उच्च न्यायालय के 29/03/2017 के निर्णय और 24/06/2019 के शासनादेश का पूरा लाभ 17 जातियों को

लखनऊ, उत्तर प्रदेश (Lucknow, Uttar Pradesh) एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh), ब्यूरो रिपोर्ट, 8 जुलाई 2019। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामना डॉ. संजय कुमार निषाद जी का कहना है कि उच्च न्यायालय के 29/03/2017 के निर्णय  और 24/06/2019 के शासनादेश का पूरा लाभ  17 अतिपिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धिमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ को अवश्य मिलेगा है।
               माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ द्वारा 21 एवं 22 दिसम्बर, 2016 को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति परिभाषित करने व मझवार जाति को जाति प्रमाण-पत्र निर्गत करने के लिए जारी शासनादेश को 5 जुलाई, 2019 को न्यायालय द्वारा वैध ठहराते हुए मझवार (मल्लाह) का प्रमाण-पत्र जारी करने का आदेश दिया है। राज्य सरकार अनुसूचित जातियों की सूची का क्लीयरीफिकेशन (स्पष्टीकरण) कर सकती है, स्पेशीफिकेशन (विषेश वर्णन) नहीं। शासनादेश संख्या-1442/छब्बीस-818-1957 दिनांक- 22 मई, 1997 का आंशिक संशोधन करते हुए भारत सरकार द्वारा पारित अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 दिनांक- 27 जुलाई, 1977 को प्रभावी कर दिया गया। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 29 अगस्त, 1977 को जारी शासनादेश संख्या-6744/छब्बीस-77-17(21)-74 के आधार पर अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक 36 पर गोड़, क्रमांक-53 मझवार, 59 पर पासी, तड़माली, 65 पर शिल्पकार व 66 पर तुरैहा जाति अंकित है। 17 अतिपिछड़ी जातियों में 13 उपजातियाँ मझवार, गोड़, तुरैहा की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम है।
         सेन्सस आॅफ इण्डिया-1961 अपेंडाईसेस टू सेन्सस मैनुअल पार्ट-1 फाॅर उत्तर प्रदेश की अपेंडिक्स-"एफ" लिस्ट-1 के अनुसार क्रमांक-51 पर अनुसूचित जाति मझवार की पर्यायवाची या जेनरिक नेम्स मांझी, मुजाबिर, राजगोड़, मल्लाह, केवट, गोड़ मझवार को माना गया है। इसी सूची के क्रमांक- 24 पर चमार, धुसिया, झुसिया या जाटव, जाति की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम गहरवार, अहिरवार, जटीवा, कुरील, रैदास, दोहर, रविदास, चमकाता, भगत, चर्मकार, जैसवार, रैया, दोहरा, धौंसियार, पिपैल, कर्दम, नीम, दौबरे, मोची, उतरहा, दखिनहा का उल्लेख है। इन सभी को चमार या जाटव का प्रमाण-पत्र निर्बाध रूप से जारी किया जाता है। लेकिन दूसरी तरफ जब मझवार का प्रमाण-पत्र मांगा जाता है, तो तहसील कर्मियों द्वारा मल्लाह, मांझी, केवट, गोड़िया आदि बताकर आवेदन पत्र निरस्त कर दिया जाता है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 एवं 22 दिसम्बर, 2016 को शासनादेश जारी किया है। शासनादेश संख्या-234/216/297 सी0एम0/26-3-2016-3 (15)/2007 के अनुक्रम में  31 दिसम्बर, 2016 को कार्मिक अनुभाग-2 संख्या-4 (1)/2002-का-2 के आधार पर अपर मुख्य सचिव ने अधिसूचना जारी करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 (उ.प्र. अधिनियम संख्या-4 सन् 1994) की धारा-13 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया है। उपरोक्त आदेश में स्पष्ट किया गया था कि उक्त जातियों को परिभाषित (स्पष्ट) किया गया है, न कि विशिष्टता के उद्देश्य से भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 341 में छेड़ छाड़ किया गया है।
