होलिका हिन्दू बहन का दहन क्यों? बहुत ही तर्कपूर्ण जानकारी

सामाजिक क्रांति हेतु, आपको जागरूक करने के लिए संकलित यह लेख 5 पार्ट में प्रस्तुत किया जा रहा, हम आशा करते हैं कि आप इन सभी लेखों को ध्यान से पढ़ने के बाद इस लिंकः को कमसे कम 5 व्हाट्स ग्रुपों और 5 लोगों को व्यक्तिगत रूप से व्हाट्सएप नम्बर पर शेयर जरूर करेंगे... 



पार्ट : 1

होलिका हिन्दू बहन का दहन क्यों?

   ब्राह्म्णवादियों की मूर्खतापूर्ण और छल-कपट की हजारों कहानियों में एक कहानी यह भी प्रचलित है, जो हिन्दुओं में त्योहार के रूप में ढोल नगाड़ों के साथ मनाई जाती है।

    नास्तिक महाबली अनार्य राजा हृणयाकश्यप का नालायक पुत्र प्रह्लाद नसेड़ी, गजेड़ी और मानसिक गुलामी में भगवान का भक्त था। स्वाभाविक है, राजा के साथ खणयंत्र कर, बाप-बेटे में दुश्मनी पैदा कर दी गई होगी, जो आजकल भी कुछ परिवारों में देखने को मिल जाया करती है।

   धोखेबाजी, काल्पनिक कहावत है कि, होलिका को बरदान था कि, वह आग से नहीं जलेगी और यदि प्रह्लाद भगवान का सच्चा भक्त होगा तो, उसे भी कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा (जो आज के वैज्ञानिक युग में, सच्चा भगवान भक्त और बरदान जैसी दोनों बातें पूर्णतया धूर्त और मनगढ़ंत साबित हो गयी हैं। यदि ऐसा जो नहीं मानता है, तो प्रह्लाद की तरह आज कोई सच्चा भगवान भक्त साबित करके दिखाएं)। 

   कहावत है कि, बरदानी होलिका (बूआ), प्रह्लाद (भतीजा) को गोदी में लेकर बैठ गई, आग लगाई गई, 99% मूर्ख जनता तमाशबीन बनी देख रही थी, सबके सामने होलिका जल मरी और प्रह्लाद बिना किसी नुकसान के, सकुशल हंसते-नांचते बाहर आ गया। होलिका के मरने और प्रह्लाद के बचने की सभी लोगों ने उस समय खुशियां मनाई। नांच गाने के साथ, एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगाते हुए खूब मिठाइयों का आनंद लिया था। सबसे बड़ी बात की, पता नहीं क्यों, आजतक उसी आनंद में सभी मस्त हैं। लेकिन बरदान तो फेल हो गया? इस पर विचार कौन करेगा?

  (आज यदि ऐसी घटना हो जाए तो, सभी तमाशबीन मूर्ख जेल की सलाखों के अंदर चले जाएंगे।)

    यह मनगढ़ंत कहानी सिर्फ और सिर्फ भगवान के अस्तित्व को सही साबित करने के लिए रची गई थी। इस तरह की मनगढ़ंत कहानियां आज भी कयी रूपों में देखने सुनने को मिल रही हैं, जैसे अभी करोना लाकडाउन समय में, सोसल मीडिया में औरतों द्वारा करोना माई की पूजा-पाठ करते हुए, देखने को मिला। सुनने को भी मिला कि, इस करोना माई (देवी) को गाय माता ने करोना रोग को ठीक करने के लिए पैदा किया है।

     क्या हमलोग इस वैज्ञानिक युग में इतने मूर्ख हैं कि, इस तरह की काल्पनिक कहानियों को सत्य मान बैठे हैं? और एक मां, बहन, बेटी को जिंदा जलाने का जश्न, त्योहार के रूप में मनाते हैं? आप पता लगाइए, पूरे विश्व में, कहीं भी, किसी भी संप्रदाय में, किसी भी तरह की मौत का जश्न नहीं मनाया जाता है? यहां तक कि खूंखार आतंकियों के मारे जाने का भी नहीं। क्या ओसामा बिन लादेन के भी मरने का कोई जश्न मनाता है?

