुश्मन बहुजन समाज पार्टी है, बहुजन समाज पार्टी कभी भी नहीं चाहती है कि निषाद आरक्षण प्राप्त करें। और इसीलिए वह कोर्ट और विधानसभा व संसद में भी हमारे आरक्षण का अपनी पूरी क्षमता से विरोध करने में कभी भी नहीं चूकती है।
समाजवादी पार्टी भी निषादों को आरक्षण पर 1993 से लगातार झुन झुना ही थमाती रही है। 2005 और 2016 में इस पार्टी ने निषाद आरक्षण आधा अधूरा ही लागू करने के लिए कार्य किया। इसके किसी भी सांसद ने निषाद आरक्षण के लिए संसद में कभी भी काम रोको प्रस्ताव नहीं लाया। राज्य सभा में मा.विसम्भर प्रसाद निषाद जी के निषाद आरक्षण के निजी प्रस्ताव का इसके सांसदों ने दोनों बार साथ नहीं दिया। और जब 2016 का उत्तर प्रदेश में निषाद आरक्षण लागू करने का जी.ओ. जारी किया गया तो वह भी अपनी संभावित हार को देखकर जारी कर निषादों को लुभाने और भ्रमित करने के लिए किया गया। जिस पर जब जनवरी 2017 में अम्बेडकर ग्रंथालय आदि द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे लिया गया तो उस स्टे के समर्थन में अखिलेश यादव सरकार ने अपने सरकारी महाधिवक्ता द्वारा यह लिख कर एफिडेविट लगाया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने निषादों सहित 17 जातियों को प्रमाण पत्र जारी नहीं करने का निर्णय लिया है। और इस आशय का प्रपत्र भी जनवरी में ही सभी जिलाधिकारियों को भेज दिया गया, जिससे 2016 के जी.ओ. के आधार पर 17 जातियों को प्रमाण पत्र जारी नहीं किये जा सके।
कांग्रेस निषाद आरक्षण पर हमेशा सबसे ज्यादा धोखा देने वाली पार्टी रही है। इस पार्टी ने निषाद आरक्षण पर जितने भी आयोग बने उनमें से किसी की भी रिपोर्ट कभी भी लागू ही नहीं होने दी यहाँ तक की ओबीसी आरक्षण भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आधा अधूरा ही लागू किया और लगभग 54 प्रतिशत ओबीसी को केवल 27 प्रतिशत आरक्षण वह भी क्रीमी लेयर के साथ लागू किया, जिसके परिणाम कोई बेहतर नहीं रहे और आज भी देश भर में ओबीसी का सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत के लगभग ही है यानी 27 प्रतिशत आरक्षण कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण सपना ही बना रह गया है।
भाजपा सरकार भी अभी तक निषाद आरक्षण पर कोई कार्य नहीं कर सकी थी। लेकिन निषाद पार्टी के भाजपा के साथ हुए वर्तमान गठबंधन में यह तय किया गया है कि निषाद आरक्षण को लागू कराने के लिए भाजपा की उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकारें जरूरी कदम जल्दी ही उठाएंगी। क्योंकि इस समय मामला चुनाव आचार संहिता का है तो जो भी कदम इस समय उठाये जा सकते हैं, उन पर कार्य जारी है। और जल्दी ही निषाद आरक्षण लागू कराने के लिए निषाद पार्टी भी अपना पूरा जोर भाजपा पर लगाती रहेगी।
निषाद आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जो भी पक्ष अब तक पैरवी कर रहे हैं उनकी भी लापरवाही सामने आ रही है, कि 29 मार्च 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के शर्तानुसार अनुसूचित जनजाति के 17 जातियों के प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश को वे 6 माह के अन्दर सरकार से सभी जिलों को नहीं भिजवा पाए औऱ अगर 6 माह में उत्तर प्रदेश सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के समर्थन में जी.ओ. जारी नहीं कर सकी थी तो सरकार के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट की अवमानना का केश लगाया जा सकता था, जो ये नहीं लगा पाए।
