26 जनवरी को महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदिवासी टंटया भील की जयंती मनाई गई

बिछीवाड़ा, राजस्थान (Bichhiwada, Rajasthan), एकलव्य मानव संदेश ब्यूरो रिपोर्ट, 26 जनवरी 2020। 26 जनवरी को महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आदिवासी टंटया भील की जयंती मनाई गई।
     बिछीवाड़ा की भील बस्ती में रविवार 26 जनवरी को महान क्रांतिकारी, महामानव, आदिवासी समाज के टंटया भील की जयंती को उत्साहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर समाज सेवी नारायण लाल मोडिया ने कहा कि हर आदिवासी के घर में भगवान टँटया भील, बिरसा मुंडा, डॉ. भीमराव आंबेडकर, राणा पूजा, भील गुरु सन्त सुरमाल महाराज खराड़ी की तस्वीर स्थापित कर उनके इतिहास व किये गए क्रन्तिकारी कार्यों से शिक्षा ग्रहण कर अपने हक अधिकारों को प्राप्त करने का सामाजिक मिशन चलना होगा।                   
    समाज सेवी मन्नालाल ननोमा ने ग्राम सभा का गठन कर समाजिक मिशन को मजबूत बनाने को कहा और उनके जीवन पर प्रकाश डाला। टंटया भील का नाम सबसे बड़े व्यक्ति के रुप मे लिया जाता है। आज भी बहुत आदिवासी घरो मे टंट्या भील कि पूजा कि जाती है। कहा जाता है कि टंट्या भील को सभी जानवरो कि भाषा आती थी। टंट्या भील को आदिवासीयों ने देवता कि तरह माना था। आदिवासी जन आज भी कहते हैं कि टंट्या भील को अलौकिक शक्ति प्राप्त थी। इन्ही शक्तियों के सहारे टंट्या भील एक ही समय 1700 गाँवो में ग्राम सभा लिया करते थे। इन्ही शक्तियो के कारण अंग्रेजों के 2000 सैनिको के द्वारा भी टंट्या भील को कोई पकड़ नही पाता था। टंट्या भील देखते ही देखते अंग्रेजों के आँखो के साम्नने से ओझल हो जाते थे। कहा जाता है, कि टंट्या भील लाखों आदिवासी झगड़ों को ग्रामसभा में ही हल कर देते थे।
     जाँबाजी का अमिट अध्याय बन चुके आदि विद्रोही टंट्या भील अंग्रेजी दमन को ध्वस्त करने वाली जिद तथा संघर्ष की मिसाल है। टंट्या भील के शौर्य की छबियां वर्ष 1857 के बाद उभरीं। जननायक टंट्या ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा ग्रामीण आदिवासी जनता के साथ शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार की खिलाफत की। दिलचस्प पहलू यह है कि स्वयं प्रताड़ित अंग्रेजों की सत्ता ने जननायक टंट्या को “इण्डियन रॉबिनहुड’’ का खिताब दिया। मध्यप्रदेश के जननायक टंट्या भील को वर्ष 1889 में कुछ जयचंद की वजह से फाँसी दे दी गई।
   इस अवसर पर  लक्षण लाल ननोमा, दिलीप मेंणात, मोहन कलासुआ, केशवलाल कोटेड, सोपनिल निनामा, रविन्द्र खराड़ी, अरविंद मेंणात, जीवालाल बरंडा, तुलसीराम परमार, रामलाल मेंणात, मणिलाल कलासुआ, विकास मोडिया, अर्जुन खड़ा, अभिषेक मोडिया, विनिद परमार, लोकेंद्र मोडिया, रोहित मोडिया आदि उपस्थित थे