अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh),एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) सोसल मीडिया से साभार ब्यूरो रिपोर्ट, 8 फरवरी 2019। आज से लगभग एक दशक पूर्व आतंकवादियों द्वारा देश की सार्वभौमिकता को चुनौती देते हुए संसद पर हमला किया गया जिसको देश की मीडिया ने ज़ोर शोर से दिखाया। पर आज यही हमला देश की मनुवादी सरकार द्वारा संसद के अंदर से भारतीय संविधान पर किया गया तो हमारे देश के मीडिया ने जिस तरह की चुप्पी साधी हुई है उससे लगता है कि मीडिया बिका हुआ है या देश की शासक सरकार के आगे नतमस्तक है। जिस तरह से संसद मे संविधान की धज्जियां उड़ाई गई है वह बहुत ही दुखित करने वाला क्षण है। संविधान की मूल भावना को किसी भी क़ीमत पर बदला नहीं जा सकता है।यह सब जानते हुए भी सरकार द्वारा इस तरह की कार्रवाई किया जाना बहुत ही निंदनीय है। हमें संविधान में मिला आरक्षण कोई ख़ैरात नहीं है। यह आरक्षण- सदियों से शोषित समाज को, ऊपर उठाने के लिए तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को उनके शैक्षणिक और सामाजिक स्तर को सुधारने हेतु दिया गया है। आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। यह सब मनुवादी सोच के तहत, योजनाबद्ध तरीक़े से किया जा रहा है जिसका उद्देश संविधान में, हमें प्राप्त आरक्षण को समाप्त करना है। अभी बात, केवल ओपन कैटगरी से 10% कोटा सामान्य वर्ग को देने की नहीं है बल्कि ओपन कैटगरी के सारे के सारे 50.5% कोटे को चरणबद्ध तरीक़े से सामान्य वर्ग को देने की तैयारी है।अभी तो केवल आपकी परख करने भर के लिए ये सब किया गया है। संविधान विरोधी ताकतें देखना चाहती हैं कि “ज़ोर कितना है, बाजुओं में” और हम मूल निवासी इसका कितना विरोध करते हैं।
अगर आप हाल की कुछ घटनाओं पर ध्यान देंगे तो स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगी।
1. संविधान में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़े वर्ग को 49.50% आरक्षण मिला हुआ है शेष 50.50% आरक्षण "ओपन कैटागरी" के लोगों को के लिये था अर्थात "यदि आपने आरक्षण कोटे को क्लेम किया है और आप ओपन कैटेगरी के बराबर नम्बर प्राप्त कर लेते है तो आप ओपन कैटेगरी वर्ग में माने जाएंगे" परंतु इस सरकार ने नियमों में बदलाव करके अब यह कर दिया है कि- "यदि आप ने आरक्षण कोटे को क्लेम किया है और आपने ओपन कैटेगरी के बराबर नम्बर प्राप्त कर लेते है या आपने ओपन कैटेगरी को टॉप किया हो तो भी आप ओपन कैटेगरी वर्ग में नही माने जाएंगे।" आप आरक्षित श्रेणी में ही गिने जाएंगे। इस प्रकार से ओपन कैटागरी का "50.50% कोटा" सामान्य वर्ग के खाते मे चला गया। जिसका विरोध हम लोगों के द्वारा नहीं किया गया।
2.- सरकार के मंत्री द्वारा दो दिन पूर्व संसद में लिखित रूप मे बताया कि सामान्य श्रेणी को 10% आरक्षण देने से संबंधित कोई भी प्रस्ताव संसद में लाने की योजना नहीं है। फिर इसके विपरीत सरकार ने दो दिन बाद 06 जनवरी 2019 की आधी रात मे संविधान विरोधी प्रस्ताव तैयार कराया और 07-जनवरी को लोक सभा से पास करा लिया और 08 जनवरी को राज्यसभा से भी पास करा लिया, 09 जनवरी को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित भी कर दिया गया और 10 जनवरी को सरकार ने क़ानून बनाकर 10 % आरक्षण सामान्य वर्ग को दे दिया। जिनकी आमदनी 21,91 रुपया प्रतिदिन तक होगी। क्या ये लोग निर्बल वर्ग में आते हैं ?. आगे यह सरकार 10% आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 50.50% तक करने की योजना बना चुकी है। सरकार ने द्वारा निर्बल वर्ग की परिकल्पना केवल और केवलधनाढ्य व मनुवादियो को लाभ पहुँचाने के लिए कल्पित की है। इसके लिए कोई आर्थिक, सामाजिक या शैक्षिक पिछड़े होने का या कमज़ोर होने का या निर्बल होने के सम्बन्ध मे सर्वे कराने या किसी भी प्रकार के कमिशन या आयोग के गठन की आवश्यकता नहीं समझी।आख़िर क्यों ?.
ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ कि- इतने कम समय में संविधान विरोधी नियम बनाया गया हो।इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लोग संख्या बल मे कम होते हुए भी कितने शक्तिशाली हैं, जब लड़ाई शक्तिशाली से लड़नी हो तो संघर्ष और भी बड़ा हो जाता है आप लोग इस बड़े संघर्ष के लिए संगठित व तैयार रहें।
3- इसके उपरांत सरकार द्वारा राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में रोस्टर प्रणाली/कोटा लागू किया गया है। "रोस्टर प्रणाली में रिक्तियों के स्थान पर पदों के सापेक्ष भर्ती की जाती है।" सरकार का यह रोस्टर नियम लागू कर रही है यदि यह रोस्टर नियम लागू हो गया तो आने वाले चालीस वर्षों तक अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए एक भी नौकरी नहीं मिलेगी। यह बात संज्ञान में लाना आवश्यक है कि जब तक आरक्षित वर्गों को इन विश्वविद्यालयों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल जाता है तब तक रोस्टर प्रणाली लागू नहीं की जा सकती है। अभी भी तक देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग के प्रोफ़ेसर नगण्य हैं, इन विश्वविद्यालयों में हमारा प्रतिनिधित्व 49.50% के सापेक्ष 2% भी कम है फिर भी यह सरकार संविधान विरोधी कार्य करते हुए रोस्टर प्रणाली लागू कर रही है क्यों कि वर्तमान मे इन विश्वविद्यालयो मे सहायक प्रोफ़ेसर, प्रोफ़ेसर आदि की 50,000 से अधिक रिक्तियाँ उपलब्ध हैं। रोस्टर प्रणाली लागू होने से यह सभी रिक्तियां सीधे सीधे सामान वर्ग के लोगों के खाते में चली जाएंगी जो एक घोर अन्याय है। क्या इन रिक्तयो मे 22.50% अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व 27% अन्य पिछड़े वर्ग को हिस्सा नहीं मिलनी चाहिए ?
यह तो इस सरकार का टेलर भर ही है, अभी आगे देखियेगा, ओपन कैटेगरी का पूरा का पूरा 50.50 % आरक्षण सामंतवादियो/धनाढ्य व मनुवादियो को देने जा रही है।
"यह सरकार सामंतवादियो/धनाढ्य व मनुवादियो की है जो सत्ता व शासन का सुख भोग रहे हैं। हम लोग अभी भी नहीं जागे और सोते रहे तो इन मनुवादी व धनाढ्य लोगों से पैदा हुई संताने भी आगे चलकर युगों युगों तक शासन व सत्ता का सुख भोगती रहेगी और हमारी संताने खेती किसानी करते करते या इनका मैला सर पर ढोते-ढोते मर जाएंगी। इसलिए सभी लोग संविधान में दिए गए अपने अधिकारो को समझें और संघर्ष करें। जो मानव जीते जी अपने स्वाभिमान व सम्मान के लिए संघर्ष नहीं कर सका समझो उसका ज़मीर मर चुका है। वह इस धरा पर मानवरूपी पशु है।
अगर आप हाल की कुछ घटनाओं पर ध्यान देंगे तो स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगी।
1. संविधान में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़े वर्ग को 49.50% आरक्षण मिला हुआ है शेष 50.50% आरक्षण "ओपन कैटागरी" के लोगों को के लिये था अर्थात "यदि आपने आरक्षण कोटे को क्लेम किया है और आप ओपन कैटेगरी के बराबर नम्बर प्राप्त कर लेते है तो आप ओपन कैटेगरी वर्ग में माने जाएंगे" परंतु इस सरकार ने नियमों में बदलाव करके अब यह कर दिया है कि- "यदि आप ने आरक्षण कोटे को क्लेम किया है और आपने ओपन कैटेगरी के बराबर नम्बर प्राप्त कर लेते है या आपने ओपन कैटेगरी को टॉप किया हो तो भी आप ओपन कैटेगरी वर्ग में नही माने जाएंगे।" आप आरक्षित श्रेणी में ही गिने जाएंगे। इस प्रकार से ओपन कैटागरी का "50.50% कोटा" सामान्य वर्ग के खाते मे चला गया। जिसका विरोध हम लोगों के द्वारा नहीं किया गया।
