*ओबीसीनामा-13* *अम्बेडकरवाद। भाग-3--*
*-प्रो. श्रावण देवरे*
*बाबा साहेब डाॅ अंबेडकर ने* *ब्राह्मण+क्षत्रिय+वैश्यों को*
*आरक्षण क्यों नकारा?*
लेख के दूसरे भाग में हम जाति व्यवस्था बनाने वाली मनुस्मृति व जाति व्यवस्था नष्ट करनेवाले भारतीय संविधान, इस मुद्दे तक आये थे अब लेख के तीसरे भाग में इन दोनों संविधानों के बीच जातीय युद्ध का अध्ययन करते हैं!
जाति निर्माण और जाति व्यवस्था का निर्माण मनुस्मृति का मुख्य उद्देश्य था। उसी के अनुसार ब्राह्मण राजा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के नीचे आए सामंती क्षत्रिय राजा, जिन्हें आगे चलकर सामंती क्षत्रिय जाति के रूप में जाना जाने लगा, इन सभी ने मनुस्मृति के कानूनों को सख्ती से लागू करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण वर्ण से ब्राह्मण जाति का विकास सहजता से हुआ। परंतु बौद्ध काल में सामंत कोई सामाज घटक नहीं था। अतः राजस्व वसूलने का कार्य राज्य द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा किया जाता था। जाति निर्माण की प्रक्रिया में ये राजकीय अधिकारी जातियों में परिवर्तित हो गये और अनुवांशिक हो गये। उसमें से गाँव पाटिल की उपाधि वंशानुगत हो गई और पाटिल जाति में परिवर्तित हो गई। कई गाँवों को मिलाकर जो राजस्व विभाग बनता था, उसका मुखिया एक सामंत होता था और वह भी एक जाति में परिवर्तित होकर अनुवांशिक हो गया।
बौद्ध काल में लुप्त हो चुकी क्षत्रिय जाति को जातिव्यवस्था ने पुनर्जीवित किया और उसमें से मराठा, जाट, पटेल, ठाकुर जैसी तथाकथित क्षत्रिय जातियों का निर्माण हुआ। ब्राह्मण पुजारियों ने हिरण्यगर्भ संस्कार करके इन सामंतों को क्षत्रिय जाति का प्रतिष्ठित दर्जा दिया। इन जातियों को ब्राह्मणी व्यवस्था ने विशेषाधिकार दिया। क्योंकि मेहनतकश किसानों, उत्पादकों और समाज के व्यावसायिक घटकों को जाति में कैद करने के लिए बल प्रयोग करने की जरूरत थी। मनुस्मृति की जातिव्यवस्था निर्माण के कानूनों को गाँव स्तर तक कड़क कार्रवाई करके लागू करने के लिए तथाकथित क्षत्रिय जाति का इस्तेमाल सामंती राजाओं और ब्राह्मण दरबारियों ने किया। इसीलिए क्षत्रिय जातियों को विशेषाधिकार देकर मुख्य सत्ता में शामिल कर लिया गया। जिसके कारण उन्हें सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई तथा सशस्त्र सेना रखने की अनुमति देकर गुंडागीरी और दहशत के बल पर जातिव्यवस्था निर्माण के मनुस्मृति के कानूनों को किसान, उत्पादक, व्यावसायिकों पर लाद दिया गया । उत्तर भारत में आज के ज़मींदारों की करणीसेना और रणवीर सेना आधुनिक क्षत्रिय जाति की दबंगई और आतंक का एक जातीय उदाहरण है! उस समय के सभी किसान और उत्पादक- पेशेवर जो क्षत्रिय जातियों की दबंगई और आतंक के शिकार हुए, आज ओबीसी के नाम से जाने जाते हैं। कुनबी, लोहार, सुतार, कुम्हार, नाभिक, माली, तेली, धनगर आदि की कम से कम 350 जातियाँ! इस उत्पादक पेशेवर जाति की मातंग, चर्मकार जैसी कुछ जातियों को बाद में अछूत घोषित कर दिया गया और गांव से बाहर निकाल दिया गया।