      कम से कम, उन परिवार के लोगों को होलिका बहन के जिन्दा दहन के दर्द का एहसास तो होना चाहिए, जिसके परिवार की बहन-बेटियों को दहेज लोभियों ने जिन्दा जलाकर मार डाला है।

      अभी दो साल पहले मैंने अपने एक धार्मिक दोस्त को होलिका मनाने की तैयारी करते समय, मजाक में ही कह दिया था कि, एक औरत को जिंदा जलाने में तुम्हें कुछ अपराध बोध नहीं लगता है? हंसते हुए, अरे पहले से परम्परा चली आ रही है। चार महीने बाद ही उसकी पत्नी को कैंसर हो गया और उसके दिमाग में बैठ गया कि, यह होलिका दहन के कारण हुआ है।

   सिर्फ अपराध करना ही पाप नहीं है, वैसी गलत सोच रखना भी अपराध है। इन्सान अपने किये गये अपराधों के फल के परिणाम से भोगता है, लेकिन शायद इन्सान पहले अपने आपराधिक कर्म के बारे में सोचता नहीं है, सिर्फ भाज्ञ और नसीब को कोसता है। क्यों कि यह सबसे आसान तरीका अपराध बोध से बचने के लिए उसके दिमाग में गोबर भर दिया गया है।

   ठीक है, चलो, होलिका दहन के बहाने ही, कुछ पागल गधों की बात मान लेते हैं और आज भी देखने को मिल रहा है। जैसे असफल बलात्कार या बलात्कार के बाद सबूत मिटाने के लिए, लड़की को जिंदा जला दिया जाता है। कभी कभी सुनने को मिलता है कि आपसी कलह के कारण, पती ने पत्नी को भी जलाकर मार डाला, आदि। कयी तरह की घटनाएं और उस अपराध को छिपाने के लिए मनगढ़ंत दुर्घटनाओं का अंजाम दे दिया जाता है। अभी कुछ समय पहले, हाथरस की पुलिस ने मनीषा के साथ ऐसा ही वर्ताव किया था।

     थोड़े समय के लिए मानता हूं कि, पागलपन में जलाकर मारने वाला खुशियां मनाएगा। क्या पूरा समाज? अरे लानत है! ऐसे खुशी मनाने वाले समाज को! क्या आज भी यदि, आप की मां, बहन, बेटी जलायी जाती है तो आप खुशियां मनाते हैं? क्या होलिका किसी की मां, बहन, बेटी थी, की नहीं। यदि थी तो, वह बेशर्म, बेवकूफ जिसकी थी, वह क्यों खुशियां मनाता है? होलिका दहन के समय हमने किसी एक को भी, कहीं भी, रोते बिलखते नहीं देखा है।

     यदि आप थोड़ी भी समझ रखते हैं तो, आप यह बताइए कि, क्या सचमुच में होलिका भारतीय हिंदू नारी थी? या कोई और थी? यदि भारतीय नारी थी, तो क्या हम इतने पागल लोग हैं कि, हमें, अपनी मूर्खता का एहसास तक नहीं होता है?

    यदि आप में भारतीय नारी के प्रति सम्मान की भावना है तो, आज से प्रतीज्ञा करें कि, हम होलिका बहन के दहन जैसे जघन्य अपराध के त्योहार को नहीं मनाएंगे और दूसरे मनाने वालों का विरोध भी करेंगे। : शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

 पार्ट : 2

होलिका दहन ब्राह्मणी व्यवस्था में नारी के प्रति क्रूरता का प्रतीक है

हिन्दू धर्म रक्षक बताएं होलिका हिन्दू थी कि नहीं?

  यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता का जाप करने वाले होलिका दहन पर मुंह क्यों नहीं खोलते?

होलिका दहन (नारी दहन) पर भावना आहत गैंग की भावनाएं क्यों नहीं आहत होतीं?

ब्राह्मण धर्म में नारी को गुलाम बनाने का षड्यंत्र-

महा बृष्टि चलि फूटि किआरीं! जिमि सुतंत्र भएं बिगरहि नारी!! 

जैसे भारी बारिश में खेत की मेंड़ टूटकर पानी बहने लगता है वैसे ही स्वतंत्र होने पर नारी बिगड़ जाती है। 

नारि सुभाव संत सब कहहीं! 

अवगुन आठ सदा उर रहहीं!! 

नारी के स्वभाव के बारे में सभी संत कहते हैं कि उनके हृदय में आठ अवगुण हमेशा रहते हैं। 

विधिहुं न नारि हृदय गति जानी! 

सकल कपट अघ अवगुन खानी!

नारी के हृदय की गति ईश्वर भी नहीं जान पाता, वे सभी छल कपट अवगुणों की खान होती हैं। 

अधम ते अधम अधम अति नारी! 

तिन्ह मॅंह मैं मतिमंद अघारी!!