   21 एवं 22 दिसम्बर 2016 के शासनादेश को डाॅ. बी.आर. अम्बेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति की याचिका 2129/2017 के अनुरोध पर न्यायालय ने 24 जनवरी, 2017 को स्टे कर दिया था। निषाद समाज के दर्जनों अधिवक्ताओं के साथ सुनील तिवारी और निषाद पार्टी के  वरिष्ठ संविधान विशेषज्ञ अधिवक्ता रवीकान्त अग्रवाल एवं बंशी लाल निषाद के द्वारा दलील दी गई कि राष्ट्रपति के 1961 के जनगणना अधिसूचना के अनुसार मछुआ समुदाय की सभी जातियां मझवार, गौड़, तुरैहा के नाम से संविधान की सूची में सूचीबद्ध हैं और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के 31 दिसम्बर 2016 के अधिसूचना के अनुसार 17 अति पिछड़ी जातियां को नियमानुसार पिछड़ी जाति के सूची से बाहर कर अनुसूचित जाति का लाभ देने का हकदार बना दिया है के प्रतिलिपी के आधार पर 29 मार्च, 2017 को स्टे हटा लिया गया है। पटियाली तहसील के बृजेन्द्र कश्यप ने 21 एवं 22 दिसम्बर, 2016 के शासनादेशानुसार मझवार (मल्लाह) का प्रमाण पत्र बनाने के लिए आवेदन किया, जिसे तहसीलदार ने मना कर दिया था। कश्यप जी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका संख्या/194037/219 दायर कर जाति प्रमाण-पत्र बनाने का आदेश निर्गत करने की अपील पर मा. मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने 11 फरवरी, 2019 को आदेश दिया कि 6 सप्ताह के अंदर न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया जाय अन्यथा न्यायालय की अवमानना का दोषी माना जायेगा। इसके बाद भी तहसीलदार पटियाली ने अनुपालन नहीं किया। इसके बाद याची नेे याचिका संख्या-14560/2019 दायर किया, जिस पर 2 जुलाई, 2019 को स्वीकृति प्रदान किया गया। न्यायालय ने 2 जुलाई, 2019 को आदेश दिया कि तहसीलदार सावधानी के साथ 4 सप्ताह के अंदर आदेश का अनुपालन करें। अतिपिछड़ी जातियों-मल्लाह, केवट, निषाद, धीवर, धीमर, रायकवार, कहार, बाथम, गोड़िया, तुरहा, बिन्द, भर, राजभर, कुम्हार, प्रजापति जातियों के नाम से जाति प्रमाण-पत्र जारी कराने एवं मझवार गौड़, तुरैहा को परिभाषित करने व अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल मूल जाति के नाम से प्रमाण-पत्र जारी किये जाने की मांग को लेकर निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद जी के नेतृत्व में आंदोलन करते आ रहे। वर्तमान भाजपा सरकार ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से 24 जून, 2019 को शासनादेश जारी कर, अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ देने का हकदार मानकर सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित किया है।
         श्री आर0बी0 रसेल व हीरा लाल द्वारा 1916 में लिखित पुस्तक ‘‘दि ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स आॅफ सेन्ट्रल प्रोविन्सेज’’ के वाल्यूम-1 के अंतिम भाग में ग्लोसरी नाम से जातियों का जो शब्दकोश दिया गया है, उसके पृष्ठ - 388 पर मांझी को केवट की पर्यायवाची व मजवार को केवट तथा बोटमैन में सम्मिलित दर्शाया गया है। मजवार शब्द मझवार का अपभ्रंश है। यूनाइटेड प्रोविन्सेज आॅफ आगरा एण्ड अवध पार्ट-1 रिपोर्ट सेन्सस आॅफ इण्डिया -1931 के लिस्ट (ए) अनटचेबल एण्ड डिपेस्ट कास्ट्स की सूची के क्रमांक- 8 पर मझवार (मांझी) अंकित है। मा.उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ लखनऊ द्वारा याचिका संख्या-9312/1988 ओम प्रकाश बनाम उ.प्र. सरकार के निर्णय में मांझी को मझवार का पर्यायवाची बताया गया है। दि ट्राइबल रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट छिंदवाड़ा ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेन्ट मध्य प्रदेश शासन के अध्ययन प्रतिवेदन -1961 ‘‘दि ट्राइब्स आॅफ मध्य प्रदेश’’ के पृष्ठ-52, 53 पर मझवार नाम से दिये गये आलेख में मझवार, मांझी व मझिया बताया गया है। इन्हें बोटमैन, फिशरमेन व फेरीमैन भी कहा गया है।
 भारत सरकार के इन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे आॅफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल एवं आई.ए.एस. अधिकारी डाॅ.के.एस.सिहं द्वारा कराये गये वृहद सर्वेक्षण/अध्ययन के आधार पर लिखित पुस्तक ‘‘पीपुल आॅफ इण्डिया’’ नेशनल सीरीज वाल्यूम-3, दि शिड्यूल्ड ट्राइब्स के पृष्ठ 710 पर ‘‘मांझी आलेख में मांझी का अर्थ बोटमैन तथा मांझी को मल्लाह, केवट, नाविक का पर्यायवाची माना गया है। विभिन्न शब्दकोषों में मांझी का अर्थ केवट, मल्लाह, धीवर, धीमर, नाविक आदि का ही उल्लेख मिलता है। इन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे आॅफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल के.एस. सिंह द्वारा "दी शेड्यूल्ड कास्ट्स’’ के अनुसार मझवार व मांझी को परस्पर पर्यायवाची माना गया है। राधेमोहन बनाम दिल्ली परिवहन निगम के रिट पिटीशन सं.-2493/85 के निर्णय दिनांक-8 जनवरी, 1986 के अनुसार मल्लाह की पर्यायवाची केवट, मांझी, झीमर, धीवर आदि को माना गया है। 10 वर्षीय मत्स्य पालन पट्टा के लिए उ.प्र. सरकार द्वारा जारी शासनादेश में मछुवा समुदाय के अन्तर्गत मछुवा, केवट, मल्लाह, बिन्द, धीवर, धीमर, बाथम, रायकवार, मांझी, गोड़िया, कहार, तुरैहा या तुराहा जाति का उल्लेख किया गया है।
       रिट पीटीशन सं-1278 के संदर्भ में 25 फरवरी, 2005 के निर्णय के अनुसार तुरैहा समुदाय को धीमर जाति के रूप में निर्णित किया गया है। गोड़ जाति को अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति के रूप में उ.प्र. के पूर्वांचल के 13 जनपदों में स्थानान्तरित करते हुए भारत सरकार के 15.06.2001 के मिनट्स ट्वेंटिथ मिटिंग आॅफ नेशनल कमीशन फाॅर एस.सी. एण्ड एस.टी. के अनुसार धुरिया, पठारी, राजगौड़, कहार, गोड़िया, धीमर, रायकवार,बाथम आदि को गोड़ की पर्यायवाची माना गया है। भूमि प्रबंधक समिति नियम संग्रह (गांव समाज मैनुअल) के अनुसार मल्लाह का तात्पर्य मल्लाही का काम करने वाले समुदाय के अन्तर्गत आने वाली केवट, मल्लाह, कहार, गोड़िया, तुराहे, बिन्द, चांई, सुरैहा, मांझी, बाथम, भोई, धुरिया, धीवर, रायकवार और मझवार से है।
 हरियाणा की कामन लिस्ट में क्रमांक 19 पर धीवर, मल्लाह, कश्यप, कहार, झीमर, धीमर एवं पंजाब की काॅमन लिस्ट के क्रमांक-35 पर धीमर, मल्लाह, कश्यप व महाराष्ट्र की काॅमन लिस्ट के क्रमांक 211 पर केवट, धीवर, मांझी, धीमर, मछुआ, गोड़िया कहार, धुरिया कहार, भोई वर्तमान में 2013 से निषाद, मल्लाह, नाविक को भी शामिल कर लिया गया है। मध्य प्रदेश की काॅमन लिस्ट के क्रमांक- 11 पर धीमर, भोई, कहार, धीवर, रायकवार, मल्लाह, तुरैहा और दिल्ली की सूची में मल्लाह के साथ निषाद, मांझी, केवट, धीवर, कश्यप, झीमर, कहार व राजस्थान की अन्य पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक- 14 पर धीवर, कहार, भोई, कीर, मेहरा, मल्लाह, निषाद, मछुआरा आदि, छत्तीसगढ़ की पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक- 18 पर धीमर, कहार, भोई, धीवर, मल्लाह, तुरहा, केवट, कैवर्त, रायकवार, कीर, सोन्धिया आदि जातियों को सूचीबद्ध किया गया है।
