कोरोना-परेशान कर सकता है पराजित नहीं-कहती हैं चंदेरी साड़ियां

कोरोना-परेशान कर सकता है पराजित नहीं-कहती हैं चंदेरी साड़ियां
        विश्वव्यापी कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए एक ओर जहां सारी दुनिया के डॉक्टर पीड़ित मानवता को बचाने में जुटे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर इस महामारी से कैसे बचा जावे इस दिशा में शोध-अनुसंधानकर्त्ता शोध-खोज करने में जी जान से लगे हुए हैं। भारत सरकार एवं प्रदेश शासन हर स्तर पर महामारी कोरोना को परास्त करने के लिए हर संभव प्रयास हर स्तर पर कर रही है। धीरे-धीरे सारी दुनिया में पैर पसारती यह बीमारी बिना किसी भेदभाव के बिना किसी जांत पांत के, बिना किसी आरक्षण के हजारों की तादात में इंसानों को मौत के आगोश में शांत कर हमेशा-हमेशा के लिए सुला चुकी है।
      संपूर्ण भारत सहित चंदेरी में विश्वव्यापी महामारी कोरोना वायरस संक्रमण रोकथाम हेतु अपनाए गए उपायों के तहत भारत सरकार द्वारा माह मार्च में जारी और आज भी प्रभावशील लांक डाउन अंतर्गत जहां भारतीय मानव जीवन, मानवीय गतिविधियां अस्त-व्यस्त हुई है। वहीं दूसरी ओर संपूर्ण भारत में धंधा-कारोबार चौपट हुए हैं जिसमें से एक है हस्तशिल्प कला हाथकरघा कुटीर उद्योग। यह कुटीर उद्योग चंदेरी पर्यटन का मुख्य आधार होकर इस ऐतिहासिक एवं पर्यटन की आन- बान-शान है तो वहीं दूसरी ओर नगर वासियों की रोजी-रोटी का जरिया यानी नगर की जीवन रेखा है। नगर की अधिकांश आबादी इस हाथकरघा कुटीर उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। चंदेरी साड़ियां एवं अन्य ड्रेस मटेरियल को हाथकरघा के माध्यम से निर्मित करने वाले बुनकर एवं कुटीर उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े अन्य परिवारों का रोजी रोटी का एकमात्र जरिया यही हस्तशिल्प कला है। जिसे कोरोना वायरस के कारण अत्यधिक प्रभावित होना पड़ा है।
            यूं तो नगर के प्रत्येक गली-मौहल्ला में एक घर को छोड़कर दूसरे घर में हथकरघा स्थापित है। जिसके माध्यम से चंदेरी साड़ियों का निर्माण किया जाता है लेकिन संपूर्ण देश में लांक डाउन की वजह से बाजार बंद के अलावा यातायात के सभी साधन पूर्णता बंद होने के कारण मांग शून्य हैं। बुनकरों के घर में स्थापित अधिकांश हाथकरघा से निकलती खट-खट की आवाज खामोश है। जिसका असर उत्पादन पर पड़ा है और उत्पादन पर असर पड़ना यानी बुनकर परिवारों एवं कुटीर उद्योग से जुड़े अन्य सहायक परिवारों को हर हाल में प्रभावित होना ही है। क्योंकि यह एक इस तरह का कुटीर उद्योग है जिसमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न छोटी-छोटी स्थानीय इकाइयों का योगदान भी सम्मिलित रहता है। जिनका इस कुटीर उद्योग के माध्यम से चंदेरी साड़ी को सजाने संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका है। मसलन-चरखा चलाने वाले, रंगाई करने वाले, ताना बनाने वाले, डिजाइन का नाका बांधने वाले, किनारी तैयार करने वाले वगैरह-वगैरह। कहना यह है कि सब एक दूसरे के पूरक हैं।
         नगर स्थित सभी चंदेरी साड़ी शोरूम पर ताला लटका हुआ है। संपूर्ण भारत में आवागमन के रास्ते बाधित होने के कारण कच्चा मटेरियल रेशम, कतान, जरी इत्यादि आना बंद है। बुनकर काम करना चाहता है लेकिन वर्तमान हालातों के चलते साड़ी व्यापारी तक कच्चा मटेरियल उपलब्ध ना हो पाने के कारण एवं भारतीय बाजार बंद यानी विक्रय बंद के चलते वह बुनकरों से साड़ी उत्पादन नहीं करा पा रहा है। दूसरे पूर्व से ही उत्पादित एवं क्रय किया गया माल हाजिर स्टांक है। बाजार और रास्ते कब खुलेंगे, बाजार में तत्काल मांग मिलेगी अथवा नहीं निश्चित नहीं। अतएव वह भी लांक डाउन में घर में हैं सुरक्षित हैं शासन द्वारा जारी दिशा निर्देशों का पालन करते हुए भारतीय बाजार की ओर आशा भरी नजरों के साथ टक-टकी लगाए हुए बैठा हैं।