नारी अधम से भी अधम होती है

उसमें भी मैं तो और भी मतिमंद हूँ। 

   ये तुलसी दास दूबे रचित रामचरितमानस की नारियों के प्रति उस दृष्टिकोण को दर्शाती हुई कुछ चौपाइयां हैं जिस रामचरितमानस को आज तक ब्राह्मणी छावनी ने धर्म ग्रंथ कहकर प्रचारित किया और आज भी अपनी उसी भूमिका पर कायम हैं, रामचरितमानस ही नहीं सारे ब्राह्मणी ग्रंथों में महिलाओं के प्रति उनका यही दृष्टिकोण है क्योंकि उन्हें यह बात पता है कि -

     नारी गुलाम हुई तो बच्चे गुलाम होंगे, बच्चे गुलाम होंगे तो परिवार गुलाम होगा, परिवार गुलाम होगा तो, समाज गुलाम होगा, समाज गुलाम हुआ तो, देश गुलाम होगा। गुलामी का यही नियम है इसीलिए ब्राह्मणों ने नारी को गुलाम बनाने के लिए उन्हें अपने ग्रंथों में दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर उन्हें पूजा पाठ व्रत उपवास अंधविश्वास के गर्त में ढकेल दिया। वास्तव में उनके सारे ग्रंथ नारी और शूद्रों को गुलाम बनाने के उद्देश्य से ही लिखे गए।

हर ग्रंथ में उन्हें हतबल, बेबस, लाचार, स्वाभिमान शून्य, अपमानित, प्रताड़ित, दीन हीन, भयभीत एवं परावलंबी ही दिखाने का प्रयास किया गया है।

ब्राह्मणी कहानियों में नारी पात्र को चाहे रामायण की सीता हो, उसे राम की अनुचरी के रूप में ही दिखाया गया है। सीताहरण, लंका विजय, अयोध्या वापसी और उसे गर्भावस्था में जंगल में छोड़ दिया जाता है और अंततः धरती में समाना अर्थात अपना जीवन समाप्त करना पड़ता है। सीता का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं।

महाभारत में द्रोपदी का चरित्र चित्रण, पांच पांडवों से उसका विवाह, युधिष्ठिर द्वारा उसे जुए में हारना, चीरहरण, कृष्ण की मदद से बचाव, वनगमन, महाभारत की लड़ाई पूरी कहानी में पांडवों की अनुचरी कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं।

मनुस्मृति में हर वर्ण की नारी को शूद्र माना गया है और उनको भी शिक्षा, संपत्ति, शस्त्र, सम्मान से वंचित रखने का प्रावधान है।

   एक कहानी में ब्राह्मण जब विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में हार जाते हैं तो उसे इनाम देने के बजाय षड्यंत्र करके उसकी शादी एक मूर्ख कालिदास से करा देते हैं।

गौतम ॠषि की पत्नी अहिल्या के साथ वेश बदलकर इंद्र बलात्कार करता है, गौतम ॠषि के शाप से वह निर्दोष नारी पत्थर बन जाती है, अंत में राम पैर से छूकर उसका उद्धार करते हैं।

कृष्ण की नायिका राधा की सिर्फ यही भूमिका है कि वह कृष्ण से अथाह प्रेम करती है। कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं।

कृष्ण की पत्नियों की चर्चा सिर्फ उनकी पत्नी के ही रूप में।

 सृष्टि का सृजन करने वाली वास्तव में नारी ही है किंतु ब्राह्मणों के दिमाग से जितने भी भगवान पैदा हुए सब के सब पुरुष ही, इन्होंने एक भी महिला ईश्वर की कल्पना तक नहीं की।

ये सोच ही नहीं सकते की ईश्वर नारी भी हो सकती है।

इनके द्वारा अनेक ग्रंथों में सतियों का खूब महिमामंडन किया है, जिसके फलस्वरूप इस देश में मानवता को शर्मसार करने वाली सती प्रथा चल पड़ी जिसे अंग्रेजों को कानून बनाकर रोकना पड़ा।

देवदासी प्रथा के विरोध में कानून के बावजूद यह प्रथा दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में आज भी दिखाई देती है।

वास्तव में मातृसत्तात्मक भारतीय समाज को ब्राह्मण गुलाम बना ही नहीं सकते थे, इसीलिए सतत नारी के विरुद्ध कथा कहानियाँ लिख लिखकर, सामाजिक नियम कायदे बनाकर और उन्हें राजाओं के माध्यम से लागू करवाकर, इस समाज को पितृसत्तात्मक समाज बनाने का सफल षड्यंत्र किया, जिसके कारण भारतीय नारी निरीह और लाचार पुरुषों पर आश्रित, सदा भयभीत, दीन हीन प्राणी मात्र बनकर रह गई, जिससे ब्राह्मणों के अंधविश्वास, पाखंड, व्रत उपवास, स्वर्ग नर्क, मोक्ष उद्धार की खेती लहलहा उठी।