 मल्लाह, मांझी, निषाद, केवट, धीवर, बिन्द, तुरहा, धीमर, कहार, कश्यप, गोड़िया, रायकवार, धुरिया, तुरैहा आदि जातियां किसी न किसी रूप में मझवार/मांझी की ही पर्यायवाची जातियां हैं। सेन्सस-1961 के क्रमांक- 59 पर पासी, तड़माली की पर्यायवाची भर, क्रमांक- 65 पर शिल्पकार की पर्यायवाची कुम्हार को माना गया है। 17 अतिपिछड़ी जातियों के पास पोलिटिकल गाड फादर व पोलिटिकल साउण्ड न होने के कारण उक्त जातियां संविधान प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों से वंचित की जाती रही हैं। 1978 में जनता पार्टी सरकार द्वारा अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में मल्लाह, केवट, कहार, धीवर, बिन्द, कुम्हार, भर/राजभर को शामिल कर लिये जाने के कारण इन जातियों को मझवार, तुरैहा, गोड़, पासी, तड़माली, शिल्पकार आदि के नाम से अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र निर्गत करने में तहसील कर्मियों व राजस्व अधिकारियों द्वारा अड़चन पैदा की जाने लगी। *संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जनजाति की सूची में कोई फेर बदल नहीं कर सकती। जब मल्लाह, मांझी, केवट आदि को 1961 में रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इण्डिया/सेन्सस कमीशनर द्वारा 1961 में ही मझवार जाति की पर्यायवाची या वंशानुगत नाम मान लिया गया, तो राज्य सरकार ने मल्लाह, केवट आदि को अन्य पिछड़े वर्ग में परिवर्तन कैसे कर दिया? ऐसा किया जाना संविधान के अनुच्छेद 341 का स्पष्ट तौर पर उल्लघंन है। 
संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 से सम्बंधित संवैधानिक फाइल संख्या 74/4/1950 पब्लिक गुम हो गई है। यह जानकारी आरटीआई के जरिए मिला है। उत्तर प्रदेश राज्य से 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास 2007 से विचाराधीन है। सभी जातियों के बहुत से संगठन के लोगों द्वारा लगातार आंदोलन, धरना-प्रदर्शन, रैली, सरकार के धेराव चल रहा है। आरटीआई के जरिए कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने के प्रकरण में जानकारी मांगी गई थी जिसमें पत्रावली के गुम होने का खुलासा हुआ है। आरटीआई के अपील में केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित आदेश संख्या सी.आई.सी./सी.ए./ए./ 2012/001036 दिनांक 06/09/2012 के परिपालन में केन्द्रीय सूचना अधिकारी एवं निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली भारत सरकार द्वारा अपने पत्र संख्या 17020/126/2011एस.सी.डी.(आर.एल.शैल) दिनांक 16/10/2012 के माध्यम से सूचित किया है कि  सूचना से सम्बंधित पत्रावली संख्या 74/4/1950 पब्लिक गुम हो गई है। इस पत्रावली के गृहमंत्रालय के पास होने की सम्भावना जताई गई। गृहमंत्रालय के केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी नई  द्वारा अपने पत्र संख्या 1/14/2012 ओ.आर.आर. दिनांक 29/12/2012 द्वारा अवगत कराया गया है कि सम्बंधित पत्रावली संख्या  74/4/1950 पब्लिक गृहमंत्रालय में नहीं है। संविधान से सम्बंधित पत्रावली कभी नष्ट नहीं की जाती है तथा ऐसी पत्रावलियां समय समय पर प्रशासकीय मंत्रालय की ओर से नेशनल आर्काइव्ज आफ इंडिया (एन.ए.आइ.) में हस्तांतरित की जाती है। उक्त पत्रावली या तो समाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्रालय के पास होगी अथवा नेशनल आर्काइव्ज आफ इंडिया के पास होगी। दिनांक 06/11/2013 के पत्र संख्या 01/14/2012 ओ.आर.आर के माध्यम से जन सूचना अधिकारी गृहमंत्रालय ने अवगत कराया है कि एन.ए.आई. के आर्कियोलोजिस्ट द्वारा लिखित रूप से यह सूचित किया गया है कि यह फ़ाइल एन.ए.आई. में कभी भेजा ही नहीं गया है। तथा
