अगर अंबेडकर नहीं होते और मनुस्मृति के सिद्धांतों पर ये देश चल रहा होता तो ??

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) के लिए मनोज अलीगढ़ी की विशेष रिपोर्ट साभार प्रकाशित, 29 जुलाई 2019। कुछ तारीखे आपकी सोच बदल देती हैं... मेरे लिए ऐसी ही एक तारीख 14 अप्रैल 2000 है... आज से 18 साल पहले उस दिन भी बाबा साहेब अंबेडकर की जयंति थी... मैं तब इंदौर के भास्कर टीवी में रिपोर्टर था... मेरे बॉस ने मुझे इंदौर से 25 किलोमीटर दूर महू (बाबा साहेब अंबेडकर की जन्मस्थली) जाकर अंबेडकर जयंति कवर करने का असाइनमेंट दिया लेकिन मैं महू ना जाने के लिए बहाने बनाने लगा क्योंकि बचपन से लेकर उस दिन तक मैंने अंबेडकर को हमेशा नफरत की नज़र से देखा था... मैं एक ऐसी सोसाइटी के अंदर पला बढ़ा था जहां अंबेडकर के बारे में यही कहा जाता था कि “इस आदमी ने हमारा हक छीन लिया”...
 खैर नई-नई नौकरी थी इसलिए मजबूरी में मुझे महू जाना पड़ा... लेकिन वहां जो मैंने देखा उन तस्वीरों को मैं आज तक नहीं भुला पाया हूं... हर साल की तरह उस दिन महू में करीब 5-6 लाख लोगों की भीड़ थी... और इस भीड़ की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि इनमें से कोई भी भाड़े पर नहीं बुलाया गया था...
    ना कांग्रेस, ना बीजेपी, ना बीएसपी, ना आरपीआई ये किसी के कार्यकर्ता नहीं थे... ये तो बस बाबासाहेब के अपने लोग थे, जो अपने खर्चे पर अपने परिवार के साथ वहां पहुंचे थे... क्या गज़ब का उत्साह था लोगों में... आंखों में चमक, चेहरे पर गर्व, होंठो पर मुस्कान... ऐसी खुशी कि जैसे कोई महाकुंभ में शामिल होने आए हैं... लाखों-लाख लोगों का हुजूम झूमता नाचता गाता बाबा साहेब की जन्मस्थली को ओर बढ़ रहा था...
    लेकिन जन्मस्थली पर मैंने जो देखा वो तो और भी रोमांचित कर देने वाला था... एक पिता ने अपने दुधमुंहे बच्चे को उस स्थान पर लेटा दिया जहां बाबा साहेब का जन्म हुआ था... वो ऐसा करने वाला अकेला पिता नहीं था... सैकड़ों पिताओं को मैं उस दिन यही करते देख रहा था और हर दुधमुंहे बच्चे के चेहरे को देखकर बाबा साहेब के लिए मेरी 22 साल की नफरत धुलती जा रही थी... क्योंकि मुझे उस पल ये अहसास हुआ कि इनमें से हर बच्चा एक ऐसे समाज में अपना खूबसूरत भविष्य बनाएगा जिसकी तकदीर बाबा साहेब ने लिखी है...
मैं शाम को अपने शहर इंदौर लौटा... 
   MG (महात्मा गांधी) रोड गया... नेहरू स्टेडियम के सामने से गुज़रा... इंदिरा गांधी नगर से भी गुज़रा... और तब मैंने यही सोचा कि इन नेताओं के नाम को सिर्फ सड़क, चौराहे, मोहल्लों, स्टेडियम और सरकारी परियोजनाओं की तख्तियों पर टांग दिया गया हैं लेकिन इस देश में किसी नेता का नाम अपने लोगों के दिल में लिखा है तो वो सिर्फ और सिर्फ बाबा साहेब अंबेडकर हैं...
अंबेडकर के अनुयायी उन्हे भगवान मानते हैं...
   क्या आप ये बात गांधी, नेहरू, नेताजी, इंदिरा गांधी के बारे में कह सकते हैं?? .. नहीं... बिल्कुल नहीं...
आपने कितने गांधी वादियों के घर के मंदिर में गांधी की तस्वीर भगवान के साथ लगी देखी है?
    कितने कांग्रेसियों के घरों में मंदिरों में नेहरू और इंदिरा की तस्वीर है?
    कितने संघियों के घर में उनके मंदिर के अंदर हेडगेवार और गोलवलकर की तस्वीर है? कितने भाजपाइयों ने अपने मंदिरों में श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय की तस्वीर लगाई है?
.... लेकिन किसी दलित के घर जाइए आपको बाबासाहेब उनके मंदिर में “आपके भगवान” के पास नज़र आ जाएंगे...
एक मिनट के लिए तर्क के साथ सोचिए जार्ज वाशिंगटन से लेकर अब्राहम लिंकन तक... मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्सन मंडेला तक... विंस्टन चर्चिल से लेकर ब्लादमीर लेनिन तक... मोहन दास करमचंद गांधी से लेकर मोहम्मद अली जिन्ना तक... क्या दुनिया में किसी नेता को भगवान का दर्जा हासिल हुआ है????
    इस बात को जान लीजिए कि अंबेडकर ने सिर्फ दलितों का ही भला नहीं किया है बल्कि उन्होंने भारत के हर सवर्ण के माथे पर लगे कलंक को धोया है... अगर अंबेडकर नहीं होते और मनुस्मृति के सिद्धांतों पर ये देश चल रहा होता तो हमारी हालत 60, 70 और 80 के दशक के दक्षिण अफ्रीका की तरह होती... जिससे पूरी दुनिया ने नाता तोड़ लिया था... आज हम अगर सर उठा कर दुनिया के सामने खड़े हैं तो इसके पीछे सिर्फ एक शख्स है...  और वो है “ *भारत रत्न बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर* ”
(टीवी पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव की पोस्ट सोशल मीडिया से लेकर साभार प्रकाशित)