मछुआ (कश्यप-निषाद) समुदाय की जातियों के SC आरक्षण की लड़ाई में शहीद अखिलेश निषाद ने कुर्बानी देकर जो बिगुल फूंका था उस वीर शहीद की कुर्बानी बेकार नहीं जाने देंगे - एकलव्य आर्मी

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो रिपोर्ट, 12 अगस्त 2019। मछुआ (कश्यप-निषाद) समुदाय की जातियों के SC आरक्षण की लड़ाई में शहीद अखिलेश निषाद ने कुर्बानी देकर जो बिगुल फूंका था उस वीर शहीद की कुर्बानी बेकार नहीं जाने देंगे - एकलव्य आर्मी।

जानिये... कौन था ?? वो अखिलेश निषाद जो निषाद आरक्षण की लड़ाई में 7 जून 2015 को गोरखपुर और संत कबीर नगर की सीमा पर स्थित मगर में पुलिस की गोली से शहीद हुआ था ??
    7 जून 2015 को पुलिस की गोली से शहीद हुआ बीएससी तृतीय वर्ष का छात्र था अखिलेश निषाद। आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष में इटावा रहने वाले के बीएससी तृतीय वर्ष के छात्र अखिलेश कुमार निषाद की गोली लगने से मौत हो गई थी और उसी के गांव का गणेश सिंह निषाद आंख में गोली लगने के घायल हो गया था। अखिलेश निषाद के पेट में गोली लगने से पुलिस द्वारा हवाई फायरिंग किए जाने पर सवाल खड़े हो गए थे। मेडिकल कॉलेज पहुंचे अखिलेश के साथियों ने बताया कि एक अफसर के बगल में खड़े पुलिस वाले ने पिस्टल से अखिलेश पर गोली चलाई थी।
   आरक्षण की मांग कर रहे निषाद समुदाय के लोगों को 7 जून 2015 रविवार को मगहर में रेलवे ट्रैक से हटाने के दौरान पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच संघर्ष हो गया था। पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठी चार्ज कर दिया था। इस दौरान इटावा के अखिलेश कुमार निषाद और गणेश सिंह निषाद को गोली लग गई थी। जिसमें अखिलेश की मौत हो गई। जबकि गणेश दाहिनी आंख के नीचे गोली लगने से घायल हो गया था।
     माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी था अखिलेश निषाद। अधिकारियों ने पुलिस द्वारा हवाई फायरिंग किए जाने की बात कहते हुए अखिलेश को गोली लगने की घटना को जांच का विषय बताया था। मेडिकल कॉलेज पहुंचे अखिलेश के साथ प्रदर्शन में शामिल युवकों ने आरोप लगाया कि एक अफसर के बगल में खड़े वर्दीधारी ने पिस्टल से गोलियां चलाई थीं, जिसकी एक गोली अखिलेश को और एक गणेश को लगी थी। आरक्षण की मांग को लेकर रेलवे ट्रैक जाम करने के दौरान मारा गया अखिलेश माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी था। होनहार अखिलेश ने अपनी पढ़ाई के साथ गांव में स्कूल भी खोल रखा था और गांव के अन्य बच्चों को पढ़ाता था।
     'उसकी वह हंसी हमेशा याद रहेगी' अखिलेश इटावा के बकेवर क्षेत्र के मढ़ैयां दिलीप नगर निवासी आत्माराम निषाद का इकलौता बेटा था। अखिलेश की बड़ी बहन रंजना की शादी हो गई है, जबकि संध्या और वंदना दो छोटी बहनें हैं। राज बहादुर डिग्री कॉलेज लखना इटावा से बीएससी तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रहे अखिलेश ने गांव में वीर एकलव्य विद्या मंदिर के नाम से स्कूल खोल रखा था। गांव के 14 लोगों के साथ आंदोलन में शामिल होने के लिए छह जून की शाम गोरखपुर के निकला था। इटावा से गोमती एक्सप्रेस से सभी 14 लोग लखनऊ पहुंचे और वहां से बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में सवार होकर सात जून की सुबह गोरखपुर पहुंचे। गोरखपुर से गोंडा पैसेंजर ट्रेन से ये लोग मगहर पहुंचे थे। 'अखिलेश की मौत की खबर ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया है। पूरे परिवार में अखिलेश सबसे होनहार था। गोरखपुर आते समय हंसते हुए मिला था। उसकी वह हंसी हमेशा याद रहेगी।'
