एनआरसी का समर्थन करने से पहले एक बार अपनी जानकारी दुरस्त कर लीजिए। केंद्र सरकार के खुद के आंकड़ों के हिसाब से इस देश में-
30 करोड़ लोग भूमिहीन हैं यानी उनके पास कोई जमीन नहीं है (यह आंकड़ा मुद्रा योजना लागू करते समय अरुण जेटली ने सदन में बताया था)। जब इन लोगों के पास जमीन नहीं है तो वे अपने नाम पर दर्ज जमीन के कागजात कहां से लायेंगे?
1 करोड़ 70 लाख लोग बेघर हैं, ऐसा मेरा नहीं, सरकार की सर्वे करने वाली संस्था NSSO का कहना है। अब मकान ही नहीं है तो मकान के कागजात किसके पास रखे होंगे?
15 करोड़ विमुक्त एवं घूमंतुओं की आबादी है। आपने बंजारे, गाड़िया लोहार, बावरिया, नट, कालबेलिया, भोपा, कलंदर, भोटियाल आदि के नाम सुने ही होंगे। इनके रहने, ठहरने का खुद का ठिकाना नहीं होता। आज इस शहर, कल उस शहर। ऐसे में क्या इनके पास कोई डॉक्युमेंट्स रखे होंगे।
इस देश में 8 करोड़ 43 लाख आदिवासी हैं जिनके बारे में खुद सरकार के पास ही अपर्याप्त आंकड़े होते हैं (जनगणना 2011)।
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात
1970 में देश की साक्षरता दर 34 प्रतिशत भर थी, यानी 66 प्रतिशत लोग अनपढ़ थे। यानी इस देश के 66 प्रतिशत बुजुर्गों के पास पढ़ाई-लिखाई के कोई कागज नहीं हैं। आज भी करीब 24 प्रतिशत यानी 31 करोड़ लोग अनपढ़ हैं। जब स्कूल ही नहीं गए तो मार्कशीट किस बात की रखी होगी। ऐसे में देश की इतनी बड़ी संख्या के पास पढ़ाई-लिखाई के कोई भी कागजात नहीं हैं।
आप अपने गांव-शहर के सबसे कमजोर-पिछड़े लोगों के घरों पर नजर डालिए और सोचिए कि उनके पास उनके दादा-परदादा के कौन-कौन से डॉक्युमेंट्स रखे हुए हो सकते हैं? क्या नागरिकता साबित न कर पाने की हालत में इनके पास इतना धन होगा कि ये हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपना मुकदमा लड़ सकें?
एनआरसी जैसा अनावश्यक, बेफिजूल और अपमानजनक कानून केवल मुस्लिमों के लिए ही नहीं है, इस बात को याद रख लीजिए। असम में जो भी हिन्दू शुरुआत में उछल रहे थे वही एनआरसी लागू होने के बाद अपने ही देश में अवैध यानी 'घुसपैठिया' हो गए हैं।
इस बात को समझ लीजिए आपके टैक्स के पैसे से सरकार देश में ऐसा तमाशा करने जा रही है जिसमें आपको लाइन में केवल इसलिए लगना पड़ेगा कि आप यह साबित कर सकें कि आप भारतीय हैं।
(साभार श्याम मीरा सिंह की फेसबुक वॉल से)
30 करोड़ लोग भूमिहीन हैं यानी उनके पास कोई जमीन नहीं है (यह आंकड़ा मुद्रा योजना लागू करते समय अरुण जेटली ने सदन में बताया था)। जब इन लोगों के पास जमीन नहीं है तो वे अपने नाम पर दर्ज जमीन के कागजात कहां से लायेंगे?
1 करोड़ 70 लाख लोग बेघर हैं, ऐसा मेरा नहीं, सरकार की सर्वे करने वाली संस्था NSSO का कहना है। अब मकान ही नहीं है तो मकान के कागजात किसके पास रखे होंगे?
15 करोड़ विमुक्त एवं घूमंतुओं की आबादी है। आपने बंजारे, गाड़िया लोहार, बावरिया, नट, कालबेलिया, भोपा, कलंदर, भोटियाल आदि के नाम सुने ही होंगे। इनके रहने, ठहरने का खुद का ठिकाना नहीं होता। आज इस शहर, कल उस शहर। ऐसे में क्या इनके पास कोई डॉक्युमेंट्स रखे होंगे।
इस देश में 8 करोड़ 43 लाख आदिवासी हैं जिनके बारे में खुद सरकार के पास ही अपर्याप्त आंकड़े होते हैं (जनगणना 2011)।
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात
1970 में देश की साक्षरता दर 34 प्रतिशत भर थी, यानी 66 प्रतिशत लोग अनपढ़ थे। यानी इस देश के 66 प्रतिशत बुजुर्गों के पास पढ़ाई-लिखाई के कोई कागज नहीं हैं। आज भी करीब 24 प्रतिशत यानी 31 करोड़ लोग अनपढ़ हैं। जब स्कूल ही नहीं गए तो मार्कशीट किस बात की रखी होगी। ऐसे में देश की इतनी बड़ी संख्या के पास पढ़ाई-लिखाई के कोई भी कागजात नहीं हैं।
आप अपने गांव-शहर के सबसे कमजोर-पिछड़े लोगों के घरों पर नजर डालिए और सोचिए कि उनके पास उनके दादा-परदादा के कौन-कौन से डॉक्युमेंट्स रखे हुए हो सकते हैं? क्या नागरिकता साबित न कर पाने की हालत में इनके पास इतना धन होगा कि ये हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपना मुकदमा लड़ सकें?
एनआरसी जैसा अनावश्यक, बेफिजूल और अपमानजनक कानून केवल मुस्लिमों के लिए ही नहीं है, इस बात को याद रख लीजिए। असम में जो भी हिन्दू शुरुआत में उछल रहे थे वही एनआरसी लागू होने के बाद अपने ही देश में अवैध यानी 'घुसपैठिया' हो गए हैं।
इस बात को समझ लीजिए आपके टैक्स के पैसे से सरकार देश में ऐसा तमाशा करने जा रही है जिसमें आपको लाइन में केवल इसलिए लगना पड़ेगा कि आप यह साबित कर सकें कि आप भारतीय हैं।
(साभार श्याम मीरा सिंह की फेसबुक वॉल से)