2.- सरकार के मंत्री द्वारा दो दिन पूर्व संसद में लिखित रूप मे बताया कि सामान्य श्रेणी को 10% आरक्षण देने से संबंधित कोई भी प्रस्ताव संसद में लाने की योजना नहीं है। फिर इसके विपरीत सरकार ने दो दिन बाद 06 जनवरी 2019 की आधी रात मे संविधान विरोधी प्रस्ताव तैयार कराया और 07-जनवरी को लोक सभा से पास करा लिया और 08 जनवरी को राज्यसभा से भी पास करा लिया, 09 जनवरी को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित भी कर दिया गया और 10 जनवरी को सरकार ने क़ानून बनाकर 10 % आरक्षण सामान्य वर्ग को दे दिया। जिनकी आमदनी 21,91 रुपया प्रतिदिन तक होगी। क्या ये लोग निर्बल वर्ग में आते हैं ?. आगे यह सरकार 10% आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 50.50% तक करने की योजना बना चुकी है। सरकार ने द्वारा निर्बल वर्ग की परिकल्पना केवल और केवलधनाढ्य व मनुवादियो को लाभ पहुँचाने के लिए कल्पित की है। इसके लिए कोई आर्थिक, सामाजिक या शैक्षिक पिछड़े होने का या कमज़ोर होने का या निर्बल होने के सम्बन्ध मे सर्वे कराने या किसी भी प्रकार के कमिशन या आयोग के गठन की आवश्यकता नहीं समझी।आख़िर क्यों ?.
ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ कि- इतने कम समय में संविधान विरोधी नियम बनाया गया हो।इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये लोग संख्या बल मे कम होते हुए भी कितने शक्तिशाली हैं, जब लड़ाई शक्तिशाली से लड़नी हो तो संघर्ष और भी बड़ा हो जाता है आप लोग इस बड़े संघर्ष के लिए संगठित व तैयार रहें।
3- इसके उपरांत सरकार द्वारा राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में रोस्टर प्रणाली/कोटा लागू किया गया है। "रोस्टर प्रणाली में रिक्तियों के स्थान पर पदों के सापेक्ष भर्ती की जाती है।" सरकार का यह रोस्टर नियम लागू कर रही है यदि यह रोस्टर नियम लागू हो गया तो आने वाले चालीस वर्षों तक अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए एक भी नौकरी नहीं मिलेगी। यह बात संज्ञान में लाना आवश्यक है कि जब तक आरक्षित वर्गों को इन विश्वविद्यालयों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल जाता है तब तक रोस्टर प्रणाली लागू नहीं की जा सकती है। अभी भी तक देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग के प्रोफ़ेसर नगण्य हैं, इन विश्वविद्यालयों में हमारा प्रतिनिधित्व 49.50% के सापेक्ष 2% भी कम है फिर भी यह सरकार संविधान विरोधी कार्य करते हुए रोस्टर प्रणाली लागू कर रही है क्यों कि वर्तमान मे इन विश्वविद्यालयो मे सहायक प्रोफ़ेसर, प्रोफ़ेसर आदि की 50,000 से अधिक रिक्तियाँ उपलब्ध हैं। रोस्टर प्रणाली लागू होने से यह सभी रिक्तियां सीधे सीधे सामान वर्ग के लोगों के खाते में चली जाएंगी जो एक घोर अन्याय है। क्या इन रिक्तयो मे 22.50% अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व 27% अन्य पिछड़े वर्ग को हिस्सा नहीं मिलनी चाहिए ?
यह तो इस सरकार का टेलर भर ही है, अभी आगे देखियेगा, ओपन कैटेगरी का पूरा का पूरा 50.50 % आरक्षण सामंतवादियो/धनाढ्य व मनुवादियो को देने जा रही है।
"यह सरकार सामंतवादियो/धनाढ्य व मनुवादियो की है जो सत्ता व शासन का सुख भोग रहे हैं। हम लोग अभी भी नहीं जागे और सोते रहे तो इन मनुवादी व धनाढ्य लोगों से पैदा हुई संताने भी आगे चलकर युगों युगों तक शासन व सत्ता का सुख भोगती रहेगी और हमारी संताने खेती किसानी करते करते या इनका मैला सर पर ढोते-ढोते मर जाएंगी। इसलिए सभी लोग संविधान में दिए गए अपने अधिकारो को समझें और संघर्ष करें। जो मानव जीते जी अपने स्वाभिमान व सम्मान के लिए संघर्ष नहीं कर सका समझो उसका ज़मीर मर चुका है। वह इस धरा पर मानवरूपी पशु है।