यह मनु द्वारा छेड़ा गया एकतरफ़ा जाति युद्ध ही था। इस युद्ध में किसान, उत्पादक तथा पेशेवर समाज घटक प्रतिकार न कर सकें इसलिए उन्हें शूद्र, हीन घोषित किया गया। जातीय युद्ध को एकतरफा बनाए रखने के लिए केवल इन तथाकथित क्षत्रिय जातियों को ही हथियार रखने की अनुमति दी गई और शूद्र जातियों पर शस्त्र बंदी लगा दी गई। उन्होंने इस डर से शूद्रों की शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिया कि यदि शूद्रों को शिक्षा मिल गई तो वे राज्य के कारभार में आ जाएंगे या अपना खुद का व्यवसाय विकसित कर लेंगे, शिक्षा से शूद्रों में से एक बौद्धिक वर्ग तैयार हो जाएगा और वे उनकी ब्राह्मणवादी साजिशों का पर्दाफाश कर देंगे। व्यापारिक शूद्र जातियाँ अपने उत्पाद दूसरे राज्यों या दूसरे देशों में बेचकर मुनाफा न कमा सकें, इसके लिए उनपर समुद्र बंदी और गाँव बंदी लाद दी गई। ब्राह्मणों ने मनुस्मृति में शूद्र जातियों पर धन संचय करने पर प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि वह धन संचय से हथियार खरीद सकता है और सशस्त्र विद्रोह कर सकता है। इस डर से कि वह अपने व्यवसाय के उत्पादों को बेचकर धन जमा कर सकता है, मनुस्मृति ने नकद में खरीद-बिक्री पर पाबंदी लगा दी और वस्तु विनिमय पद्धति ( सामान के बदले सामान) शुरू की। विभिन्न प्रतिबन्धों को लागू करके जाति निर्माण और जाति व्यवस्था के निर्माण की प्रक्रिया अखंड रूप से 1 ई. से 600 ई. तक लगातार दिन-रात चलती रही।
बाबा साहब को यह एकतरफा जाति युद्ध ढाँचा निषिद्ध लगा, इसलिए उन्होंने मनुस्मृति की होली जलाई और संविधान में व्यक्तिगत स्वतंत्रता देकर इस जाति युद्ध को दोतरफा बनाने का प्रयत्न किया। इस जातीय युद्ध को संवैधानिक दायरे में लोकतांत्रिक ढांचे के अन्तर्गत जातीय संघर्ष में बदल दिया । बाबा साहेब ने कलम के एक झटके से जाति निर्माण के सभी प्रतिबंधों को नष्ट कर दिया। इस जातीय संघर्ष को समानता के स्तर पर लाने के लिए उन्होंने प्रतिनिधित्व का सबसे बड़ा हथियार यानी आरक्षण दिया! सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में दलित, ओबीसी और आदिवासी जाति-जमाति को सुरक्षित प्रतिनिधित्व देकर लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर जाति-विरोधी लड़ाई को सक्षम बनाया।
बाबा साहब ने आरक्षण, एट्रोसिटी एक्ट जैसे हथियार केवल कनिष्ठ जातियों को ही क्यों दिये, ब्राह्मण+क्षत्रिय (मराठा)+वैश्य जातियों को क्यों नहीं दिए। इस पर भी हमें विचार करना चाहिए। बाबा साहब ने संविधान समिति और देश को यह बात समझा दी कि यदि समता की लड़ाई लोकतांत्रिक तरीके से ही करनी है तो शोषित- पीड़ित जातियों को विशेष साधन और अवसर देकर सक्षम बनाने की जरूरत है। संविधान तैयार होने के बाद 25 नवंबर 1949 को बाबा साहब ने संविधान समिति को संबोधित करते हुए जो भाषण दिया, उसमें उन्होंने उच्च जातीय सत्ताधारियों को चेतावनी दी कि,
".... How long shall we continue to deny equality in our social and economic life?..... We must remove this contradiction at the earliest possible moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy...." (Dr. Babasaheb Ambedkar, at Constituent Assembly, on 25th November 1948)
“… हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को कब तक नकारते रहेंगे? .... हमें यथाशीघ्र इस विरोधाभास को दूर करना होगा अन्यथा जो लोग असमानता से पीड़ित हैं वे राजनीतिक लोकतंत्र की संरचना को नष्ट कर देंगे।
कैम्ब्रिज इंग्लिश डिक्शनरी में 'ब्लो अप' शब्द का अर्थ इस प्रकार दिया गया है- 'to destroy something or kill someone with a bomb, or to be destroyed or killed by a bomb:' अर्थात बम जैसे विस्फोटक वस्तु का उपयोग करके उध्वस्त करना,' राख कर देना या खून कर देना, मार डालना, यानी खुले तौर पर खुला मैदानी युद्ध छेड़ देना।'
यदि इस संविधान द्वारा अपेक्षित राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता और सामाजिक समानता स्थापित नहीं हुई, तो शोषित पीड़ित जनता राजनीतिक लोकतंत्र को आक्रामक और हिंसक बनकर नष्ट कर देगी।'' बाबा साहेब के "Blow up" इस शब्द से यही सिद्ध होता है कि उन्हें भी जाति युद्ध की आशंका ही नहीं बल्कि वह अवश्यंभावी लग रही थी।
जाति व्यवस्था का निर्माण करते समय, ब्राह्मणों ने बर्बर, हिंसक और क्रूर क्षत्रिय जाति का निर्माण किया और उनके द्वारा पैदा की गई गुंडागर्दी की दहशत से, उन्होंने शूद्रादिअतिशूद्र वर्ण से अस्पृश्य जाति, पेशेवर शूद्र जाति, आदिवासी जनजाति और खानाबदोश (भटके- विमुक्त) जाति का निर्माण किया। . जाति व्यवस्था को नष्ट करते समय सबसे ज्यादा क्रूर और बर्बर विरोध क्षत्रिय जाति से ही होगा। बाबा साहेब को यह मालूम था।दलितों और आदिवासियों में बर्बर और हिंसक क्षत्रिय जातियों का मुकाबला करने की क्षमता नहीं है, क्योंकि वे गाँवों से बाहर हैं और सभी संसाधनों से वंचित हैं! गुंडे, बर्बर और हिंसक क्षत्रिय जातियों से आमने-सामने की मैदानी लड़ाई लड़ने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ ओबीसी जातियों में ही है यह बाबा साहेब जान चुके थे। इसीलिए बाबा साहब ने ओबीसी को *'सोता हुआ शेर'* कहा है । बस उसे जगाने की जरूरत है. इसलिए बाबा साहब ने संविधान में विशेष अनुच्छेद 340 डाला।
चूँकि दलित और आदिवासी गाँवों से बाहर रहते हैं, इसलिए उनकी जातियों (एससी और एसटी) को चिन्हित करके सूचीबद्ध करना आसान है और बाबासाहेब ने इसे आसानी से पूरा किया। लेकिन चूंकि ओबीसी जातियां गांवों में रहती हैं, इसलिए उन्हें चिन्हित करके सटीकता से ब्राह्मण+क्षत्रिय+वैश्य जातियों से अलग करना और उन्हें आरक्षण जैसी विशेष सुविधाएं और अवसर देना बहुत मुश्किल और अध्ययन का काम है। क्योंकि ओबीसी जातियों और क्षत्रिय जातियों में कई समानताएं हैं. अत: बाबासाहब को यह विश्वास था कि ओबीसी जातियों की सूची (OBC Shedule) तैयार करते समय गलती से यदि कोई क्षत्रिय जाति ओबीसी सूची में शामिल हो गई तो वह क्षत्रिय जाति गुंडागीरी, दबंगई करके सत्ता व आतंक के बल पर ओबीसी के सभी आरक्षणों को हड़प लेगी। बाबा साहेब को यह आशंका थी। बाबासाहब को डर यह भी था कि इस तरह तो जाति अंत का जाति संघर्ष पूरी तरह असफल ही हो जायेगा!