  आज देश आजाद होने एवं संविधान में बराबरी का दर्जा मिलने के बावजूद इसी ब्राह्मण धर्म के कारण भारतीय महिलाओं की जितनी तरक्की होनी चाहिए थी, नहीं हो पाई। और जब तक महिलाएं इस ब्राह्मणी षड्यंत्र को नहीं समझेंगी हो भी नहीं पायेगी।

इसलिए सभी प्रगतिशील भारतीयों का यह कर्तव्य है कि देश की आधी आबादी महिलाओं को, इस ब्राह्मणी धर्म के मकड़जाल से बाहर निकालने का प्रयास करें।

  और होलिका दहन जो एक भारतीय नारी को जलाकर (भले प्रतीकात्मक ही सही) जश्न मनाने का ब्राह्मणी उत्सव है। बल्कि यों कहें कि फसलों के तैयार होने पर पारंपरिक रूप से मनाये जाने वाले हमारे वसंतोत्सव में यह विकृति घुसेड़कर किया जाने वाला विद्रूपीकरण है, उस होलिका दहन में भाग न लेकर अपनी जागरूकता का परिचय दें।

पार्ट : 3

वे लोग क्या क्रांति करेंगे?

एक अमेरिकी पत्रकार ने एक भारतीय ब्राह्मण का इंटरव्यू लिया।

पत्रकार : संसार में जहां भी किसी का शोषण हुआ है वहां शोषितों द्वारा एक क्रांति हुई है। आप भारत में पिछड़ों, दलितों के साथ पिछले 5000 सालों से अत्याचार करते आ रहे हैं जिनकी संख्या 85% है! फिर भी वे लोग शोषण के विरोध में क्रांति क्यों नहीं करते?

ब्राह्मण : वे लोग बच्चे पैदा कर सकते हैं लेकिन अपने बच्चों का नाम नहीं रख सकते। वे लोग मकान बना सकते हैं लेकिन हमारे बिना घर में प्रवेश नहीं कर सकते। वे लोग शादी कर सकते हैं लेकिन हमारे बिना तारीख नहीं निकाल सकते। वे लोग कोई भी व्यवसाय कर सकते हैं लेकिन हमारे बिना शुभ मुहूर्त नहीं निकाल सकते। जो लोग अपनी जिंदगी के कोई भी फैसले स्वयं नहीं ले सकते, जिन लोगों को अच्छे बुरे का ज्ञान न हो, जिन लोगों को आज भी अपने मां-बाप से ज्यादा देवी-देवताओं पर विश्वास हो, जो लोग कुत्ते-बिल्ली, पेड़-पौधों, विधवा सधवा को अशुभ मानते हों, जो लोग शिक्षा से दूर भागते हों, मजबूरी को किस्मत मानते हों, जो लोग बीमारी को देवता का प्रकोप मानते हों।* 

वे लोग क्या क्रांति करेंगे?

पार्ट : 4

तमिलनाडु सरकार ने बिल पास करके राज्यपाल से कुलपति नियुक्त करने का अधिकार छीना

    आप सोच रहे होंगे कि तमिलनाडु सरकार के मुख्य मंत्री एम. के. स्टालिन ने आखिर मे इतना साहसी कदम क्यों उठाया ? यह समझने के लिए हमको एम्. के. स्टालिन की वैचारिक पृष्ठभूमि और उनके द्वारा सामाजिक न्याय के पक्ष मे उठाए गए  अन्य साहस भरे फैसलों के विषय मे जानना अति  आवश्यक है। 

1. तमिलनाडु में ओबीसी, एससी, एसटी के पक्ष में ईडब्लूएस आरक्षण को लागू न करना।

2. नीट में सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वालें विद्यार्थियों के लिए 7.5% आरक्षण की व्यवस्था करना। उल्लेखनीय है कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले लगभग 99% विद्यार्थी ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग से आते हैं।

3. तमिलनाडु के मंदिरो में ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग को आरक्षण की व्यवस्था प्रदान करना।

4.  तमिलनाडु में पहले से ही 69% आरक्षण प्रदान किया गया है, जिसमें ओबीसी को 50% आरक्षण प्राप्त है, जिसे न्यायिक पुनरावलोकन से सुरक्षित रखने के लिए संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दिया गया है।

