लखनऊ, उत्तर प्रदेश (Lucknow, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो रिपोर्ट।
यह एक गंभीर प्रश्न ही नहीं बल्कि देश के सामने एक बहुत बड़ी समस्या व चुनौती भी है। आज का भारत, जिसमें हम सभी लोग स्वछंद सांस ले रहे हैं, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डा.भीमराव अंबेडकर जैसे तमाम महापुरुषों के त्याग, बलिदान, संघर्षों के फलस्वरूप साकार हुआ है। गांधी जी ने देश की गरीबी, अशिक्षा, आर्थिक तंगहाली को बड़ी नजदीक से देखा था तभी तो उन्होंने एक लंगोटी और एक धोती से पूरा जीवन गुजार कर त्याग का संदेश दिया था। सरदार पटेल ने वारदौली किसान आंदोलन को धार देकर बहुसंख्यक किसानों-मजदूरों को एवं डा.अंबेडकर ने दलितों-कमजोर वर्गों, जो समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, छुआ-छूत, अंधविश्वास-श्रद्धा, पाखंड आदि जैसी सामाजिक बुराईयों से तंग आकर राष्ट्रीय धारा से कट चुके थे, की समस्यायों को अंग्रेजों के समक्ष उठाया कर उन्हें राष्ट्रीय स्वातंत्रता-जनांदोलन से जोड़ने का बेजोड़ कार्य किया था।
हमारे देश के प्रतिभावान युवाओं को देश के अंदर उचित मान-सम्मान व रोजगार के अवसर न मिलने के कारण विवश होकर विदेशों में जाना पड़ता है, दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक अपमान झेलने एवं पुस्तैनी रोजगार समाप्त होते जाने के कारण गांव के युवा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भाग रहे हैं, क्योंकि देश की आजादी के बाद भौतिकवाद की चकाचौंध की दौड़ में विशेषकर हमारे राजनेता, जो लोकतंत्र के नायक हैं और जिन्हें जनता अपना आदर्श मानती है एवं पूंजीपति असहिष्णु होते चले जा रहे हैं। राजनेताओं में नि:स्वार्थ सेवा भाव समाप्त हो गया है। राजनीति अब उनके लिए स्टेटश सिंबल एवं बिजनेस हो गयी है, उन्हें कितनी धन-दौलत चाहिए, कोई सीमा नहीं रह गयी है। पारदर्शी तंत्र का हमारे देश में लोप हो गया है। यहां तक कि न्यायालय से भी आमजन का विश्वास उठता जा रहा है। पूंजीपति अपनी दौलत की सीमा लांघते जा रहे हैं। श्रमिकों को इतना कम पारिश्रमिक देते हैं कि वे भविष्य के लिए निवेश ही नहीं कर पाते हैं। पूंजीपति अपनी लालच एवं स्वामित्व की भावना से ऊपर उठें और उस स्तर पर आ जांय, जिस स्तर पर पसीने की कमाई से पेट भरने वाला श्रमिक जीवन निर्वाह करता है। पूंजीपतियों को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए श्रमिकों का न्यासी बन कर अपनी अतिरिक्त दौलत को उनके बेतन की बढ़ोतरी जैसे कल्याणकारी सुविधाओं पर व्यय करना चाहिए, जिनके ऊपर वह अपनी पूंजी के निर्माण, उसकी रक्षा और उसके संवर्द्धन के लिए निर्भर हैं। यदि संबंधित पूंजीपतियों एवं सरकारें, जिनके विकास एवं संबृद्धि के लिए प्रवासी मजदूर कार्य कर रहे थे, द्वारा सक्षम वेतन व उनके बच्चों की सर्वतोमुखी शिक्षा की सुविधा के साथ ही कोरोना-19 की विषम परिस्थितियों में उनका विश्वास अर्जित किया गया होता तो प्रवासी मजदूर शहरों से पलायन के लिए मजबूर न होते।
