सम्पूर्ण निषाद वंश के लिए खुश खबरी, उत्तर प्रदेश शासन ने 29 मार्च 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए जारी किया शासनादेश



लखनऊ, उत्तर प्रदेश (Lucknow, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh), ब्यूरो रिपोर्ट, 15 जून 2019। समस्त मछुआ समुदाय, उत्तर प्रदेश को सूचनार्थ
विषय:- उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी शासनादेश 21.12. 2016 एवं 22.12. 2016 में मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पी.आई.एल. संख्या 2129/ 2017 के मामले में पारित आदेश दिनांक 29/03/ 2017 उपरोक्त शासनादेशानुसार अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निर्गत होने के संबंध में।
1-उपर्युक्त विषयक शासन के पत्र संख्या 229/2016/436/ मंत्री/26--2016-3(1)/2016,टी.सी., दिनांक 21/12/ 2016 का सभी लोग कृपया संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, जिसके द्वारा मझवार  समुदाय के व्यक्तियों को गोड़िया, मल्लाह, केवट, कश्यप आदि पिछड़ी जाति बताकर उन्हें मझवार जाति का प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जा रहा था एवं पत्र संख्या 234/2016/297 सी.एम./26-3-2016-3 (15)/2007 दिनांक 22.12.2016 में प्रदेश की पिछड़ी जातियां कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धिमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ को अनुसूचित जाति के रूप में परिभाषित कर पिछड़े वर्गों के बजाय अनुसूचित जाति का लाभ प्राप्त करने के हकदार समझी जाएंगी के विषयक अधिनियम की धारा 13 में प्रदत्त शक्ति का प्रयोग कर अधिसूचना संख्या 4(1)- 2002- कार्मिक -2, दिनांक 31.12.2016 जारी कर सभी सम्बंधित विभागों में आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
2- उपरोक्त शासन के पत्र संख्या 229/2016/436/ मंत्री/26--2016-3(1)/2016,टी.सी., दिनांक 21/12/ 2016 एवं पत्र संख्या 234/2016/297 सी.एम./26-3-2016-3(15)/2007 दिनांक 22.12.2016 में मा. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पी.आई.एल. संख्या 2129/ 2017 के मामले में दिनांक 24/01/ 2017 को अग्रिम आदेश तक स्थगित कर दिया था।
3-  प्रश्नगत उपरोक्त शासन के पत्र संख्या 229/2016/436/ मंत्री/26--2016-3(1)/2016,टी.सी., दिनांक 21/12/ 2016 एवं पत्र संख्या 234/2016/297 सी.एम./26-3-2016-3 (15)/2007 दिनांक 22.12.2016 में जनहित याचिका संख्या पी.आई.एल. संख्या 2129/ 2017 में दिनांक 29.03.2017 ( प्रतिलिपि संलग्न) को सुनवाई उपरान्त स्थगन आदेश को हटाते हुए मछुआ समुदाय को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने हेतु माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद का आदेश निम्नवत है-
Respondents are directed to file counter affidavits within eight week from today. Liberty to the petitioner to apply to hearing of the petition immediately thereafter.
 Applications for the intervention to be heard as and when hearing of the writ petitions take place. It is open for all intervenors to file counter affidavit s, if they so desire and are advised, before the next date. In the event, any caste certificates are issued pursuant to the order impugned, those certificates shall be subject to the outcome of the writ petition.
 It is open to the petitioner all add all such persons as party respondents in whose favour caste certificates has been issued.
