भारतीय इतने भ्रष्ट क्यों होते हैं ? कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नहीं होती ??

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) सोशल मीडिया ब्यूरो रिपोर्ट, 3 अगस्त 2019। भारतीय इतने भ्रष्ट क्यों होते हैं ? कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नहीं होती ?? इसके लिए आपको इस लेख को एक बार ध्यान से पूरा पड़ना बहुत ही जरूरी है।
     दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैंलें भष्टाचार पर एक लेख लिखा है। ये लेख सोशल मीडि़या पर काफी वायरल हो रहा है। लेख की लोकप्रियता और प्रभाव को देखते हुए विनोद कुमार जी ने इसे हिन्दी भाषीय पाठ़कों के लिए अनुवादित किया है। –
न्यूजीलैंड से एक बेहद तल्ख आर्टिकिल।

भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले हैं (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)
     भारत में भ्रष्टाचार का एक कल्चरल पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार में बिलकुल असहज नहीं होते, भ्रष्टाचार यहाँ बेहद व्यापक है। भारतीय भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते है। कोई भी नस्ल इतनी जन्मजात भ्रष्ट नही होती।
   ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यों होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराऐं देखिये।
    भारत में धर्म लेनेदेन वाले व्यवसाय जैसा है। भारतीय लोग भगवान को भी पैसा देते हैं इस उम्मीद में कि वो बदले में दूसरे के तुलना में इन्हे वरीयता देकर फल देंगे। ये तर्क इस बात को दिमाग में बिठाते हैं कि अयोग्य लोग को इच्छित चीज पाने के लिये कुछ देना पडता है। मंदिर चहारदीवारी के बाहर हम इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनी भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने गिफ्ट गरीब को नहीं देता, भगवान को देता है। वो सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बरबाद होता है।
   जून 2009 में द हिंदू ने कर्नाटक के मंत्री जी जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरो के 45 करोड मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढ़ाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नही जानते कि इसका करे क्या। अरबों की सम्पत्ति मंदिरो में व्यर्थ पड़ी है।
   जब यूरोपियन इंडिया आये तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाये। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।
   भारतीयो को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन चाहते हैं तो फिर वही काम करने में कुछ कुछ गलत नहीं है। इसीलिये भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।
    भारतीय कल्चर इसीलिये इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि
1- नैतिक तौर पर इसमे कोई नैतिक दाग नहीं आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता में आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशो में सोच भी नहीं सकते ।
2- भारतीयों की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास में स्पष्ट है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियों को, रक्षकों को गेट खोलने के लिये और कमांडरों को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत में है।
    भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप में बेहद सीमित युद्ध हुये। ये चकित करने वाला है कि भारतीयो ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना में कितने कम युद्ध लड़े। नादिरशाह का तुर्को से युद्ध तो बेहद तीव्र और अंतिम सांस तक लडा गया था। भारत में तो युद्ध की जरूरत ही नहीं थी, घूस देना ही सेना को रास्ते से हटाने के लिये काफी था। कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना में लाखो सैनिक हो, हटा सकता था।
    प्लासी के युद्ध में भी भारतीय सैनिकों ने मुश्किल से कोई मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 में सिमट गई। भारतीय  किलों को जीतने में हमेशा पैसो के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 में पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलों ने मराठों और राजपूतों को मूलतः रिश्वत से जीता।
   श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केसेज हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बड़े पैमाने पर गद्दारी की।
   सवाल है कि भारतीयो में सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यों है ? जबकि जहाँ तमाम सभ्य देशो ममें ये सौदेबाजी का कल्चर नहीं है।
3- भारतीय इस सिद्धांत में विश्वास नहीं करते कि यदि वो सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे, क्योंकि उनका “विश्वास/धर्म” ये शिक्षा नहीं देता। उनका कास्ट सिस्टम उन्हे बांटता है। वो ये हरगिज नहीं मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस में बंटे और दूसरे धर्मो में भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन ,बुद्ध और कईओं ने इसाई और इस्लाम धर्म अपनाये। परिणामतः भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते। भारत में कोई भारतीय नहीं है, वो हिंदू, ईसाई, मुस्लिम आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वो एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार कल्चर को जन्म दिया। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज में परिणित हुई, जिसमें हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनके विश्वास में खुद रिश्वतखोर है।
(लेखक-ब्रायन,
गाडजोन , न्यूजीलैंड)
(समाज की बंद आँखों को खोलने के लिए यह खबर साभार प्रकाशित की गई है)