सावधान! किसान आंदोलन रूका या टूटा, तो फिर सरकार की मनमर्जी के खिलाफ नहीं उठेगी देश में कोई आवाज

   जिस तरह मोदी सरकार पूंजीपतियों के हाथों का खिलौना बन कर देश में निजी करण की एक्सप्रेस चलाते हुए धड़ाधड़ जन विरोधी कानून ला रही है और उन पर जो विरोध होता है सरकार उन्हें कहीं ना कहीं आतंकवाद, नक्सलवाद या दूसरे नामों से जोड़कर हिंदू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण करके उनकी हवा निकालती आई है। जिस तरह मोदी सरकार आज देश में अन्नदाता किसानों के आंदोलन को आतंकवाद और नक्सलवाद से जोड़कर इस आंदोलन को तोड़ने का प्रयास कर रही है इससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार किसी भी कीमत पर उद्योग घरानों से नाता ना तोड़ते हुए किसानों द्वारा अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर खड़े गए किए गए आंदोलन को हर कीमत पर तोड़ना चाहती है और उसने किसानों के बीच से ही किसान के विरोध में संघ से जुड़े किसानों को लामबंद करना शुरू कर दिया है। इस बार इस किसान आंदोलन में करीब-करीब हर जाति धर्म का व्यक्ति जुड़ा है। अब तक देश में ओबीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों के जितने भी आंदोलन होते आए हैं उन आंदोलनों को सरकार ने मुसलमानों, जाटों, गुर्जरों और दलितों आदि के आंदोलन का नाम देकर आम जनमानस को उससे दूर करने का षड्यंत्र रचा है और सरकार उसमें कामयाब भी हुई है, मगर इस बार किसान आंदोलन सरकार पर भारी पड़ता दिख रहा है। 

    याद रखना, यदि किसानों का यह आंदोलन रुकता या टुटता है या किसान सरकार द्वारा लाए गए किसान विरोधी तीनों कानूनों को वापस कराने में विफल होते हैं, तो विश्वास कीजिए इस देश में फिर सरकार की मनमानी पर रोक लगाने की खातिर कोई भी आंदोलन सफल नहीं होगा और सरकार संविधान का राज समाप्त करके देश में अपना विधान लागू कर देगी। जिसमें देश की 85 प्रतिशत जनता हर क्षण जुल्म ज्यादती की चक्की में पिसती रहेगी और फिर से देश में वही ढाई तीन हजार साल पुरानी व्यवस्था पुनः स्थापित हो जाएगी, जिसमें अछूतों और शूद्रों ओबीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों को किसी भी तरह का अधिकार, तो बहुत बड़ी बात थी बल्कि उन्हें इंसान होने तक का भी अधिकार नहीं था। आप इसका अनुमान इस बात से ही  लगा सकते हैं कि जिन चंद उद्योगपति घरानों के हाथों की कठपुतली सरकार बन रही है उनमें एक भी ओबीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों का घराना नहीं है। इसलिए ओबीसी, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों को उनके हक अधिकार और अच्छा जीवन देने की खातिर देश की जनता का हर तबका किसानों के आंदोलन को खुलकर अपना भरपूर समर्थन दे और देश को बर्बाद होने से बचाने के लिए आगे आये। 


सबका नम्बर आएगा! भक्ति में तल्लीन सर्वाधिक यही तबका है! धर्म की छोड़ो, जीवन बच जाए यही बहुत है, तुमने जिन्हें चुना वो सब बेचने में लगे थे, लेकिन तुम तब भी इनकी ही पैरवी कर रहे थे क्योंकि तुम्हे लगा यह अपने नेता है, फला संगठन अपना है। लेकिन हम हमेशा आपको याद दिलाते रहते हैं, सरकार और कम्पनियां किसी की नहीं होती हैं, पहले उन्हें सिर्फ मुनाफा चाहिए था, अब उन्हें पूरा देश चाहिए, जनता को गुलाम बनाने पर तुले हैं।
जो आदमी टेलीकॉम कंपनियों को बंद कराने के लिए एकसाल तक डाटा फ्री दे सकता है!
वो किराना की दुकानो को बंद कराने के लिए सालभर तक दाल और आटा भी कम कीमत पर दे सकता है!! यह बात एकलव्य मानव संदेश नहीं कह रहा है, यह सरकार के नीति विभाग की खुद की योजना है जो समाचार पत्र में छपी इस खबर से भी स्पष्ट हो जाता है। 

भारत वनाम त्रिमूर्ति (अंबानी, अडानी, रामदेव) 
 