विभिन्न पार्टियों के निषाद नेताओं ने उन पार्टीयों में रहकर केवल अपनी स्वार्थ सिद्धि ही की है। इन सपा, बसपा, कांग्रेस, भाजपा, के नेताओं ने अपनी पार्टियों में कभी भी निषाद आरक्षण को प्राथमिकता नहीं दी। पूर्व में मा. मनोहर लाल वर्मा और फूलन देवी जी (दोनों का निधन या हत्या भी राजनीतिक कारणों से हो चुकी है), मा. सीताराम निषाद, मा.चौ.लालता प्रसाद निषाद जी और वर्तमान में केवल विशम्भर प्रसाद निषाद जी (राज्यसभा सांसद) जी और राम कुमार एडवोकेट कानपुर नगर के अलावा किसी भी निषाद सांसद या विधायक ने निषाद आरक्षण पर अपनी बात अपनी पार्टी में नहीं रखी। लेकिन इन सभी की बात का इनकी पार्टी में कभी कोई असर नहीं हुआ। और निषाद वंश ठगा सा रह गया।
निषाद आरक्षण पर एकमात्र नेता हैं महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जो पिछले 6 सालों से बेफिक्र सम्पूर्ण निषाद वंश को एकजुट करने के साथ निषाद आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे हैं। और 1 माह जेल में भी इसी खातिर 2015 में रह चुके हैं। सैकडों निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं पर मुकदमा दर्ज होने के साथ जेल भी काट चुके हैं और आज भी गाजीपुर जेल में अर्जुन कश्यप सहित 3 लोग जेल में बंद हैं।
निषाद आरक्षण के लिए अखिलेश यादव सरकार में ही गोरखपुर और संत कबीर नगर की सीमा पर मगहर में पुलिस द्वारा चलाई गई गोली में इटावा के वीर युवा अखिलेश निषाद की जान भी चली गई और 29 नवम्बर 2018 के गाजीपुर काण्ड के बाद पुलिस अत्याचार के द्वारा जेल में बंद एक और बुजुर्ग की इलाज में लापरवाही से जेल में मौत हो गई। और मजबूरी में निषाद पार्टी के बढ़ते जनाधार से घबरा कर 2016 में जाते जाते अखिलेश यादव सरकार ने ऐसा शासनादेश जारी किया जो लागू ही नहीं हो पाया।
उत्तर प्रदेश की सरकारी मशीनरी में आज भी सपा, बसपा मानसिकता के कर्मचारी और अधिकारियों के कारण अनेकों जिलों में मझबार, तुरैहा और गोंड़ के प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं, कुछ ही जगह निष्पक्ष कर्मचारियों और अधिकारियों की मेहरबानी से प्रमाण पत्र जारी हो रहे हैं।
(इस वीडियो को एक बार पूरा नीचे दी गई लिंक को किलिक करके जरूर देखें-
https://youtu.be/iLjxfoPxmNMO )
क्योंकि बिना सत्ता के निषाद आरक्षण नहीं मिल सकता है, इसलिए निषाद एससी आरक्षण के लिए लगातार संघर्ष करने वाली निषाद पार्टी के सामने दो रास्ते हैं-
1.अपनी पार्टी की सरकार बनाना,
2.सरकार का साथी हो जाना।
क्योंकि अभी निषाद पार्टी इस मुकाम पर नहीं पहुंची है कि अपनी पार्टी की सरकार बना सके, इसलिए पार्टी अपने आरक्षण और सत्ता लाभ के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहले पीस पार्टी, समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके चुनाव लड़ चुकी है, कांग्रेस से भी अपनी शर्तों के साथ गठबंधन की बात की गई लेकिन कांग्रेस ने न पीस पार्टी को और नहीं निषाद पार्टी को अपने साथ लिया और बसपा की हठधर्मिता के कारण समाजवादी पार्टी भी धोखा देने के लिए लगी रही। गोखपुर में निषाद पार्टी के सहयोग से 2018 के लोकसभा उपचुनाव में जीत से मिली ऑक्सीजन ने सपा और बसपा के दिमाग को खराब कर दिया और दोनों ही पार्टियां निषाद पार्टी के लिए ही खत्म करने के लिए रास्ते खोजने लग गईं। इसके लिए निषाद पार्टी की जगह समाजवादी पार्टी ने निषाद प्रत्याशी पर अपना ध्यान केंद्रित कर निषाद एकता को तोड़ने की गहरी चाल बसपा और कांग्रेस के इसारे पर चली। क्योंकि निषाद पार्टी के उभार ने आज सभी पार्टीयों को ऐहसास करा दिया है कि अब निषाद वोट निषाद पार्टी के इसारे पर एकजुट हो रहा है और सपा, बसपा का बिस्तर ही समेट देगा। जो 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में हो चुका है। इसीलिए निषाद वोट को तितर बितर करने के लिए दोनों पार्टियों (सपा, बसपा) ने अपनी एकता करके निषाद पार्टी को धोखा दे दिया।
