अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो रिपोर्ट, 4 मई 2019। आप किसी किराना की दुकान में जाओ और दुकानदार से बोलो भईया मुझे 2 किलो किराना दे दो।
दुकानदार आपसे बोलेगा भाई ये दुकान किराने की जरूर है मगर किराना नाम की कोई भी चीज इस दुकान में नही है।
आप किसी भी प्रकार का मसाला चाहिए है गरम चाहिए है ठंडा चाहिए है। लेकिन किराना नाम की कोई चीज नही है।
इसी तरह हिन्दू धर्म मे आप चमार, भंगी, धोबी, खटीक, पासी, कोरी, कहार, कुम्हार, केवट, पाल, बघेल, धनगर, यादव, कुशवाहा ऐसी लगभग 6743 जातियाँ आपको मिल जाएगी।
लेकिन हिन्दू कोई नही मिलेगा:-
हिन्दू राजनैतिक शब्द है। जब मुस्लिमो से हमे लड़ाना होता है तो हमें हिन्दू कहा जाता है। जब काम निकल जाता है हम फिर चमार, भंगी, धोबी, खटीक, कुम्हार, पासी, खटीक, यादव, कुशवाहा, बन जाते है।
अपनी अक्ल लगाओ और एक हो जाओ।
पिछड़ों की बर्बादी का कारण ब्राम्हणवाद का पोषण है-
ये सारे ठाकुर, ब्राम्हण, सवर्ण क्यों जी-जान से लगे हुए हैं मोदी को जिताने में, क्योंकि मोदी से उन्हें उम्मीद बढ़ी है, मोदी ने एक दो काम उनके करके सवर्णों का विश्वास जीता है। चाहे वह 13 प्वाइंट रोस्टर का मामला हो या सवर्णों को 10% आरक्षण का मामला हो। संविधान की प्रति जलाकर मनुस्मृति को लागू करने का उनका सपना मोदी ही पूरा कर सकते हैं। क्योंकि मोदी अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर चुके हैं। और संघ के एजेंडे को पूरा करना मोदी की प्रतिबद्धता है। मोदी अपने राजनीतिक जीवन में संघ के एजेंडे को पूरा करते हुए दिखते भी हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन एक ही मिलता है, संघ को अपना जीवन देने के बाद मोदीजी के पास देश को देने के लिए दूसरा जीवन बचा ही कहां है।
यहीं ठाकुर, ब्राम्हण जब कांग्रेस मजबूत थी तो उसके साथ शिद्दत से खड़े थे। ज्यों-ज्यों प्रतियोगिता बढ़ी सवर्णों की मुश्किलें भी बढ़ती गयीं और कांग्रेस धर्म निरपेक्षता का चोला उतारने को तैयार नहीं हुई। ऐसी परिस्थिति में सवर्णों को एकमात्र आसरा भाजपा का ही रह गया था जो धार्मिक मुद्दों पर ही देश को चलाने की पक्षधर रही है। इसलिए जब तक भाजपा कमजोर रही उसे मजबूत होने का इंतजार सवर्ण करते रहे। ज्योंहि भाजपा सत्ता में आयी सवर्णों ने पाला बदल लिया, अब तो लगता है वे कांग्रेस को जानते ही नहीं हैं। कांग्रेस ब्राम्हण कार्ड धीमा खेल रही थी और भाजपा इस पिच पर तेज खेलती है। इसलिए सवर्णों को मोदी के रहते उनका लक्ष्य जल्द मिलने की इच्छा बलवती हो गयी है। आज उनको लगता है मोदी केवल प्रधानमंत्री ही नहीं उनके भाग्यविधाता बनके आये हैं, जो उनके अरमानों की सही तरीके से रक्षा कर सकते हैं। और कमजोर हुई ब्राम्हणी व्यवस्था को पुनः मजबूत कर सकते हैं। हमें भाजपा व कांग्रेस को भूलकर तीसरे विकल्प के बारे में गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