एन.ए.आई. के पास भेजी गई फाईलों की 146 पेज की सूची उपलब्ध कराई गई है जिसमें संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 से सम्बंधित संवैधानिक फाइल संख्या 74/4/1950 पब्लिक नहीं है। अर्थात फाइल संख्या 74/4/1950 पब्लिक कभी भेजी ही नहीं गई है।
केन्द्रीय सूचना अधिकारी एवं निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा पुनः अपने पत्थर संख्या 17020/126/2011एस.सी.डी.(आर.एल.शैल) दिनांक 21/12/2014 द्वारा अवगत कराया गया है कि  संवैधानिक फाइल संख्या 74/4/1950 पब्लिक खोजी नहीं जा सकी है। पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यह पत्रावली धोखेबाजी से जाटवो को सभी पिछड़ी जातियों के हिस्से खिलाने के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मा मुकुल वासनिक एवं कुमारी शैलजा के द्वारा अपने अधिनस्थ अधिकारियों के साथ षड्यंत्र रचकर गायब कराई गई है, ताकि 17 अतिपिछड़ी जातियों का अनुसूचित जाति का प्रकरण बाधित किया जा सके। इस लिए संसद मार्ग दिल्ली के थाने में 03/06/2019 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मा मुकुल वासनिक एवं कुमारी शैलजा और उनके अधिनस्थ अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है।
मा. सतीश चंद्र मिश्रा एवं मा. थावर सिंह गहलोत इस पर क्या अपना बयान देंगे जो यह 17 पिछड़ी जातियों के साथ उन्हीं के मंत्रालय में धोखेबाजी हो रही है इसका जवाब उन्हें सदन में देना चाहिए और निषाद समाज और पिछड़ी जातियों के सभी संसद सदस्यों को इस पर इन दोनों से सीधे जवाब देने के लिए मजबूर करें जो 17 पिछड़ी जातियों के साथ 1950 से धोखेबाजी हो रही है। इस पर स्थिति स्पष्ट राज्यसभा और लोकसभा में करें और दोषियों पर दण्डानात्मक कार्रवाई करें और 17 पिछड़ी जातियों को केन्द्र में तत्काल अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करके इस समाज के लोगों को बैकलॉक के रूप में सभी क्षेत्रों में सुविधाएं दें।
    निषाद पार्टी के संघर्षों का परिणाम 24/6/2019 का शासनादेश
      आप सबको मालूम है कि निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के नेतृत्व में  1 फरवरी 2014 से 11 फरवरी 2014 तक जिलाधिकारी गोरखपुर के सामने क्रमिक अनशन, धरना-प्रदर्शन, लाखों लोगों के साथ 17 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री आवास लखनऊ धरना प्रदर्शन, लाठीचार्ज, 7 जून 2015 रेल ट्रेक आंदोलन, कसरवलकांड, शहीद अखिलेश निषाद एवं 37 लोगों सहित डॉक्टर संजय कुमार को धारा 302 में अपराधी घोषित, लगभग 7 लाख लोगों के साथ रमादेवी पार्क लखनऊ में प्रादेशिक आरक्षण आंदोलन, धरना-प्रदर्शन में निषाद पार्टी की घोषणा, 2017 विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा, 60 सीटों पर चुनाव लड़कर 6.5 लाख वोट प्राप्त कर एक विधायक विधानसभा में पहुंचाना, हजारों लोगों के साथ 29 मार्च 2017 को प्रधानमंत्री का घेराव करने हेतु जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन, 2018 के उपचुनाव