      यानी सब मिलाकर यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि चंदेरी हस्तशिल्प कला, हाथकरघा कुटीर उद्योग से संबंधित समस्त गतिविधियों पर कोरोना वायरस का असर साफ- साफ दिखाई दे रहा है। यहां यह बताना भी आवश्यक है की एक नहीं अनेक बुनकर परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनके लिए यह रोजगार हर सप्ताह कुआं खोदना हर सप्ताह पानी निकालने जैसा था सबसे अधिक कोरोना वायरस की मार ऐसे बुनकरों परिवारों पर ही पड़ी है। जिसके चलते वह आज अपने ही घर में बेगाने-बेरोजगार होकर परिवार के समक्ष आ खड़े हुए रोजी-रोटी संकट से जूझ रहे है। दूसरी ओर ऐसे युवा साड़ी व्यवसायी जिन्होंने हाल ही में साड़ी व्यापार क्षेत्र में कदम रख कर अपने सतरंगी सपनों को ऊंचाइयां देने के लिए रंगीन ताना-बाना तैयार किया था अथवा ऐसे बुनकर जो स्वयं अथवा सहकारी समिति के माध्यम से धीरे-धीरे अपने हुनर और योग्यता के बलबूते पर अभी अभी अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए संघर्षशील थे। आज कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न परिस्थितियों से सामना करने में अपने आप को असहाय बेबस विवश होकर कभी देखे गए अपने सपनों को आज पापड़ के मानिंद चकनाचूर होते हुए घर में बैठे-बैठे देख रहे हैं। सच्चाई यह है कि बुनकरों, मास्टर बुनकरों, व्यापारियों साथ ही हाथकरघा गतिविधियों से जुड़े तमाम परिवारों के समक्ष चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना वायरस को कोसने के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं बचा है।
        यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि कोरोना वायरस एक ना एक दिन देश-प्रदेश से विदा ले लेगा अथवा इससे बचने का कोई समाधान असरकारक दवा सामने होगी। लेकिन उसके द्वारा मचाई गई आर्थिक तबाही का शिकार हुआ यह हाथकरघा कुटीर उद्योग पटरी पर कब लौटेगा कहा नही जा सकता। कल तक जिस हालात में चंदेरी साड़ियां बुनकरों का पेट पालने का अच्छा-खासा जरिया बनी हुई थी पुन: उस स्थिति में लौटने हेतु कम से कम कितना वक्त लगेगा आज कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं।
            बावजूद इसके प्रति वर्ष सौ करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाला, सभी वर्ग समुदाय के लिए रोजगार का सृजन करने वाला, आपसी भाईचारा प्रेम सदभाव का मिलाजुला ताना-बाना तैयार करने वाला यह कुटीर उद्योग आत्म विश्वास के साथ कह रहा है कि इतिहास गवाह है कि 14वीं-15वीं सदी से निरंतर नगर में उपस्थिति दर्ज कराए हुए इस कुटीर उद्योग ने विभिन्न कालखंड में एक बार नहीं, कई बार, कई प्रकार की आसमानी-सुल्तानी परेशानियों का सामना किया है। कभी उन्नति तो कभी अवनति के स्वाद को चखा है, तो कभी अलविदा पलायन जैसी परिस्थितियों से मुंह मिलाना पड़ा है तो कभी बंद होने की कगार पर भी पहुंचा है। यदि मुगलिया सल्तनत के दौर में कारखाना को स्थापित होते हुए देखा तो आगे के दौर में शाही कारखाना बंद करने का फरमान को भी सुना है। तो वही दूसरी ओर बुनकरों के लाभ के लिए ग्वालियर रियासत सिंधिया राजघराना द्वारा टेक्सटाइल संस्थान की स्थापना, संरक्षण संवर्धन अच्छे दिनों से रू-ब-रू भी हुआ है। तो उसे 1944 ईस्वी में आई गिरावट फलस्वरूप उभरी पलायन परिस्थितियों का दर्द आज भी याद है तो वहीं 2002 ईस्वी में अनायास उमड़-उमड़ कर छाए टैक्स रूपी काले बादलों की वह काली घटा आज भी आंखों में समाई है।
          आशय यह है कि यह कुटीर उद्योग हर बार वक़्त के थपेड़ों से कभी टकराकर तो कभी अपने आप को बचते-बचाते हुए, तो कभी मार खाकर खट्टे-मीठे अनुभवों से दो-चार होते हुए और उन समस्त अनुभवों को अपने दामन में संजोए हुए नगर में हर हाल में हर काल में हाजिर जवाब रहा है।
       उम्मीद की जाती है कि इस बार भी यह कुटीर उद्योग अपने पुराने अनुभवों के बलबूते पर जान है तो जहान है को सामने रखते हुए वर्तमान समय में आई इस आसमानी मुसीबत से भी बाहर निकलने हुए अपनी पूर्वगामी जबरदस्त प्रतिरोधक क्षमता को बरकरार रखते हुए कहेगा कि कोरोना परेशान कर सकता है पराजित नहीं क्योंकि टाइगर जिंदा है।


        फिलवक्त बुनकर परिवारों में दिखाई देती एवं तेजी से दिन-ब-दिन बिगड़ती आर्थिक स्थिति के मद्देनजर मध्यप्रदेश शासन हाथकरघा विभाग, मध्यप्रदेश हस्तशिल्प विकास निगम एवं केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय से विशेष पैकेज अंतर्गत सहायता संबंधित रोजगार सृजन की गुहार चंदेरी हस्तशिल्प कला की मांग है। ताकि विश्व प्रसिद्ध चंदेरी साड़ियां एवं उससे जुड़े गरीब परिवारों का रोजी-रोटी का जरिया पूर्ववत जारी रहें।