उधर आज भाजपा को भी पता है कि केंद्र में सत्ता प्राप्त करने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है क्योंकि की उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीट होने के साथ ही हिन्दू समुदाय का सबसे बड़ा वोट लगभग 13 प्रतिशत निषाद वंश का ही है और इनका साथ और उद्धार किये बिना भाजपा का कल्याण नहीं हो सकता है। इधर निषाद पार्टी को भी पता है कि बिना सत्ता के निषाद आरक्षण व अन्य सुविधाएं निषाद वंश के सम्पूर्ण कल्याण के लिए लागू नहीं कराई जा सकती हैं, तो सत्ता से 6 साल लड़ाई लड़कर भी देख लिया, अब सत्ता का साथ लेकर और देकर भी देखने में क्या बुराई है। इसी आधार पर ये गठबंधन दोनों दलों के लिए जरूरी और मजबूरी भी हो गया है।
निषाद पार्टी के इस उभार के कारण ही आज वर्तमान चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पहली बार सबसे ज्यादा 5 निषाद प्रत्याशी उतारे हैं-
1.धर्मेंद्र कश्यप-आंवला
2.साध्वी निरंजन ज्योति-फतेहपुर
3.अक्षयवर लाल गोंड़- (बहराईच-सुरक्षित)
4-ईं.प्रवीण कुमार निषाद- (संत कबीर नगर)
5-रमेश बिन्द-(भदोही)
और अब क्योंकि निषाद पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन गई है तो भाजपा नेता भी अपने मंचों से निषाद पार्टी का नाम और जय निषाद राज के नारे लगाने लगे हैं यानी निषाद वोट की कीमत पहचानने लगे हैं। आने वाले समय में निषाद आरक्षण सहित सभी मुद्दों पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को निषाद पार्टी और निषादों का साथ देना मजबूरी हो जाएगी, क्योंकि अगर भाजपा धोखा देगी तो 2022 में धोखा खाएगी भी।
क्योंकि मैं एक सम्पादक, प्रकाशक होने के साथ निषाद पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी हूँ, इसलिए निषाद वंश का उद्धार और निषाद वंश का आरक्षण ही मेरा उद्देश्य है, इसके लिए मैं किसी से समझौता नहीं कर सकता हूँ।
मैं निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी के निषाद वंश के उत्थान के लिए उठाए गए हर कदम में सहयोग करता रहूंगा। और भाजपा निषाद पार्टी के गठबंधन की जीत के लिए भी सहयोग देता रहूँगा। सम्पूर्ण निषाद समाज को चाहिए कि वह एकबार इस गठबंधन को जिताने के लिए अपनी एकजुटता बनाये रखे और निषाद आरक्षण व निषाद पार्टी विरोधी महागठबंधन व कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी शिशक्त देकर इन पार्टियों को सबक सिखाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए पूरी शक्ति लगा दे।
सभी निषाद पार्टी के समर्थक और कार्यकर्ताओं को चाहिए अपने अपने जिलों की इकाई से सम्पर्क करके अपने अपने घरों पर निषाद पार्टी के झंडे को जरूर लगायें और जय निषाद राज, निषाद पार्टी जिन्दाबाद, महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जिन्दाबाद के नारे को लिख कर अपनी शक्ति से दुश्मनों को डराते रहें, इसी में आपका कल्याण निहत है। जय निषाद राज
जसवन्त सिंह निषाद
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