अप्रैल 2014 में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में चौथे नंबर पर पहुंच गई। बड़े गर्व का दिन था वो, जिन अंग्रेंजो ने कभी हमें लम्बे समय तक गुलाम बनाकर रखा, अब वे हमसे मीलों पीछे थे, क्योंकि हमारी 8.5 वाली जीडीपी की चाल दुनियां में सबसे तेज थी और इसीलिए 21 वीं सदी पर भारत की मोहर लगने की बातें वैश्विक मीडिया में शुरू हो गईं थीं। जी हां, वैश्विक मीडिया में, न कि देश के खरीदे हुए अपने ही चैनलों के स्टूडियो के भीतर। 
 कि तभी हमें अच्छे दिनों का कीड़ा काट गया। 
कोई बुराई नहीं थी उस कीड़े में। हमें तरक्की की रफ्तार बढ़ाने के बारे में सोचना ही चाहिये। 
फिर मोदी नीतियाँ लागू हुई, और 2016 तक भारतीय निर्यात आधा रह गया। अर्थव्यवस्था के कपड़े फाड़ देने वाला नोटबंदी जैसा मास्टर स्ट्रोक तो अभी बाकी था, जिसने छोटे उद्योगपतियों ने अपने उद्योग समेटकर रख दिए। 
साल था 2017 । जीएसटी ने अर्थव्यवस्था का बलात्कार  नोटबंदी से भी अधिक बेरहम तरीके से किया। लाखों छोटे उध्योगों की लाशें इस त्रिमूर्ति के एम्पायरों के तलघरों में एक बार और दफन हो गईं। 
कभी सोचा है ! कि किसी महिला के साथ समयंतराल में दो बार सामूहिक बलात्कार हो जाए और इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले (मीडिया) ही इसे मास्टर स्ट्रोक करार देने लगें, तो उस महिला का आगे भविष्य कैसा होगा ?
अप्रैल 2019 तक आते आते भारतीय अर्थव्यवस्था चौथे से सातवें नंबर पर पहुंच गई और जीडीपी की चाल 4.2 रह गई । ऐसा..  
अभी कोरोना तो आया ही नहीं था तो उसके नफे नुकसान गिनाने का कोई औचित्य नहीं। भारत तो 2019 के शुरू तक ही हार चुका था। 
यह सब देखने के बाद जून 19 में हम सोच रहे थे कि 2014 की तरह यह वर्ष भी मोदी को हटाकर सत्ता परिवर्तन लाएगा। शायद अच्छे दिनों का कीड़ा हममें कहीं बाकी था लेकिन अब आपके भीतर नहीं था। क्योंकि हिंदू मुस्लिम वाली मीडियाई डिबेट तब तक आपकी मानसिक नसबंदी कर चुकी थीं। आप उस मीडिया के चरसी नशे में झूम रहे थे जो साहेब के पादने को भी मास्टर स्ट्रोक बता रहा था तो फिर आप यह सब कैसे देख पाते? 
आज 2020। छोटे उद्योगपति खत्म, सब तरफ वे ही वे। पिछले दो माह में प्लास्टिक, लोहा आदि जैसे कई उत्पादो में 30 से 40 प्रतिशत की सोची समझी मंहगाई, क्योंकि अब वे ही वे। खनन और निर्माण से लेकर रिटेल चैन तक वे ही वे। आर्थिक सुधारों के नाम पर निजीकरण के हथियार द्वारा रेलवे सहित कई सरकारी कंपनियां एक-एक कर इनके निजी हाथों में पहुंच गईं। आर्थिक सुधार तो उदारीकरण से आते हैं, निजीकरण को तो देश बेचना कहते हैं। अरे यही तो करना था उन्हें, और भारत!! भारत और सिकुड गया। 
नतीजा ! अंबानी विश्व में चौथे अमीर हो गए, अडानी भारत में दूसरे नंबर के अमीर बन गए और 1200 करोड़ की पतंजलि एक लाख करोड़ की हो गई। और भारत ? भारत एशिया के सबसे गरीब देशों की श्रेणी शामिल हो गया!! भारत हार गया। 
जानते हैं भारत कैसे बनता है ?
98 प्रतिशत भारतीय छोटे व्यवसाइयों, किसानों तथा  दुकानों, छोटे उद्योगों, स्कूल, अस्पतालों, में प्राइवेट नौकरी करने वाले जैसे लोगों से भारत बनता है। यही है हमारा भारत।
रिलाइंस, अडानी, पतंजलि जैसी विकराल कंपनियों में भी भारत के एक प्रतिशत लोगों को भी रोजगार नहीं है। 
क्या चाहते हो ? सिर्फ इन तीन लोगों (त्रिमूर्ति) की खुशहाली या 134 करोड़ लोगों के भारत की खुशहाली ? 
कब जागोगे? जब ये सरकार भारत की रजिस्ट्री इस त्रिमूर्ति के नाम कर देगी तब ?
इस त्रिमूर्ति के सभी उत्पादों का बहिष्कार कीजिए और भारत को इनका गुलाम होने से बचाइये, क्योंकि गुलामी तो अपने बेटे, पिता या भाई की भी बर्दास्त नहीं हो पाती,  फिर इन्हें कैसे झेलोगे ?
   होशियार रहना होगा, अभी भी वक्त है, इस आंदोलन में अपनी भी आहुति दे दो, किसानों ने शुरू की है जंग, देश का आम नागरिक इसमें कूद जाए तो यह दलाल और इनके आका सबको भागना पड़ेगा। 

    आपको सावधान किया जाता है!! यदि यह किसान आंदोलन इस बार विफल हो गया, तो समझो फिर सरकार की मनमानी के खिलाफ इस देश में कोई भी आवाज उठाने की हैसियत नहीं रखेगा और देश विदेशी ताकतों का गुलाम होकर रह जाएगा जिसका खामियाजा हम सबको भुगतना पड़ेगा। इसलिए देश को बचाना है, तो किसान आंदोलन को समर्थन देना होगा। ऐसा देश के अधिकतर किसान नेताओं का ही नही बल्कि बहुत से बुद्धिजीवी वर्ग का भी मानना है। आओ भारत के चहुमुखी विकास के लिए किसानों का साथ दें और भारत को भारतीय ईस्ट इंडिया कंपनियों से के मुंह में चबाए जाने से बचाएं।

 आओ अब पत्रिकारिता के माध्यम सामाजिक एकता को मजबूत बनाएं..  

  जिम्मेदार मीडिया की पहुंच अब सोशल मीडिया के अधिकांश साधनों के द्वारा देश और दुनिया के हर कोने में तक हो रही है, आप भी इसके साथ जूड़कर समाज को मजबूत और जागरूक कर सकते हो।

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