उल्लेखनीय है कि हमारे देश की लगभग 8 लाख ग्राम सभाओं में खेती पर आश्रित 62 करोड़ किसान हैं तथा 28 करोड़ भूमिहीन मजदूर हैं, जो खेतों में मजदूरी करने के अलावा अन्य दिहाड़ियों पर कस्बों व शहरों में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण खेतों की जोतें भी छोटी होती जा रहीं हैं और गांवों में पुस्तैनी रोजगार के अवसर वर्तमान शहरीकरण व औद्योगीकरण़ के कारण समाप्त होते जा रहे हैं। फलस्वरूप देहात में गरीबी व बेरोजगारी भयावह होती जा रही है। इसलिए प्रवासी मजदूरों की उक्त समस्या के निराकरण हेतु गांवों में कृषि उत्पादों पर आधारित कुटीर उद्योग-धंधों को पुनर्जीवित एवं प्रोत्साहित करने के अलावा कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योग कहीं भी लगाने की अनुमति केवल ग्रामीण अंचल के बेरोजगार सहकारिता समूहों को ही 10 वर्ष के लिए कम से कम ब्याज दर पर बैंक ऋण की सुविधा प्रदान की जाय। इसी तरह प्रतिभावान युवाओं, जो देश से बाहर रोजगार के लिए मजबूरन जाते हैं, को भी कृषि उत्पादों से इतर उद्योग लगाने हेतु सहकारिता समूहों की तर्ज पर बैंक ऋण प्रदान कर रोजगार के अवसर अपने देश के ही अंदर उपलब्ध कराये जा सकते हैं, ताकि कोरोना - 19 जैसी महामारी को प्रवासी भारतीयों द्वारा दुबारा विदेशों से न लाया जा सके, जिसकी सबसे ज्यादा मार इन प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। इसके अलावा गांवों में जाति व्यवस्था की चेतना में अब भी व्याप्त ऊंच-नीच, छुआ-छूत, अपमान की कुप्रवृत्तियों के समूल उन्मूलन हेतु प्रभावी कानून के साथ ही सर्वतोमुखी शिक्षा व राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाय, तभी प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के निराकरण के साथ ही मा०प्रधान मंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान में समाज के अंतिम व्यक्ति की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।
उक्त मुद्दे पर मुख्य रूप से सर्वश्री सी.एल.गंगवार-बरेली, राम कृष्ण निगम-महानगर लखनऊ, सुयश त्रिपाठी-कल्याणपुर लखनऊ, विजय पटेल-आशियाना, रवी श्रीवास्तव व ए.के.सिंह-वृन्दावन कालोनी लखनऊ एवं राजेश पटेल-पारा लखनऊ का आभारी हूँ जिन्होंने अपने विचारों एवं सुझावों से लाभान्वित किया। लेखक - पटेल ज्ञान सिंह सर्व सेवा प्रमुख सर्व समाज सेवा संस्थान।
हमारे देश के प्रतिभावान युवाओं को देश के अंदर उचित मान-सम्मान व रोजगार के अवसर न मिलने के कारण विवश होकर विदेशों में जाना पड़ता है, दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक अपमान झेलने एवं पुस्तैनी रोजगार समाप्त होते जाने के कारण गांव के युवा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर भाग रहे हैं, क्योंकि देश की आजादी के बाद भौतिकवाद की चकाचौंध की दौड़ में विशेषकर हमारे राजनेता, जो लोकतंत्र के नायक हैं और जिन्हें जनता अपना आदर्श मानती है एवं पूंजीपति असहिष्णु होते चले जा रहे हैं। राजनेताओं में नि:स्वार्थ सेवा भाव समाप्त हो गया है। राजनीति अब उनके लिए स्टेटश सिंबल एवं बिजनेस हो गयी है, उन्हें कितनी धन-दौलत चाहिए, कोई सीमा नहीं रह गयी है। पारदर्शी तंत्र का हमारे देश में लोप हो गया है। यहां तक कि न्यायालय से भी आमजन का विश्वास उठता जा रहा है। पूंजीपति अपनी दौलत की सीमा लांघते जा रहे हैं। श्रमिकों को इतना कम पारिश्रमिक देते हैं कि वे भविष्य के लिए निवेश ही नहीं