  हाथी घोड़ा पालकी जय निषाद के लाल की
      उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में यह नारा आपको सुनाई पड़ सकता हैं, निषादों की राजनितिक चेतना को दर्शाता यह नारा ढाई करोड़ निषाद समाज की एकजुटता का प्रतीक का भी प्रतीक हैं। निषाद समुदाय समाजिक न्याय को स्पष्ट तरीके से लागू करने के लिए निषाद जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने के मांग पिछले कई दशक से कर रहा हैं। निषाद समाज का कहना हैं की जब राज्य की व्यवस्था में ट्रांसफर पोस्टिंग आपके काम की जह आपके नाम के पीछे लगे उपनाम को लेकर दी जाती हो ऐसे में समाज का उचित प्रतिनिधित्व ना राजनीति और ना ही ब्युरोक्रेसी में होने की वजह से समाज का काम नहीं होता, जबकि आप उत्तर प्रदेश में दलित आईएएस लाबी और एक दो पिछड़ी जाति के अधिकारी अब अच्छी पोस्टिंग के साथ पाते हैं। समाजिक न्याय की पुनर्विवेचना कोई भी राजनितिक दल नहीं करना चाहता हैं, जिसकी वजह से अति पिछड़ी जातियों व अति दलित कुछ जातियों में समाजिक न्याय का फायदा नहीं पहुँच पाया हैं।
   स्पष्ट रूप से देखा जाय तो उत्तर प्रदेश में पश्चिम भाग के जाटव अनुसूचित जाति कोटे में और यादव व कुर्मी पिछड़े कोटे में सर्वाधिक फायदे में रहे हैं। इन्ही जातियों की राजनितिक चेतना वाली पार्टियों ने पिछले तीन दशकों में प्रदेश में राज भी किया हैं। कुछ जातियों का समाजिक न्याय की प्रक्रिया पर पूरी तरह से काबिज हो जाने की वजह से हजारों अन्य जातियों में असंतोष हैं और उसकी ही परिणिति  निषाद SC आरक्षण आन्दोलन है।
       गुर्जरों के सफल आरक्षण आंदोलन के बाद अब निषाद समाज के लोगों ने भी आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिए थे। 7 जून 2015 को अपनी मांगों को लेकर समाज के लोगों ने गोरखपुर-लखनऊ रेलवे लाइन पर बैठकर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस दौरान मौके पर पहुंचे पुलिसकर्मियों और आंदोलन कर रहे लोगों के बीच झड़प हो गई, जिसमे प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच पथराव-फायरिंग में एक युवक की मौत हो गयी। वहीं, प्रदर्शनकारियों ने आगजनी कर कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। इस पूरे घटना क्रम में रेलवे को कई ट्रेनों के रूट बदलने पड़े तो कई गाड़ियों को टर्मिनेट भी करना पड़ा था ।
    अनुपातिक आरक्षण के मुद्दे पर बहुजनवादियों की चुप्पी की वजह से निषाद समाज के लोग सकते में हैं। वे पूछ रहें है की क्या निषादों को अम्बेडकरी-पेरियारी सामाजिक राजनीतिक आंदोलन से बाहर माना जाय ?? मुद्दा छोटा सा है। यह समुदाय महाराष्ट्र व उड़ीसा की तरह उत्तर प्रदेश में भी निषादों को एससी लिस्ट में लाना चाहते हैं। जबकि दलित इसका विरोध करते हैं। सपा से मुख्यमन्त्री बने मुलायम सिंह को यह राजनीतिक मुद्दा लगा जिससे मायावती परेशान हो सकती थी तो उन्होंने अपनी सरकार में सन 2005 में निषादों को एससी लिस्ट में शामिल कर दिया साथ ही पार्टी में प्रमुख पद पर निषाद नेता को प्रमोट कर दिया था।
    मछुआ समुदाय की अनुसूचित जातियों में गोंड, तुरैहा, मझवार, खरबार, बेलदार की भाँति इस समुदाय की अन्य जातियों जिनमे कहार ,कश्यप, निषाद, मल्लाह, केवट, बाथम, धीवर, धीमर , बिन्द , माझी , गोड़िया, तुरहा तथा मछुआ को भैयाराम मुंडा बनाम अनिरुद्ध पटार केस AIR 1971 के आलोक में एवं उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा समाज कल्याण विभाग के अनुसूचित जाति /जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ के माध्यम से 2003 , 2006 ,2007 तथा 2013 में व्यापक मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण की संस्तुतियों के आधार पर इन जातियों को संविधान संशोधन कराकर धारा 341 (1 ) में जोड़ने के लिए प्रयास किये हैं।
     उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिनांक 24/06/2019 को जो अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनाने का आदेश हुआ है। उसमें 14% आबादी अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति के हकदार हैं के लिए हाईकोर्ट के आदेश 29/3/2017 को मानकर उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी 153/2019/2580/26-3-219-3(15)/2007टी.सी.-1- 24/06/2019 के शासनादेशानुसार भाजपा सरकार एवं मुख्य मंत्री मा. योगी जी ने एतिहासिक फैसला लिया था। पिछड़े वर्गों के बजाय अनुसूचित जाति का लाभ एवं अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने का सभी जिलों के जिलाधिकारियों को आदेश दिया था। लेकिन उस आदेश का कोई भी पालन नही किया गया सिर्फ और सिर्फ गुमराह किया गया ।
    भारत सरकार के राजपत्र सेंसस मैनुअल 1961 के अनुसार उत्तर प्रदेश की उपजातियां अनुसूचित जाति की सूची के क्रम संख्या-18 में बेलदार, 36 में गोंड, 53 में मझवार, 59 में पासी, 65 में शिल्पकार, 66 में तुरैहा है जो कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ उपजातियां उपरोक्त मूल संवैधानिक जातियों की पर्यायवाची हैं। क्रम संख्या-18 में बेलदार के साथ बिंद, क्रम संख्या 36 में गोंड के साथ गोड़िया, कहार, कश्यप, बाथम, क्रम संख्या 53 में मझवार के साथ मल्लाह, केवट, मांझी, निषाद, मछुआ,  क्रम संख्या 59 में पासी के साथ तरमाली, भर, राजभर, क्रम संख्या 65 में शिल्पकार के साथ कुमार प्रजापति क्रम संख्या 66 में तुरैहा के साथ तुरहा, तुराहा, धीवर, धीमर की पर्यायवाची उप जातियों को दी ट्राइब्स एंड कास्ट्स आफ सेंट्रल प्रोविंसेस आफ इंडिया ( आर.बी. रसेल एवं रायबहादुर हीरालाल एवं यूनाइटेड प्रोविंसेस आफ आगरा एंड अवध पार्ट-1, रिपोर्ट सेंसस ऑफ़ इंडिया 1931 के लिस्ट-1, अनटचेबल एंड डिप्रेस्ड कास्ट, पीपुल ऑफ इंडिया नेशनल सीरीज वॉल्यूम थर्ड द शेड्यूल ट्राइब एंथ्रोपॉलजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉक्टर केयर सिंह के आलेखों के आलोक के आधार पर एवं जे.एस. हयूटन की गणना के अनुसार कैबिनेट में पास कर 22 दिसंबर 2016 के शासनादेश  234/2016/297 सी.एम./26-3-2016-3 (15)/2007 अति पिछड़ी जातियां उपरोक्त जातियों की पर्यायवाची जातियां हैं परिभाषित किया है। जिसके आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जातियां आदेश संशोधन अधिनियम 1976 के अनुसार उपरोक्त सभी जातियों को मझवार, गोंड, तुरैहा और शिल्पकार जाति का प्रमाण पत्र निर्गत करना सम्भव हुआ है।
    केन्द्रीय मंत्री गहलौत में सदन में जो वयान दिया था। वह निराधार है। जहां 4% आबादी के जाटव/ चमार जाति सभी उपजाति के लोग 23% आरक्षण का लाभ अकेले 70 साल से लोकसभा, विधानसभा, सचिवालय एवं सभी विभागों में ले रहे हैं। उपरोक्त 17 जातियों को अनुसूचित जाति में 1961 में राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी कर अनुसूचित जाति घोषित किया है। विशेष समुदाय की मिलीभगत से इन जातियों को 1994 में पिछड़ी में डाल कर पूरे देश में गुमराह कर बर्बाद कर दिया गया है। और जाटव नेताओं के द्वारा झूठा प्रचार किया जा रहा है कि यह अधिकार संसद को है। लेकिन जाटव की सभी उपजातियां उसी 1961 के राष्ट्रपति के अधिसूचना के अनुसार अनुसूचित जाति का लाभ ले रहे हैं।
