किसी भी सरकारी संगठन का उद्देश्य समाज कल्याण के लिए कार्य करने के लिए होता है

     किसी भी सरकारी संगठन का उद्देश्य समाज कल्याण के लिए कार्य करने के लिए होता है लेकिन संगठन से जुड़ने व शक्ति पाने के बाद इसके ज्यादातर सदस्य अपने मूल उद्देश्य को भूल जाते हैं और स्वयं के हितों के लिए कार्य करना आरंभ कर देते हैं। जो कि विकास के नकारात्मक पहलू अवनति की ओर ले जाता है। जनवरी माह में "आई द इकोनॉमिस्ट" के "इंटेलिजेंस यूनिट" की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की डेमोक्रेसी इंडेक्स में रैंकिंग 10 पायदान नीचे गिरकर 51 वें स्थान पर आ गयी है, जो कि लोकतांत्रिक देश की ओर अच्छा इशारा नहीं है। इसके लिए केवल नेतागण ही जिम्मेदार नहीं हैं,वरन कहीं न कहीं सरकारी कर्मचारी भी जिम्मेदार हैं। संसार प्रतिदिन, प्रति क्षण बदल रहा है, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो, सामाजिक सुविधा हो या प्रदूषण की बात हो, यह अपने सर्वोच्च शिखर पर है। पृथ्वी पर सभी देश किसी न किसी तरह अपने हितों के लिए कार्य कर रहे हैं। ऐसे समय में हम एक राष्ट्र भारत की सम्प्रुभता की बात करें तो समय आ गया है हम अपनी एकता का प्रमाण दें। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भारतीय समाज में चर्चा होती है बस अधिकार और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों पर कोई एकता की गरिमा और मौलिक शब्द चर्चा के कभी नहीं आते। इस सभी के समानान्तर, प्रसाशनिक व्यवस्था ने भी अपना उल्लू सीधा करने में कहीं कसर नहीं छोड़ी। उच्च पदों पर तैनात अधिकारियों ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की क्लास लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अगर सभी मिलकर एक देश, एक राष्ट्र भारत के लिए काम करें, तो शायद भारत इस संकट के दौर से बहुत जल्द निकल सकता है। कोई भी क्षेत्र के उच्च अधिकारी हों, ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का, अधिकतर अपने जूनियर की सलाह लेने में हमेशा शर्मिंदगी ही महसूस की है। जनता की नजरों में हमेशा से सबसे ऊंचा व सम्मान की दृष्टि पाने वाली सेना भी इससे अछूती नहीं है। सेना के अधिकारियों ने अपने व्यक्तिगत कार्यों को करवाने हेतु कर्मचारियों के इस्तेमाल करने में कभी पैर पीछे नहीं किये। जिसके चलते खुद केंद्रीय सरकार कोफैसला लेना पड़ा कि किसी भी सहायक कर्मचारी से व्यक्तिगत काम नहीं कराया जाएगा। जब किसी सैनिक को उसके कर्तव्य की शेप7दिलाई जाती है तो वह उसे सच्चे हृदय से ग्रहण करता है। उसकी निगाह में गर्व के साथ साथ भारतीय जनता और मातृभूमि भी रहती है। सपथ पत्र में अपने सीनियर अधिकारियों की आज्ञा का पालन भी उल्लेख किया जाता है, लेकिन बाद में हालात उसे उस लीक से हटकर उसे कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। कर्मचारी का सारा नियंत्रण अधिकारी के हाथ में दे दिया गया है, जिसे वह कोई भी रूप या आकर दे सकता है। कहीं कुछ गलत हो रहा है या सरकारी संपत्ति का नुकसान हो रहा है और कर्मचारी इसमें थोड़ा सा भी शामिल है तो वह चाह कर भी कुछ नहीं बोल सकता और बोलेगा भी तो कहीं न कहीं सबसे नीचे वाले सदस्य का भी योगदान न हो। 

      इस संबन्ध में रामधारी सिंह दिनकर जी की दो पंक्तियां मील का पत्थर साबित होती हैं-
चोरों के हैं हितु, ठगों के बल हैं
जिनके प्रपंच से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच सबको प्रश्रय देते हैं
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं। 
"यह पाप का उन्हीं के हमको मार गया है
भारत अपने ही घर में हार गया है"
समय की मांग है कि सभी नौकरशाह आपस में भातृत्व व मैत्रतापूर्ण व्यवहार बनाकर संगठन का उद्देश्य पूरा करने हेतु करें। याद रखें कि हम सभी का कार्य एक राष्ट्र भक्त मां भारती को समर्पित है। इसमें प्रशिक्षण के साथ साथ निरन्तर संविधान का मूल उद्देश्य व मौलिक कर्तव्यों को हृदय व मस्तिष्क में समाहित करने की आवश्यकता है। 


 -अनुज कुमार
(kumaranuj20698@gmail.com)
(यह लेखक के अपने विचार हैं)