भारत और मानवता की तरक्की के लिए अज्ञान व अन्धविश्वासों का समूल नाश करना जरुरी है

 अंधविश्वास 

   अंधविश्वास वह बीमारी है जिस कारण हमने अतीत में इतना कुछ गंवाया है कि जिसकी पूर्ति करने में पता नहीं हमें कितने वर्ष और लगेंगे। हम जब इतिहास उठाते है और भारत की अनेकों हार का कारण जानना चाहते हैं तो, उसमें सबसे बड़ा कारण हमेशा अंधविश्वास के रूप में सामने पाते हैं। 

    



     याद कीजिए सोमनाथ के मंदिर का इतिहास जब सोमनाथ मंदिर का ध्वंस करने महमूद गजनवी पहुंचा था। तब सोमनाथ मंदिर के पुजारी इस विश्वास में आनन्द मना रहे थे कि गजनवी की सेना का सफाया करने के लिए भगवान सोमनाथ जी काफी हैं। लोग किले की दीवारों पर बैठे इस विचार से प्रसन्न हो रहे थे कि ये दुस्साहसी लुटेरों की फौज अभी चंद मिनटों में नष्ट हो जाएगी। वे गजनवी की सेना को बता रहे थे कि हमारा देवता तुम्हारे एक-एक आदमी को नष्ट कर देगा, किन्तु जब महमूद की सेना ने नरसंहार शुरू किया कोई 50 हजार हिंदू मंदिर के द्वार पर मारे गए और मंदिर तोड़कर महमूद ने करोड़ों की सम्पत्ति लूट ली। यदि उस समय 50 हजार हिन्दू इस अंधविश्वास में ना रहे होते और एक-एक पत्थर भी उठाकर गजनवी की सेना पर फेंकते तो सोमनाथ का मंदिर बच जाता और भारतीय धराधाम का सम्मान भी।

    यह कोई इकलौती कहानी नहीं है! जब धर्म की सच्ची शिक्षा देने वाले ऋषि-मुनियों के अभाव में, अज्ञान व अन्धविश्वास, पाखण्ड एवं कुरीतियां व मिथ्या परम्परायें आरम्भ हो गईं और  ढोंगी, पाखंडियों के डेरे सजने लगे तब, इसका परिणाम देश की ग़ुलामी के रूप में सामने आया। एक मन्त्र के सहारे लोगों को कायर बना दिया गया कि “जब-जब धर्म की हानि होगी तब मैं अवतार बनकर आऊंगा” इसी अंधविश्वास में वीर जातियां धोखा खाती रही और जिनको युद्ध क्षेत्र होना चाहिए था वे मन्दिरों में नगाड़े और घंटियां बजाते रहे। 

    दुर्भाग्य आज सूचना क्रांति और तमाम तरक्की के इस दौर में भी पाखंड जारी है, अंधविश्वास जारी हैं और आज पाखंडी लुटेरे अपने नये रूप धारण कर नये हमले कर रहे हैं। कोई बंगाली बाबा बनकर, भूत-प्रेत वशीकरण के नाम पर, झाड़-फूंक के जरिये रोग दूर और काली छाया दूर करने के नाम पर, कोई गृह नक्षत्र शांत करने के नाम पर, कोई नौकरी दिलाने के नाम पर, कोई पाप मुक्ति मोक्ष स्वर्ग और जन्नत के नाम पर, मानव समाज को गुमराह कर रहा है। काल बदले, कलेंडर बदले, लेकिन अंधश्रद्धा अपनी जगह खड़ी रही। भगवान, अल्लाह, गोड, गुरू को खुश करने के नाम पर आज हर संप्रदाय अधर्म फैलाने में लगा है। दुर्भाग्य यह है कि देश की सरकारें भी पाखंड और अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं। 

   यदि देखा जाये तो आज समाज में अंधविश्वास का बाजार इतना बड़ा हो चुका है कि, इसकी चपेट में पढ़े लिखे भी उसी तरह आते दिख रहे हैं, जिस तरह अशिक्षित लोग। यह सब लंबे संघर्ष के बाद मानव सभ्यता द्वारा अर्जित किए गए वैज्ञानिक अविष्कारों, आधुनिक विचारों और खुली सोच का गला घोंटने की कोशिश है। 

    यदि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर अंधविश्वास फैलाने वाले तत्वों और संप्रदायों के खिलाफ, उसका प्रचार-प्रसार कर रहे लोगो के खिलाफ एक्शन लेने का प्रावधान बना दे आज भी काफी कुछ समेटा जा सकता है। हमारा अतीत भले ही कैसा रहा हो पर आने वाली नस्लों का भविष्य तो सुधर ही जायेगा। साथ ही साथ इस स्थिति को दूर कर विजय पाने के लिए देश से अज्ञान व अन्धविश्वासों का समूल नाश करना जरुरी है, वरना धार्मिक तबाही, पिछली सदी से कई गुना बड़ी होगी और मानव समाज के लिए बहुत बड़े दुखों का कारण बनेगी।

     जन एवं राष्ट्र हित में साभार प्रकाशित : कमेंटेटर प्रेम कुमार का मेसेज है यह।