भाजपा और सारे मनुवादी बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्र शेखर जी के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं!! क्यों ??

   भाजपा और सारे मनुवादी बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्र शेखर जी के रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों व दोहों पर की गई टिप्पणी पर धर्म की दुहाई देकर उनके मनमाने अर्थ बताकर उन चौपाइयों दोहों के बचाव में व शिक्षा मंत्री जी के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं, जिनमें अधिकतर ब्राह्मण हैं। जबकि पूरा बहुजन समाज चन्द्र शेखर जी के साथ खड़ा है।

     मेरा मनुवादियों से सवाल है कि भारतीय समाज में नीच ऊंच छूआछूत के भेदभाव के स्रोत ये कथित धर्म ग्रंथ नहीं तो और क्या है, ब्राह्मण धर्म का कौन सा ऐसा ग्रंथ है जिसमें इस अमानवीय ऊंच नीच छूआछूत व अवैज्ञानिक अंधविश्वासों का महिमामंडन न किया गया हो? कौन सा ऐसा ग्रंथ है जिसमें ब्राह्मणों की सर्वोच्चता व क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्रों की नीचता को स्थापित करने का प्रयास न किया गया हो? किस ब्राह्मणी ग्रंथ में अंधविश्वास को खत्म करने एवं वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने की बात की गई है? 

   लगभग हर ग्रंथ में ब्राह्मणों का महिमामंडन एवं शूद्रों को अपमानित किया गया है और उनके लिए ऐसे ऐसे नियम बनाए गए हैं जो अत्यंत अमानवीय हैं। नीच ऊंच के भेदभाव के आधार पर बनाई गई वर्णव्यवस्था ही हर ब्राह्मणी ग्रंथ का आधार है। हर व्यक्ति जानता है कि ब्राह्मणों ने भारतीय समाज को अनेक ग्रंथ लिखकर चार वर्णों में बांट दिया है और हर ग्रंथ में खुद को सर्वश्रेष्ठ एवं शूद्रों को सबसे नीच बताया है। सबको यह भी पता है कि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कौन हैं लेकिन शूद्र कौन कौन हैं यह नहीं पता, ब्राह्मणों को तो अच्छी तरह पता है कि उनके ग्रंथों में वर्णित शूद्र कौन कौन हैं लेकिन वे अब उन्हें शूद्र नहीं हिन्दू कहते हैं। हालांकि दोनों का अर्थ नीच और गुलाम ही होता है, संविधान लागू होने के बाद सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को एससी, एसटी, ओबीसी व सामाजिक शैक्षणिक रूप से अगड़ी जातियों को जनरल कटेगरी में रखा गया।

   ब्राह्मणी ग्रंथों में शूद्रों को शिक्षा संपत्ति व सम्मान के अधिकार से वंचित रखने के नियम बनाए गए हैं! क्या एससी, एसटी, ओबीसी के सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण ये ब्राह्मणी ग्रंथ और ब्राह्मण धर्म नहीं है? जिसे आजकल ब्राह्मण हिन्दू धर्म कहते हैं। क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि एससी, एसटी, ओबीसी ही ब्राह्मणी ग्रंथों में वर्णित शूद्र हैं? 

    हिन्दू हिन्दू चिल्लाकर जब ब्राह्मणों की पार्टी भाजपा देश की सत्ताधारी पार्टी बनी तो आरक्षण सहित किसके अधिकारों को हड़प रही है और किसको ईडब्ल्यूएस आरक्षण दे रही है? विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका मीडिया और कार्पोरेट जगत में 80 से 90 प्रतिशत तक कौन कब्जा जमाए हुए हैं? क्या एससी, एसटी, ओबीसी भाजपा के हिन्दू की परिभाषा में फिट नहीं बैठते? या सिर्फ वोट लेने के लिए ही हिन्दू हैं! अधिकार मांगने पर शूद्र?

   85 से 90 प्रतिशत जनसंख्या होते हुए भी इनका प्रतिनिधित्व कहीं भी 10 से 15 प्रतिशत भी क्यों नहीं है? 