3- उपर्युक्त विषय  के संबंध में यह भी निर्देश हुआ है कि अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के अधिनियम 1976 के क्रमांक 53 पर मझवार एवं 66 पर तुरैहा जाति अंकित है। इस प्रकार मझवार एवं तुरैहा जाति संपूर्ण उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में सम्मिलित है। शासन के संज्ञान में यह तथ्य आया कि मझवार एवं तुरैहा समुदाय के पात्र व्यक्तियों को केवट, मल्लाह, गोड़िया, कहार, कश्यप, धिवर आदि को पिछड़ी जाति बता कर मझवार एवं तुरैहा का प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किया जा रहा है। जिसके कारण उक्त समुदाय के लोगों द्वारा मा. उच्च न्यायालय में विभिन्न रिट याचिकाएं योजित की गई है। इस संबंध में श्री अजय कुमार, जनपद- फैजाबाद द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका संख्या 4588/ 2007 योजित की गई है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का कार्यकारी अंश निम्नवत है-
Accordingly the petitioner are allowed to the all the documents along with application before the commissioner, who is directed to look into the matter and pass appropriate order in accordance with law and on the result of the enquiry, if any. The decision shall be taken by him within the maximum period of two months from the date of certified copy of this order is placed before him.
मां. उच्च न्यायालय के उस आदेश के अनुपालन में मंडलीय अपीलीय फोरम फैजाबाद द्वारा दिनांक 30/09/2016 को मझवार जाति के पात्र व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं।
4- इस संबंध में आप अवगत हैं कि विभिन्न शासनादेशो द्वारा जाति प्रमाणपत्र निर्गत किए जाने के संबंध में दिशा-निर्देश दिए जाते रहे है। इस संबंध में शासनादेश संख्या 2088/26/03 /2015 दिनांक 9/07/2015 द्वारा यह स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी व्यक्ति की जाति उसके नाम के समक्ष अंकित जाति सूचक शब्द के आधार पर निर्धारित नहीं होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जाति प्रमाण पत्र निर्गत करते समय राजस्व अधिकारियों को उस व्यक्ति के नाम के समक्ष लिखे जा रहे जाति सूचक शब्द अथवा उसके जिवकोपार्जन हेतु अपनाएं जाने वाले व्यवसाय इत्यादि को जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने को आधार नहीं माना जाना चाहिए। इस संबंध में पूर्व में विभिन्न शासनादेश द्वारा यह निर्देश दिए जा चुके हैं कि जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने हेतु केवल 1359 फसली को ही आधार न माना जाए अपितु आवेदक के विषय में सही जानकारी प्राप्त करने के लिए गांव के आस-पास के निर्विवाद मझवार परिवार से स्थलीय पूछ-ताछ, जांच पड़ताल, कुटुम रजिस्टर, शैक्षिक संस्थाओं की टी.सी. एवं अन्य स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अभिलेखों/साक्ष्यों के परीक्षण आदि को जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने का आधार माना जाए।
5- अतएव उपरोक्त के संबंध में शासन से निर्देश हुआ है कि माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश दिनांक 29.03.2017 तथा भारत सरकार के राजपत्र अनुसूचित जाति या अनुसूचित जातियां आदेश संशोधन अधिनियम 1976 के आलोक के आधार पर मझवार एवं तुरैहा जाति का प्रमाण पत्र निर्गत करें और यदि राजस्व अधिकारी/ कर्मचारी द्वारा इस आधार पर कि मझवार समुदाय का कोई व्यक्ति मल्लाह, केवट, निषाद आदि से संबंधित हैं के आधार पर उसे मझवार जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं कर रहा है तो उसके विरुद्ध सतर्कता प्रकोष्ठ में जांच संस्थित कर अगग्रेत्तर कार्रवाई की जाएगी।