शब्द सीमा लांघी जा रही है इसलिए मैं अब यहीं रुक रहा हूँ। अगले भाग में प्रतिनिधित्व का -आरक्षण का हथियार केवल जाति के अंत के लिए ही है,यह सच होते हुए भी इस हथियार का उपयोग जाति व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कैसे षड्यंत्र किया जा रहा है और इस साजिश में क्षत्रिय जातियों की सक्रिय भूमिका क्या है इसकी चर्चा लेख के चौथे भाग में करेंगे!
*तब तक के लिए जय ज्योति!*जयभीम!! सत्य की जय हो!!!*
- *प्रो. श्रावण देवरे*
*संस्थापक-अध्यक्ष,*
*ओबीसी राजकीय आघाडी*
*मराठी से हिंदी अनुवाद*
*चन्द्रभान पाल*
*सवर्ण (उच्च जाति)और शुद्र नीच (जाति)*
*दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
1 *एक संविधान को नकारता है*
*दूसरा संविधान को मानता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है??*
2 *एक युद्ध में विश्वास करता है*
*दूसरा बुद्ध में विश्वास करता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
3 *एक फारवर्ड है*
*दूसरा बैकवर्ड है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
4 *एक खाता है (ब्राह्मण)*
*दूसरा दाता है (शुद्र)*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
5 *एक लूटता है(ब्राह्मण)*
*दूसरा लुटाता है(शुद्र)*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
6 *एक कमाता है*
*दूसरा गंवाता है*
*दोनों हिन्दू कैसे?*
7 *एक का पोषण होता है*
*दूसरे का शोषण होता है*
*दोनों हिन्दू कैसे ?*
8 *एक काल्पनिक है*
*दूसरा वास्तविक है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
9 *एक विषमता को मानता है*
*दूसरा समता को मानता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
10 *एक पाखण्ड को मानता है*
*दूसरा विज्ञान को मानता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
11 *एक पूरे देश का बनता है*
*दूसरे को सिर्फ जाति का नाम दे दिया जाता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है?*
12 *एक मंदिर पवित्र करता है*
*दूसरे से मन्दिर अपवित्र होता है*
*तो दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
13 *एक पूजने योग्य है*
*दूसरा पीटने योग्य है*
*तो दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
14 *एक को व्यवस्था में श्रेष्ठ समझा जाता है*
*दूसरा व्यवस्था में नीच समझा जाता है*
*तो दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
15 *एक सत्ता ऐश में रहता है,*
*दूसरा फुटपाथ पर रोता है* *दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
16 *एक होटलों में खाता है*
*दूसरा कचरे में से पेट भरता है*
*दोनों हिन्दू कैसे है??*
17 *एक देश पर राज कर रहा है*
*दूसरा गटर साफ कर रहा है* *दोनों हिन्दू कैसे हैं?*
18 *इन तथ्यों से साबित होता है कि हिन्दू धर्म नहीं है*
*यह तो सत्ता छीनने का एक राजनीतिक षड्यंत्र है।*
*क्या आपने कभी ऐसा भी सोचा है???*
*कि हिन्दू धर्म में वर्ण, वर्ण में शूद्र, शूद्र में जाति, जाति में क्रमिक ऊंच-नींच और ब्राह्मण के आगे सारे नींच...अब गर्व से कैसे कहें कि हम हिन्दू हैं ???*
*"गुलाम को गुलामी का एहसास करा दो गुलाम अपनी बेड़ियाँ खुद तोड़ कर फेंक देगा"*
👉 *कम से कम 10 ग्रुप में जरूर शेयर करें*