लालू यादव आखिर क्यूं जेल में हैं ?

लालू यादव आखिर क्यूं जेल में हैं ?
लालू यादव ने पत्थर तोड़ने वाली चूहे खाकर पेट भरने वाली मुसहर जाति की जिस भगवतिया देवी को देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में भेजा तो सामन्तियों की आँखों के लट्टू बाहर आ गए... 1997 में जब लालू जी के मुख्यमंत्री आवास पर छापे पड़े तो पटना के मिलर स्कूल मैदान में भगवतिया देवी अपनी छाती पीटकर गरजते हुए बोली, ”कौन सीबीआई? भगवतिया देवी ने पहाड़ों का सीना फोड़ा है, हमारे मसीहा को कुछ हुआ तो सीबीआई की छाती तोड़ दूँगी”। अब से पहले संसद में सिर्फ़ रानी बैठती थी, हमारे भगवान लालू ने रानी के बग़ल में “मेहतरानी” को बैठा दिया। छापा लालू पर नहीं हम पर पड़ा है। मैं इनकी छाती चीर दूँगी।
      आज भी उस मुसहर भगवतिया देवी की बेटी समता देवी गया की बाराचट्टी विधानसभा से लालू की पार्टी से विधायिका है। यह है लालू का दोष। आप क्या समझते है लालू यादव का केस भ्रष्टाचार का मामला है? अगर ऐसा सोचते हैं तो आने वाली पीढ़ियों का नुक़सान कर रहे है।  भगवतिया देवी को लालू ने सांसद कैसे बनाया? बता रहे हैं लाल बाबू ललित-
   गया के किसी इलाके से लाल बत्तियाँ लगी गाड़ियाँ सांय सांय करती गुजर रही थी। आगे गाड़ी पीछे गाड़ी। गाड़ियों का काफिला। चमचमाती गाड़ियाँ।
   मुख्य सड़क से निकलता काफिला देहाती पगडंडियों की ओर पहुँचा। जून की वह तप्त दुपहरी।
   काफिला जैसे ही पहाड़ी की तलहटी से गुजरा, 300 मीटर दूर से एक अधेड़ , काली कलूटी, धूल से सनी हुई , पसीने से तर-बतर खुरदुरे हाथों से पत्थर तोड़ती और दूसरे हाथ से चेहरे पर बार-बार टपकते पसीनों को पोछती दिखी।
कपड़े भी क्या पहने थे, चिथड़ा मात्र था।
उन गाड़ियों के काफिले के मध्य से एक गाड़ी का शीशा खुला और पूरे काफिले को रुकने का आदेश हुआ।
गाड़ी के शीशा से हाथ निकाल उस व्यक्ति ने उक्त महिला को नजदीक आने का संकेत दिया। वह महिला डरी। पुलिस, बंदूक, बड़ी- बड़ी गाड़ियाँ।
 उसमें बैठे किसी व्यक्ति को भला उस बूढ़ी औरत से क्या काम और नाता हो सकता था।
एक चौकीदार को भी देखकर घर के ताले बंद कर लेने वाले व्यक्ति के सामने 6 फ़ीट वाले लंबे तगड़े पुलिसियों की बंदूक ताने देख वह महिला सचमुच डर गई होगी।
लेकिन किसी तरह गार्ड ने उसे बुलाया। उसे साहब के सामने लाया गया। उसे उसका नाम पता पूछा गया।
अगले लोकसभा चुनाव में वह बूढ़ी महिला देश के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा में सांसद बनकर लोगों के सामने थी।
जी, वह महिला थी गया की पूर्व सांसद भगवतिया देवी। मुसहर समुदाय की एक गरीब महिला।
और वह व्यक्ति जिसने अपनी गाड़ी के शीशे से हाथ निकालकर उस महिला को अपनी तरफ आने का ईशारा किया था वह कोई और नहीं बल्कि लालू यादव थे।
कोई यूँ ही नहीं मसीहा बन जाता और जिसकी रिहाई और खैरियत पूछने राँची में जगहें कम पड़ जाती हैं।
कोई यूँ ही लालू यादव नहीं हो जाता।
इसिलिए आरक्षण से उन्हे परेसानी है और वो आपके दिमाग में भरते है कि ये भीख है और आप अपना दिमागी संतुलन खो कर विरोध करने लगते हैं।
अगर आरक्षण गलत है तो वो कौन सा नियम है कि हर तरह के भौतिक, मानसिक वस्तुओ पद पर सिर्फ उनका राज है जबकि इतिहास भर पड़ा है कि वो सिर्फ भीख मांग के जीवन यापन करते थे।
तब तक सोचिये जब तक बुद्धि खुल न जाए।
मैं समानता, बंधुता, प्रेम बिना किसी भेदभाव के चाहता हूँ।
   सभार