गोरखपुर से इंजीनियर प्रवीण कुमार निषाद जी को लोकसभा में भेजकर मझवार के प्रयायवाची जातियों पर आवाज उठवाना, 7 मार्च 2019 को मुख्यमंत्री आवास गोरखपुर का घेराव लाठीचार्ज, मार्च 2019 को प्रधानमंत्री का घेराव गाजीपुर आठवां मोड़ घटना में धारा 302 अपराध में 80 निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज, अनवरत प्रत्येक जिलों में रेल ट्रैक आंदोलन, सड़क आंदोलन, धरना प्रदर्शन सभी तहसीलों में ज्ञापन सभी जिलाधिकारियों को ज्ञापन, पुतला दहन, विरोध धरना, प्रदर्शन जिलेवार विशाल रैलीयां,  पुनः 2019 के चुनाव में संत कबीर नगर से  इंजीनियर निषाद एमपी बनाकर सदन में आपके यहां किससे एवं संविधान में लिखे हुए अधिकारों की आवाज उठाने के लिए लोकसभा में भेजना, अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित का प्रमाण पत्र निर्गत कराने हेतु माननीय निषाद जी द्वारा 30 मई 2019 को मुख्यमंत्री को आवेदन देकर 21/12/2016, 22/12/2016 और 30/12/2016 की आदेशों का अनुपालन करा कर 24/6/2019 का शासनादेश आपके सामने परिणाम के रूप में है। उपरोक्त संघर्षों का परिणाम रहा है कि 24/1/2017 का हाईकोर्ट का स्टेट ऑर्डर 3 दिन बाद ही 27/1/2017 को जिलाधिकारी कहां पहुंचा था लेकिन 29/3/2017 का हाईकोर्ट का ऑर्डर सचिवालय के न्याय विभाग में अन्याय के रूप में 2 साल 3 महीने धूल चाट रहा था। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय कुमार निषाद के राजनीतिक रणनीति का परिणाम रहा कि 2019 चुनाव होने के एक महीने बाद बाद ही अति पिछड़ी जातियों के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र जारी करने का सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित कराना आपके संघर्षों का परिणाम है। निषाद पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच के समझौते का पहला परिणाम है। आवश्यकता पड़ने पर केंद्र सरकार के तरफ संघर्ष का रुख करने में आपका प्यार, स्नेह, मार्गदर्शन और आशीर्वाद जनसमर्थन, तन, मन, धन का सहयोग मिलता रहेगा।
    आप सबको जानकारी होने चाहिए कि योगी जी की भाजपा सरकार ने आरक्षण जो लागू  किया है वह केवल हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में लागू किया है। इसीलिए किसी के विरोध करने से उस पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अभी शासन के nic.com में कुछ समस्याएं हैं इसलिए नेट पर दिख नहीं रहा है कुछ दिन बाद दिखाई देगा। सभी जिलाधिकारीयों के वहां ईमेल पर 24/6/2019 का शासनादेश चला गया है। आप लोग जिलाधिकारी के पास जाकर 24/6/2019 की कापी के साथ 21/12/2016 व 22/12/2016 के शासनादेश एवं 31/12/2016 अधिसूचना और 29/3/2016 के हाईकोर्ट के आदेश की कापी संलग्न कर शासनादेश के अनुपालन में तहसीलदारों को निर्देशित कराने का आवेदन कर तहसीलों में जिलाधिकारी के माध्यम से आदेशों की प्रति तत्त्काल उपलब्ध कराएं। तत्पश्चात अपनी जाति प्रमाण पत्र बनवाने का आवेदन दीजिए। फालतू बहस करने के बजाय अपना और अपने परिवार का आवेदन पत्र तहसील कलेक्ट्रेट में प्रस्तुत करें। जहां से आपको जाति प्रमाण पत्र बन जाएगा। इसी प्रकार 2005 में जिनके भी प्रमाणपत्र बनें थे वह आज भी वैध है और लोग नौकरी में कार्यरत हैं। भले ही मायावती ने 2007 में शासनादेश निरस्त कर दिया था। सभी निषाद समाज के भाइयों से निवेदन है कि हमें डॉ संजय निषाद जी को मजबूत कर निषाद समाज को मजबूत कर अपने संवैधानिक हक़ को प्राप्त करना चाहिए।