    31 दिसम्बर, 2016 को कार्मिक अनुभाग-2 संख्या-4 (1)/2002-का-2 केआधार पर अपर मुख्य सचिव ने अधिसूचना जारी करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 (उ.प्र. अधिनियम संख्या-4 सन् 1994) की धारा-13 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया है। उपरोक्त आदेश में स्पष्ट किया गया था कि उक्त जातियों को परिभाषित (स्पष्ट) किया गया है, न कि विशिष्टता के उद्देश्य से भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 341 में छेड़ छाड़ किया गया है।
    इस संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद दिनांक 22/01/ 2017 के पी.आई.एल संख्या 2129/2017 फाइल हुआ जिसमें दिनांक 24/01/2017 को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्टे लगा दिया गया था। साक्ष्यों के आधार पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 29/03/2017 को हटाकर उपरोक्त 17 जातियों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र सभी उपजातियों को निर्गत किए जाएं के आदेश दिए हैं।
इस संबंध में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा आदेश संख्या 153/2019/2580/26-3-219-3(15)/2007टी.सी.-1 दिनांक 24/06/2019 को समस्त मंडलायुक्त/ जिलाधिकारी उत्तर प्रदेश को उक्त जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निर्गत किए जाने हेतु आदेशित किया गया है। लेकिन उक्त शासनादेश एवं माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के मंडलायुक्त/ जिलाधिकारी द्वारा अवहेलना करते हुए उक्त जातियों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किए जा रहे हैं। जिसके कारण लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं। माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश के क्रम में शासनादेश के अनुपालन हेतु आवश्यक निर्देश भाजपा सरकार द्वारा इसका पालन नही किया जा रहा है।
    आरक्षण की मांग जायज है की नहीं इसके पीछे की परिस्थिति भी देखनी होगी, निषाद समाज नदी पर आश्रित रहने वाला समाज है। नदी में नाव चलाना, मछली फकड़ना , रेत बेचना आदि इनका पारम्परिक व्यवसाय था। आधुनिक भारत में पुलों के निर्माण से नौका का काम बन्द हो गया, इंडस्ट्री की वजह से नदियों के जल में प्रदूषण है सो मछली भी नहीं हैं। रेत खनन में सरकारी दबदबा है, ऐसे में भूमिहीन निषाद के लिए समय बड़ा प्रतिकूल है। मायावती सरकार के हस्तक्षेप से मछुआ समुदाय के पैतृक कामधंधों (Customary Right) जैसे मत्स्य पालन, बालू खनन, नाव घाट ठेका को भी इस समाज से छीन कर नीलामी के अंतर्गत ले आया गया। ऐसे में इनको सरकारी नौकरियों में आरक्षण अनुसूचित जाती के अंतर्गत देने की मांग उचित लगती है।
    प्रदेश के 19 जिलों में मल्लाह जाति विमुक्त जाति घोषित है तथा मछुआ समाज की गोंड, तुरैहा, खरबार, मंझवार और बेलदार जातियाँ उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जातियों की लिस्ट में हैं अब समाज अपनी 17 अन्य जातियों को अनुसूचित जाति की लिस्ट में देखना चाहता है। जल जंगल और जमीन पर आश्रित इन मछुआ जातियों को बदलते विकास के दौर ने कहीं अधिक पीछे धकेल दिया है। जिस कारण इन जातियों को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक मोर्चे पर उपेक्षा और शून्य के दौर से उबरने के लिए संविधान सम्मत अधिकारों और सुविधाओं के लिए संविधान में अनुमन्य आरक्षित व्यवस्था से सम्बद्ध होना आवश्यक है।