अब हमें विचार करना है कि हमें क्या करना चाहिए ? इसके लिए तो पहली शर्त है कि हमें ब्राम्हणी व्यवस्था की तिलांजलि देनी होगी। बिना इस मकड़जाल से बाहर निकले कल्याण सम्भव नहीं है। ऐसी बातें करने पर अक्सर हमें देशविरोधी समझ लिया जाता है। जबकि यहां व्यवस्था विरोध की बात हो रही है। ब्राम्हणों ने चौतरफा यह व्यवस्था इतनी मजबूत कर ली है कि उन्हें भी यह भरोसा हो चला है कि उनका किला अभेद्य है उसे कोई तोड़ नहीं सकता। लेकिन समाज में धीरे-धीरे ही सही जनजागृति बढ़ने से उनके भी माथे पर पसीना आना शुरु हो गया है। दलितों ने काफी हद तक राजनीतिक पैठ मजबूत कर ली है और सवर्णों से दूरी बनाकर प्रतिकार करना भी शुरू कर दिया है। पिछड़ा समाज जिस दिन अपनी दुर्दशा का कारण इन सवर्णों को समझने लगा उस दिन वह भी अपनी लाईन लेना शुरू कर देगा। इस बात को सवर्ण समझता है इसलिए पिछड़ों को भान ही नहीं होने देता और हिन्दू धर्म पर खतरा बताकर हमारा ध्यान मुस्लिमों की ओर मोड़ देता है और हम बिना दिमाग लगाये उनकी बातों में आकर मुसलमानों से दुश्मनी निभाने लगते हैं और सवर्ण हिन्दू के नाम पर सत्ता में आ जाता है और हमें फिर से शूद्र समझने लगता है और खुद उन्हीं मुसलमानों से रिश्ते व व्यापार का संबंध बनाकर रखता है। हिंदुवाद और ब्राम्हणवाद को मजबूत करने के नाते ही हम सत्ता से दूर होते चले जा रहे हैं और ब्राम्हण अल्पसंख्यक होकर भी हम बहुसंख्यकों पर राज करने लग जा रहे हैं। अब ये व्यवस्थायें बदलनी चाहिए, अभी नहीं तो कभी नहीं !!
जय भारत। जय विज्ञान।
(सोशल मीडिया से साभार संकलित कर सामाजिक चेतना हेतु प्रकशित किया गया है)
दुकानदार आपसे बोलेगा भाई ये दुकान किराने की जरूर है मगर किराना नाम की कोई भी चीज इस दुकान में नही है।
आप किसी भी प्रकार का मसाला चाहिए है गरम चाहिए है ठंडा चाहिए है। लेकिन किराना नाम की कोई चीज नही है।
इसी तरह हिन्दू धर्म मे आप चमार, भंगी, धोबी, खटीक, पासी, कोरी, कहार, कुम्हार, केवट, पाल, बघेल, धनगर, यादव, कुशवाहा ऐसी लगभग 6743 जातियाँ आपको मिल जाएगी।
लेकिन हिन्दू कोई नही मिलेगा:-
हिन्दू राजनैतिक शब्द है। जब मुस्लिमो से हमे लड़ाना होता है तो हमें हिन्दू कहा जाता है। जब काम निकल जाता है हम फिर चमार, भंगी, धोबी, खटीक, कुम्हार, पासी, खटीक, यादव, कुशवाहा, बन जाते है।
अपनी अक्ल लगाओ और एक हो जाओ।
पिछड़ों की बर्बादी का कारण ब्राम्हणवाद का पोषण है-
ये सारे ठाकुर, ब्राम्हण, सवर्ण क्यों जी-जान से लगे हुए हैं मोदी को जिताने में, क्योंकि मोदी से उन्हें उम्मीद बढ़ी है, मोदी ने एक दो काम उनके करके सवर्णों का विश्वास जीता है। चाहे वह 13 प्वाइंट रोस्टर का मामला हो या सवर्णों को 10% आरक्षण का मामला हो। संविधान की प्रति जलाकर मनुस्मृति को लागू करने का उनका सपना मोदी ही पूरा कर सकते हैं। क्योंकि मोदी अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर चुके हैं। और संघ के एजेंडे को पूरा करना मोदी की प्रतिबद्धता है। मोदी अपने राजनीतिक जीवन में संघ के एजेंडे को पूरा करते हुए दिखते भी हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन एक ही मिलता है, संघ को अपना जीवन देने के बाद मोदीजी के पास देश को देने के लिए दूसरा जीवन बचा ही कहां है।