    भाजपा जाति आधारित जनगणना का विरोध क्यों कर रही है? क्या इसलिए कि ओबीसी की वास्तविक संख्या का पता चल जाएगा तो वे भी नौकरियों और संसाधन में संख्यानुपात हिस्सेदारी की मांग करने लगेंगे, जो भाजपा किसी कीमत पर देना नहीं चाहती! क्योंकि भाजपा ब्राह्मणों की पार्टी है और ब्राह्मणों को अच्छी तरह पता है कि ओबीसी ही ब्राह्मणी ग्रंथों में वर्णित असली शूद्र हैं। जाति आधारित जनगणना न करानी पड़े शायद इसीलिए राष्ट्रीय जनगणना 2021 को भाजपा सरकार आगे ढकेलने जा जा रही है।

  ब्राह्मणों ने पहले ग्रंथों में एससी, एसटी, ओबीसी को शूद्र लिखकर अशिक्षित रखकर समाज में उनके शोषण उत्पीड़न की व्यवस्था को स्थापित किया, आज संविधान व लोकतंत्र के बावजूद उन्हें हिन्दू बनाकर सत्ता पर कब्जा करके उन्हीं का शोषण उत्पीड़न व हकमारी करने में लगी हुई है और जब चन्द्र शेखर जैसा कोई जागरूक व्यक्ति उनके भेदभाव पर आधारित ग्रंथों पर उंगली उठाता है तो सारे मनुवादी तिलमिला उठते हैं। वे तो तिलमिलाएंगे ही, क्योंकि भांडा फूटने का डर सताने लगता है। लेकिन हिन्दू बनकर ब्राह्मणों के इशारे पर ता ता थैया करने वाले एससी, एसटी, ओबीसी कब जागेंगे? कब उन्हें मित्र और शत्रु की पहचान होगी? कब अपने समतावादी महापुरुषों फुले साहू अंबेडकर पेरियार को पढ़ेंगे? कब उनके सपनों का समृद्ध एवं प्रबुद्ध भारत बनाने के लिए एकजुट होकर अपने भारत का शासक बनेंगे? 

   जिस दिन शूद्र बहुजन युवा ब्राह्मणी मकड़जाल से बाहर निकल कर बुद्ध, कबीर, रविदास, फुले, साहू, अम्बेडकर, पेरियार आदि के विचारों से लैस हो जायेंगे, भारत से ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण शाही को उखाड़ फेंकेंगे और भारत की सत्ता अपने हाथ में लेकर हर प्राकृतिक संसाधन से परिपूर्ण अपने देश को तरक्की की बुलंदियों पर ले जायेंगे व संविधान द्वारा अपेक्षित समता स्वतंत्रता बंधुत्व व न्याय जैसे महान मानवीय मूल्यों को समाज में स्थापित करेंगे।

     जो खुद को नीच मान बैठे हैं उन्हें भी ब्राह्मणों ने तुष्टिकरण अभियान अन्तर्गत कुछ लोगों को नीच मानने की सुविधा प्रदान की है और वे खुश हैं कि कुछ लोग तो हैं जो हमसे भी नीच हैं वह उनपर अपनी उच्चता का धौंस जमा सकता है और जमाता भी है उसके साथ अपमान जनक भाषा में बात करना अपना अधिकार समझते हैं। वह भूल जाता है कि मैं जो व्यवहार अपने से नीचे वाले के साथ कर रहा हूं वही व्यवहार ब्राह्मण क्षत्रिय मेरे समाज के साथ करते हैं। उसका स्वाभिमान मर चुका होता है। वह यह नहीं समझ पाता कि यह मानव मानव को नीच ऊंच में बांटने वाली उस व्यवस्था में खोट है जिसको वह धर्म समझकर ढो रहा है ।

    जिस दिन उसके अंदर स्वाभिमान जागेगा (जो फुले, साहू, अम्बेडकर, पेरियार आदि महापुरुषों की विचारधारा व उनके संघर्षों को जाने बगैर संभव नहीं है), उसी दिन इस नीच ऊंच की बीमारी फैलाने वाले ब्राह्मण धर्म को लात मारकर बुद्ध के बताए समता स्वतंत्रता बंधुत्व और न्याय के  मानवतावादी व तर्कवादी वैज्ञानिकतावादी मार्ग पर चल पड़ेगा।

    चन्द्र भान पाल (बी एस एस), मुम्बई

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