       संत कबीर नगर के सांसद ईं. प्रवीण कुमार निषाद के द्वारा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी सांसदों के अभिनंदन समारोह के दौरान दिए गए निषाद आरक्षण पर 29 मार्च 2017 के आदेश को लागू कराने के प्रार्थना पत्र पर संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने शासनादेश उत्तर प्रदेश के सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को जारी किया है और। जिसमें 17 जातियों के प्रमाण पत्र जारी करने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए कहा गया है।


यह आदेश निषाद वंशीय जातियों के आरक्षण के लिए 21, 22 व 31 दिसम्बर 2016 और 2 जनवरी 2007 के शासनादेशों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा हटाये गए 29 मार्च 2017 के स्टे आर्डर को लागू कराने के लिए जारी किया गया है। क्योंकि जब ये शासनादेश जारी हुए थे तब इन पर विपक्षी अम्बेडकर ग्रंथालय और अन्य द्वारा 24 जनवरी को स्टे ले लिया गया था और उस समय की अखिलेश यादव जी की सपा सरकार ने 24 घंटे में ही 25 जनवरी को ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के स्टे आर्डर को तुरंत ही सभी जिलाधिकारियों तक पहुंचा दिया था। और जब 2 माह बाद उसी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 29 मार्च को यह स्टे सशर्त हटाया तो उसके आदेश को जिलाधिकारियों तक पहुंचने में 2 साल 3.5 माह का समय लग गया।
    अब यह एक बात समझ से परे है कि ऐसा कौन सा वाहन उस समय था, जिसने निषादों के अधिकार को रोकने वाले आदेश को पूरे उत्तर प्रदेश में 24 घंटे में पहुंचा दिया और अगर यह बात निषादों को पता चल जाती की यह वाहन 29 जुलाई 2017 के आदेश को भी उसी रफ्तार से जिलाधिकारियों तक पहुंचा सकता है तो आज 27.5 माह में लाखों निषादों के बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता था।
  अब 12 जून 2019 को जब निषाद आरक्षण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को लागू कराने में यह निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी की महत्वपूर्ण भूमिका को सेल्यूट करते हुए, सम्पूर्ण निषाद पार्टी के सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के लिए एक बेहतरीन उपहार कहा जा सकता है। अब निषादों के सभी वर्गों को भाजपा सरकार से उन्नति के मार्ग मिलने का पहला कदम उठ गया है।








      बहुत से सामाजिक बंधुओं द्वारा 12 जून 2019 के प्रपत्र के संदर्भ का अध्यन किये बिना सवाल पूछ जा रहे हैं कि ऐसा है तो, वैसा है, इस में मझवार संदर्भित है, केवट, मल्लाह, तुरैहा, कश्यप आदि का जिक्र नही है, कि बात कर रहे हैं। सभी को ज्ञात है कि मछुआ समाज के सभी जातियों को अनुसूचिजाति में सामिल किया गया था। जिसे लेकर अम्बेडर ग्रंथालय नाम की संस्थान कोर्ट गयी थी, जिस पर स्टे हो गया था। जिसकी सूचना जनपद कार्यालय को तत्कालीन अखिलेश यादव जी की सपा सरकार ने कोर्ट के स्टे तक प्रमाण पत्र जारी नही करने प्रपत्र आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऑर्डर के 24 घंटे में ही सभी जिलाधिकारियों को किया था। परंतु स्टे हटने की सूचना व कोर्ट के आदेश कि प्रमापत्र जारी किया जाय, जो कोर्ट के अधीन होगा, का प्रपत्र जिला अधिकारीओ को योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा नहीं भेजा गया था। जिसको लेकर निषाद पार्टी लगातार आंदोलन तथा था ज्ञापन देती रही। लेकिन कोर्ट का आदेश लागू नहीं हो पा रहा था। अब जब निषाद पार्टी शासन सत्ता की सहयोगी बनी तथा चुनाव से पूर्व तथा चुनाव के बाद तक के अनेकों प्रयास के उपराँत अब निषाद पार्टी व डॉ  संजय निषाद जी के साथ किये वादे को भाजपा की उत्तर प्रदेश के इसी योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने मानते हुए, कोर्ट के आदेश को संज्ञान में लेते हुए निर्णय यह लिया है।
इस लिए जो भी लोग सवाल कर रहे हैं वे कृपया आदेशित प्रपत्र में संदर्भित सभी बिन्दुयो को भली भांति समझ कर सवाल करे।
इस शासनादेश से वीर शहीद अखिलेश निषाद की आत्मा को भी कुछ शुकुन मिलेगा।
जय निषाद राज   जय राम राज