गौतम बुद्ध ने क्यों कहा है
"मैं मार्ग दाता हूँ! मुक्तिदाता नहीं!!
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जो धम्म नहीं वह अधम्म है!
जो अधम्म है वही धर्म है!
धर्म को धम्म समझना गलत है।
हर धर्म में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।
जबकि गौतम बुद्ध का धम्म ईश्वर वाद को नहीं मानता।
धम्म में तर्क को प्रधानता दी गई है। इसमें किसी बात को परंपरा, किसी विद्वान के कहने आदि के कारण मानने से मना करके अपनी बुद्धि विवेक से तर्क की कसौटी पर कसने और योग्य लगे तभी मानने के लिए कहा गया है।
अर्थात अपना दीपक स्वयं बनने के लिए कहा गया है, पहले जानो, उस पर विचार करो, उचित लगे तो मानो, अन्यथा छोड़ दो। इसमें ठगी की गुंजाइश नहीं रहती, क्योंकि किसी की भी बात को आंख बंद करके नहीं मानना है।
धर्म में दुख का कारण परालौकिक यानी पूर्व जन्म का कर्मफल, भाग्य, ईश्वर का विधान आदि बताकर उसके निवारण के लिए वर्णव्यवस्था में निर्धारित कर्म निष्ठापूर्वक करने, पूजापाठ, कर्मकांड, व्रत उपवास,तीर्थयात्रा, दान दक्षिणा वगैरह करके, दुखों को कम या खत्म करने के उपाय के रूप में बताया गया है। यह परिकल्पना सर्वथा झूठ पर आधारित है! जब ईश्वर का ही अस्तित्व आज तक कोई सिद्ध नहीं कर पाया है तो, उसके द्वारा भाग्य के रूप में पूर्व निर्धारित दुख और पूजापाठ, कर्मकांड आदि से उन दुखों का निवारण कैसे संभव है? धर्म का आधार ही असत्य है, परालौकिक है, ईश्वर है, स्वर्ग है, नर्क है, जिसे आज तक किसी ने देखा ही नहीं यानी पूर्णतः अंधविश्वास।
अर्थात झूठ पर आधारित धर्म से अच्छे मानव और मानव समाज के निर्माण की उम्मीद कैसे की जा सकती है? धर्म अंधविश्वास और ऊंच, नीच, राग, द्वेष, हिंसा आदि से, बज बजाते, मानव समाज का ही निर्माण कर सकता है।
गौतम बुद्ध ने दुख की स्वीकृति और उसे दूर करने के उपाय करने को धम्म का आधार बनाया।
धम्म भाग्य, भगवान, पूर्व जन्म - पुनर्जन्म, जैसी काल्पनिक अवधारणाओं को खारिज करता है और कहता है कि दुख है तो दुख का कोई न कोई लौकिक कारण है, जिसमें मुख्य राग, द्वेष एवं तृष्णा, ये संवेदनाएं, हालांकि क्षणभंगुर हैं, लेकिन लोग इन्हें ही पकड़कर बैठ जाते हैं, इसलिए दुखी रहते हैं।
दुखों के निवारण के लिए धम्म में जो उपाय बताए गए हैं उन्हें अमल में लाकर किसी एक व्यक्ति अथवा समाज नहीं, बल्कि पूरे संसार को दुखों से मुक्त किया जा सकता है।
त्रिशरण-
1- बुद्धम् शरणम् गच्छामि
मैं अपनी बुद्धि की शरण में जाता हूँ।
2- धम्मम् शरणम् गच्छामि
मैं धम्म मार्ग (सद्मार्ग) को अपनाता हूँ। अर्थात सदाचार को अपनाता हूँ।
3- संघम् शरणम् गच्छामि
मैं सदाचारी लोगों के संघ में जाता हूँ।
इस दुनिया के महान समाज वैज्ञानिक गौतम बुद्ध ने कहा:
आत्मनिर्भर बनो!
शीलवान बनो!!
सदाचारी बनो!!!
सदाचारी बनकर सदाचारियों का संगठन बनाओ और बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लिए काम करो।
दुराचारियों से सावधान रहो!
सकारात्मक सोच रखो!!
गौतम बुद्ध ने अच्छा मनुष्य बनने के लिए जीवन आदर्श के पांच मापदंड (पंचशील) अपनाने की शिक्षा दी।
पंचशील-
1- किसी प्राणी की हिंसा न करना।
2- चोरी न करना।
3- व्यभिचार न करना।
4- झूठ न बोलना
5- नशीली वस्तुओं का सेवन न करना।
बुद्ध ने दुखों को दूर करने के लिए आठ मार्ग (आष्टांगिक मार्ग) बताया।
आष्टांगिक मार्ग-
1-सम्यक दृष्टि- यानी अंधविश्वास एवं अलौकिकता का त्याग करना।
2- सम्यक संकल्प- यानी जीवन की महत्वाकांक्षाएं उच्च स्तर की एवं सराहनीय हों।
3- सम्यक वाणी- यानी वाणी सत्य, विनम्र, बुद्धिसंगत व सार्थक होनी चाहिए।
4- सम्यक कर्मांत- यानी सही व्यवहार हमारे हर कार्य का आधार दूसरों की भावनाओं का आदर होना चाहिए।
5- सम्यक आजीविका-
बिना किसी को हानि पहुंचाए, बिना किसी के साथ अन्याय किए, जो आजीविका कमाता है, वही सम्यक आजीविका है।
6- सम्यक व्यायाम- इसका उद्देश्य है बुरी चित्त प्रवृत्तियों को रोकना, पहले से जो उत्पन्न हो चुकी हैं उन्हें दबाना एवं अच्छी चित्त प्रवृत्तियों को उत्पन्न करना जिनसे आष्टांगिक मार्ग के उद्देश्यों की पूर्ति हो।
7- सम्यक स्मृति- यह सतत जागरूकता व विचारशीलता का आह्वान करती है, बुरी भावनाओं को न आने देना।
8- सम्यक समाधि- इन मार्गों पर चलने में पांच बाधाएं आती हैं लोभ, द्वेष, आलस्य, संशय तथा अनिश्चय (बेचैनी) इन बाधाओं पर विजय प्राप्त करना ही समाधि है यह चित्त को एकाग्र करके सिर्फ भलाई सोचने की आदत डालती है।
बुद्ध ने शील पथ के बारे में बताया कि, व्यक्ति को इन सद्गुणों का अभ्यास करना चाहिए।
दस पारमिताएं-
शील, दान, उपेक्षा (अनासक्ति), नैष्क्रम्य (सांसारिक भोगों का त्याग), वीर्य (सम्यक प्रयत्न), शांति (क्षमाशीलता), सत्य (सत्यवादी होना), अधिष्ठान (दृढ़संकल्प), करुणा और मैत्री, ये दस पारमिताएं हैं।
गौतम बुद्ध कहते हैं मैं मार्ग दाता हूँ मुक्तिदाता नहीं इस सद्मार्ग पर चलना तुम्हें ही है।
इस प्रकार बुद्ध ने समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय जैसे महान मानवता वादी मूल्यों से महकते हुए मानव समाज के निर्माण का मार्ग बताया उसी मार्ग को बौद्ध धम्म कहते हैं,जिसे यदि दुनिया अपना ले तो यह संसार वास्तव में फूलों का महकता बाग बन जाएगा। सिर्फ धम्म और धर्म के उच्चारण में समानता के कारण धम्म को धर्म नहीं माना जा सकता दोनों में जमीन आसमान का अंतर है।
चन्द्र भान पाल (बी एस एस)