कर पाते हैं। पूंजीपति अपनी लालच एवं स्वामित्व की भावना से ऊपर उठें और उस स्तर पर आ जांय, जिस स्तर पर पसीने की कमाई से पेट भरने वाला श्रमिक जीवन निर्वाह करता है। पूंजीपतियों को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए श्रमिकों का न्यासी बन कर अपनी अतिरिक्त दौलत को उनके बेतन की बढ़ोतरी जैसे कल्याणकारी सुविधाओं पर व्यय करना चाहिए, जिनके ऊपर वह अपनी पूंजी के निर्माण, उसकी रक्षा और उसके संवर्द्धन के लिए निर्भर हैं। यदि संबंधित पूंजीपतियों एवं सरकारें, जिनके विकास एवं संबृद्धि के लिए प्रवासी मजदूर कार्य कर रहे थे, द्वारा सक्षम वेतन व उनके बच्चों की सर्वतोमुखी शिक्षा की सुविधा के साथ ही कोरोना-19 की विषम परिस्थितियों में उनका विश्वास अर्जित किया गया होता तो प्रवासी मजदूर शहरों से पलायन के लिए मजबूर न होते।
उल्लेखनीय है कि हमारे देश की लगभग 8 लाख ग्राम सभाओं में खेती पर आश्रित 62 करोड़ किसान हैं तथा 28 करोड़ भूमिहीन मजदूर हैं, जो खेतों में मजदूरी करने के अलावा अन्य दिहाड़ियों पर कस्बों व शहरों में जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण खेतों की जोतें भी छोटी होती जा रहीं हैं और गांवों में पुस्तैनी रोजगार के अवसर वर्तमान शहरीकरण व औद्योगीकरण़ के कारण समाप्त होते जा रहे हैं। फलस्वरूप देहात में गरीबी व बेरोजगारी भयावह होती जा रही है। इसलिए प्रवासी मजदूरों की उक्त समस्या के निराकरण हेतु गांवों में कृषि उत्पादों पर आधारित कुटीर उद्योग-धंधों को पुनर्जीवित एवं प्रोत्साहित करने के अलावा कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योग कहीं भी लगाने की अनुमति केवल ग्रामीण अंचल के बेरोजगार सहकारिता समूहों को ही 10 वर्ष के लिए कम से कम ब्याज दर पर बैंक ऋण की सुविधा प्रदान की जाय। इसी तरह प्रतिभावान युवाओं, जो देश से बाहर रोजगार के लिए मजबूरन जाते हैं, को भी कृषि उत्पादों से इतर उद्योग लगाने हेतु सहकारिता समूहों की तर्ज पर बैंक ऋण प्रदान कर रोजगार के अवसर अपने देश के ही अंदर उपलब्ध कराये जा सकते हैं, ताकि कोरोना - 19 जैसी महामारी को प्रवासी भारतीयों द्वारा दुबारा विदेशों से न लाया जा सके, जिसकी सबसे ज्यादा मार इन प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। इसके अलावा गांवों में जाति व्यवस्था की चेतना में अब भी व्याप्त ऊंच-नीच, छुआ-छूत, अपमान की कुप्रवृत्तियों के समूल उन्मूलन हेतु प्रभावी कानून के साथ ही सर्वतोमुखी शिक्षा व राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाय, तभी प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के निराकरण के साथ ही मा०प्रधान मंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान में समाज के अंतिम व्यक्ति की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।
उक्त मुद्दे पर मुख्य रूप से सर्वश्री सी.एल.गंगवार-बरेली, राम कृष्ण निगम-महानगर लखनऊ, सुयश त्रिपाठी-कल्याणपुर लखनऊ, विजय पटेल-आशियाना, रवी श्रीवास्तव व ए.के.सिंह-वृन्दावन कालोनी लखनऊ एवं राजेश पटेल-पारा लखनऊ का आभारी हूँ जिन्होंने अपने विचारों एवं सुझावों से लाभान्वित किया। लेखक - पटेल ज्ञान सिंह सर्व सेवा प्रमुख सर्व समाज सेवा संस्थान।