यहीं ठाकुर, ब्राम्हण जब कांग्रेस मजबूत थी तो उसके साथ शिद्दत से खड़े थे। ज्यों-ज्यों प्रतियोगिता बढ़ी सवर्णों की मुश्किलें भी बढ़ती गयीं और कांग्रेस धर्म निरपेक्षता का चोला उतारने को तैयार नहीं हुई। ऐसी परिस्थिति में सवर्णों को एकमात्र आसरा भाजपा का ही रह गया था जो धार्मिक मुद्दों पर ही देश को चलाने की पक्षधर रही है। इसलिए जब तक भाजपा कमजोर रही उसे मजबूत होने का इंतजार सवर्ण करते रहे। ज्योंहि भाजपा सत्ता में आयी सवर्णों ने पाला बदल लिया, अब तो लगता है वे कांग्रेस को जानते ही नहीं हैं। कांग्रेस ब्राम्हण कार्ड धीमा खेल रही थी और भाजपा इस पिच पर तेज खेलती है। इसलिए सवर्णों को मोदी के रहते उनका लक्ष्य जल्द मिलने की इच्छा बलवती हो गयी है। आज उनको लगता है मोदी केवल प्रधानमंत्री ही नहीं उनके भाग्यविधाता बनके आये हैं, जो उनके अरमानों की सही तरीके से रक्षा कर सकते हैं। और कमजोर हुई ब्राम्हणी व्यवस्था को पुनः मजबूत कर सकते हैं। हमें भाजपा व कांग्रेस को भूलकर तीसरे विकल्प के बारे में गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
अब हमें विचार करना है कि हमें क्या करना चाहिए ? इसके लिए तो पहली शर्त है कि हमें ब्राम्हणी व्यवस्था की तिलांजलि देनी होगी। बिना इस मकड़जाल से बाहर निकले कल्याण सम्भव नहीं है। ऐसी बातें करने पर अक्सर हमें देशविरोधी समझ लिया जाता है। जबकि यहां व्यवस्था विरोध की बात हो रही है। ब्राम्हणों ने चौतरफा यह व्यवस्था इतनी मजबूत कर ली है कि उन्हें भी यह भरोसा हो चला है कि उनका किला अभेद्य है उसे कोई तोड़ नहीं सकता। लेकिन समाज में धीरे-धीरे ही सही जनजागृति बढ़ने से उनके भी माथे पर पसीना आना शुरु हो गया है। दलितों ने काफी हद तक राजनीतिक पैठ मजबूत कर ली है और सवर्णों से दूरी बनाकर प्रतिकार करना भी शुरू कर दिया है। पिछड़ा समाज जिस दिन अपनी दुर्दशा का कारण इन सवर्णों को समझने लगा उस दिन वह भी अपनी लाईन लेना शुरू कर देगा। इस बात को सवर्ण समझता है इसलिए पिछड़ों को भान ही नहीं होने देता और हिन्दू धर्म पर खतरा बताकर हमारा ध्यान मुस्लिमों की ओर मोड़ देता है और हम बिना दिमाग लगाये उनकी बातों में आकर मुसलमानों से दुश्मनी निभाने लगते हैं और सवर्ण हिन्दू के नाम पर सत्ता में आ जाता है और हमें फिर से शूद्र समझने लगता है और खुद उन्हीं मुसलमानों से रिश्ते व व्यापार का संबंध बनाकर रखता है। हिंदुवाद और ब्राम्हणवाद को मजबूत करने के नाते ही हम सत्ता से दूर होते चले जा रहे हैं और ब्राम्हण अल्पसंख्यक होकर भी हम बहुसंख्यकों पर राज करने लग जा रहे हैं। अब ये व्यवस्थायें बदलनी चाहिए, अभी नहीं तो कभी नहीं !!
जय भारत। जय विज्ञान।
(सोशल मीडिया से साभार संकलित कर सामाजिक चेतना हेतु प्रकशित किया गया है)