भाजपा की योगी सरकार ने अनुसूचित जाति की सूची में डालने के बजाय "निषाद समाज" को डाला "फ्लड ज़ोन" में

सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश (Sultanpur, Uttar Pradesh) एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) रिपोर्टर राम सतन निषाद की विशेष रिपोर्ट। भाजपा की योगी सरकार ने अनुसूचित जाति की सूची में डालने के बजाय "निषाद समाज" को डाला "फ्लड ज़ोन" में।
     एक खबर के अनुशार गोमती नदी में बढ़ती गन्दगी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कड़ा रुख अपनाया है। अनुश्रवण समिति ने गोमती नदी की सफाई और एन जी टी के आदेशों के अनुपालन की गारंटी के लिए, एन जी टी से सिफारिश की है कि योगी सरकार फंड में 100 करोड़ रुपये जमा कराए। समिति का कहना है कि राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार के चलते मुख्य सचिव और अधिकारी अपने दायित्व पूरे नहीं कर पाये जिसकी वजह से गोमती प्रदूषित है।
     अपनी उक्त नाकामी को छुपाने के लिए, योगी सरकार को लगता है कि निषाद समाज के लोग ही गोमती नदी में ज्यादा कचरा करते हैं। एनजीटी का आदेश नहीं मान रहे हैं, इस लिए कड़ाई से पेश आते हुये, जिलाधिकारियों को आदेश दिया कि फ्लड ज़ोन चिन्हांकन कर नव निर्माण पर रोक लगाकर जल्द इन्हें नदी तट से 200 मीटर दूर भगा दिया जाय।
   जबकि निषाद समाज हिन्दू मुस्लिम में ध्रुवीकृत होकर 90 के दशक से अधिकांशतः भाजपा को वोट करता आया है। सत्ता के नशे में चूर योगी सरकार अपने इस वोट बैंक को आज भूल गयी। जहाँ सरजू नदी में 30 मीटर तो तमसा में 75 से हटाकर 50 मीटर का आदेश किया गया है, वहीं गोमती में 200 मीटर का आदेश क्या दर्शाता है, यही की अब इस समाज की जरूरत नहीं है।
     फ्लड ज़ोन में फंसा निषाद समुदाय क्या वोट की ताकत से अपनी रक्षा कर पायेगा ? जिस समाज के नेता लोभ-लालच या पद के शौकीन होंं, उस समाज का भला कैसे हो सकता है!!
  इस समाज पर योगी सरकार का कहर जारी है आरक्षण का आदेश वापस लिया, निषाद जयंती का अवकाश रदद् कर दिया और अब फ्लड जोन में डालकर इस समुदाय की नाराजगी मोल ले रही है योगी सरकार।     उत्तर प्रदेश की 125 से ज्यादा विधानसभाओं में 50 हज़ार से सबा लाख तक वोट के सहारे पूरे प्रदेश के कई जिलों में राजनीतिक समीकरण बिगाड़ने की क्षमता रखता है निषाद समुदाय, जिसका असर 2022 के उत्तर प्रदेश के विधान चुनाव में बखूबी देखने को मिलेगा।

भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ती गोमती सफाई की परियोजनाएं।
 (खबरों से प्राप्त डेटा)
   भाजपा की योगी सरकार के लिए चुनौती कैसे साफ हो गोमती।
    जल कल की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 - 17 में गोमती के पानी को कीटाणु मुक्त करने के लिये ब्लीचिंग पर 97 लाख और क्लोरीन पर 13 लाख रुपये खर्च करने पड़े थे, जबकि वर्ष 2018-19 में ब्लीचिंग का 179 लाख और क्लोरीन का बजट 20 लाख के पार पहुँच गया है।
   अभी लोक सभा चुनाव 2019 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गोमती सफाई के लिए 298 करोड़ रुपये जारी किये गये, फिर भी नहीं हुई साफ गोमती।
    एनजीटी की टीम के निरीक्षण के अनुशार गोमती नदी में नालों के अलावा खून और मांस के लोथड़े भी बहाये जा रहे हैं। यहाँ तक कि कई नालों व फैक्ट्रियों का गंदा पानी नदी में विना ट्रीटमेंट के छोड़ा जाता है। इसके बाद भी नदी की सफाई और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने का मुद्दा किसी भी राजनीतिक दल के चुनावी घोषणा पत्र में जगह नहीं बना पाता।
    बालागंज, वॉटर वर्क्स, गऊघाट वॉटर वर्क्स, और कठौला झील के जरिये, गोमती का पानी गोमती नगर, इंदिरानगर, हजरतगंज, चौक सआदतगंज, खदरा, शिवनगर, समेत कई प्रमुख इलाको में जाता है।
      गोमती नदी की सफाई पर करोड़ो रूपये खर्च करने के बाद भी उसे प्रदूषण मुक्त न रख पाने पर एनजीटी ने नोटिस जारी कर सरकार से सवाल किया है। एनजीटी ने पूंछा इतनी राशि खर्च करने के बाद भी गोमती इतनी गन्दी क्यों है ?

    अब बड़ा यह सवाल उठता है, कि सदियों से नदी तट का हिस्सा रहे निषाद समुदाय को नदी तट से 200 मीटर दूर किये जाने से क्या गोमती नदी साफ व स्वच्छ हो जाएगी ?