एम. के. स्टालिन को सामाजिक न्याय के पक्ष में यह सब फैसले लेने का साहस दक्षिण पूर्व एशिया एवं भारत के सुकरात तथा आधुनिक काल के पैगम्बर् (युनेस्को द्वारा प्रदत्त उपाधियां), आडम्बर, अन्धविश्वास, पाखंड के प्रबल विरोधी सामाजिक न्याय के स्तम्भ पेरियार (संत) ई वी रामास्वामी नायकर् के क्रांतिकारी विचारों की मजबूत पृष्ठभूमि से प्राप्त होता है और इसी वैचारिक् पृष्ठभूमि के दम पर स्टालिन ने ओबीसी, एससी, एसटी के आरक्षण का घोर विरोधी आरएसएस, बीजेपी एजेंट के रूप मे काम करने वाले तमिलनाडु के राज्य पाल से कुलपति नियुक्त करने की शक्ति विधेयक लाकर कर छीन लिया है। ऐसी स्थिति मे तमिलनाडु के राज्य पाल अब संघी मानसिकता के कुलपतियो की नियुक्ति नहीं कर पाएंगे। जिससे तमिलनाडु राज्य के विश्वविद्यालयों मे ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के प्रोफेसर और विद्यार्थियों के हित, पूर्व की भांति सुरक्षित रहेंगे । 

उल्लेखनीय है, कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक भी कुलपति ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग का नहीं है, क्योंकि राष्ट्रपति में एसटी समाज से होने के बाद भी साहस नहीं है और पीएम नकली ओबीसी है। ऐसे ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर संघी मानसिकता के लोगों को बैठा कर प्रोफेसर् और आई ए एस लेटरल एंट्री से बनाए गए हैं और बनाये जाएंगे, जिसमें ओबीसी, एससी, एसटी, आवेदन करने योग्य नहीं होगा। क्या स्टालिन महोदय को ईडी और सीबीआई का डर नहीं है? सारा डर उत्तर भारत के ही ओबीसी, एससी, एसटी नेताओं को ही है। : सगा चंद्र पाल वर्मा भाई (सामाजिक न्याय चिन्तक और कार्यकर्ता)


पार्ट : 5

🔵 ललई सिंह यादव को अहीर / यादव बिरादरी ठीक से ले एवं जान ले।

🔵 डॉ राम स्वरूप वर्मा को कुर्मी / पटेल बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले।

🔵 महराज सिंह भारती को जाट बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले।

🔵 कोतवाल धन सिंह गुर्जर और राजा मिहिर भोज को यदि गुर्जर समुदाय पढ़ ले और जान ले।

🔵 जगदेव प्रसाद कुशवाहा को कुशवाहा, महतो, मौर्य, कोइरी बिरादरी ठीक से पढ़ ले एवं जान ले।

🔵 पेरियार को गड़ेरिया, पाल  समाज ठीक से पढ़ ले एवं जान ले।

🔵 संत बाबा गाडगे को धोबी समाज ठीक से पढ़ ले एवं जान ले।

🔵 दक्ष प्रजापति संतराम बी ए को कुम्हार प्रजापति समाज जान ले पढ़ ले।

🔵 ज्योति राव फूले को माली सैनी समाज पढ़ ले।

🦚 कर्पूरी ठाकुर को नाई समाज पढ़ ले, जान ले।

🦚 सर छोटूराम को जाट, गुर्जर समाज पढ़ ले, जान ले।

🦚 शिवदयाल सिह चौरसिया को पान किसान, बरई चौरसिया समाज पढ़ ले,जान ले।

🦚 संत ब्रह्मानंद लोधी जी को एवं रघुनाथ सिंह लोधी को लोधी समाज पढ़ ले, जान ले।

💐वीरांगना फूलन देवी जी को निषाद, बिंद, कश्यप समाज पढ़ ले, जान ले।

🔵 बिरसा मुंडा, टाटिया भील को नायक, भील समाज ठीक से पढ़ ले और 

🔵  बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर को पूरा दलित समाज ठीक से पढ़ ले और 

🔵 कार्ल मार्क्स को आदिवासी समाज को पढ़ा दिया जाय.....

तो समझो भारत के हर एक क्षेत्र में बेहतरीन परिणाम मिलने से कोई 'माई का लाल' नहीं रोक सकता ...काश ओबीसी, एससी, एसटी के इन और ऐसे बहुत और महापुरुष हैं, उनको अपनी अपनी जाति-बिरादरी के लोग, अपने-अपने समाज के इन महापुरुषों को पढ़ लें तो भी बहुत बड़ा सामाजिक, आर्थिक 'क्रांतिकारी परिवर्तन' आज भी देश में सम्भव है...

🌹 जय भारत 🌹 जय संविधान 🌹