अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो राम सतन निषाद की रिपोर्ट। उ.प्र. सरकार को चढ़ गया है भांग का नशा !! (NGT पर वाद - विवाद)
जनपद सुलतानपुर में सूखकर नाला बन गयी गोमती नदी आज तक कभी भी पांच सौ मीटर चौड़े फाण्ट तक नहीं उफनी किसी भी बाढ़ में। सन 1971 में आयी बाढ़ सबसे बड़ी मानी जाती है, बुजुर्गों का कहना है कि उस समय भी पांच सौ मीटर की चौड़ी नदी जलधारा नहीं रही। जो भी तराई क्षेत्र है, कुछ इलाकों को छोड़ दे तो ज्यादातर आबादी दूर या ऊँचाई पर ही बसी है, जो खतरे के निशान तक नहीं डूबता है। अतिक्रमण जो है ज्यादा तर शहरों के किनारें ही है।
राजस्व अभिलेखों में नदी की चौड़ाई जो अब तक दर्ज है, लगभग सौ मीटर के आस पास ही है। अब सौ मीटर नदी क्षेत्र के साथ दो-दो सौ दोनों तरफ जोड़कर पांच सौ मीटर नदी का क्षेत्र निर्धारित किया जा रहा है, जिसमें राजस्व टीम लगी है।
उत्तर प्रदेश सरकार नदी के दोनों तरफ दो सौ मीटर के अंतर्गत जमीन पर निर्माण करने से तो रोकने का आदेश जारी कर चुकी है। किन्तु जिनके पुस्तैनी घर इस रेंज में आ रहे हैं, उन घरों की मरम्मत, आवश्यक निर्माण व जिनके पास उक्त रेंज से बाहर जमीन ही नहीं है उनके पुनर्वास के लिए सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया है, ऐसे में लोगों का परेशान होना स्वाभिक है, जिससे लोगों में काफी गुस्सा हैं।
दो सौ मीटर के अंतर्गत सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्य भी स्थगित हो जायेंगे, जो कि निर्धन व भूमिहीन जनसमुदाय के लिए बहुत ही घातक है। इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिलेंगे। भू माफिया खाली जमीनों पर अवैध कब्जा करेंगे। वर्ग संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी। यह एनजीटी का आदेश जो सरकार द्वारा जारी किया जा रहा है, इसे जनहित में वापस लिया जाना चाहिए या पुनर्विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि दो सौ मीटर का दायरा काफी ज्यादा है। अथवा सरकार द्वारा प्रभावितों को उचित मुवाबजा व पुनर्वास की ब्यवस्था की जानी चाहिए।
वहीं गंगा नदी का दायरा 100 मीटर रखा गया है, तो गोमती नदी का 200 मीटर क्यों ?? क्या सरकार ऐसी नीति बनाएगी कि किसी भी मद में अमीरों को 100 और गरीबों को 200 का लाभ मिले !!
एनजीटी का यह काला कानून नदियों के किनारे जीवन यापन करने वाले सभी समुदाय के लिये दूर दूर तक हानिकारक है। इसके विरोध में निषाद समुदाय आगामी 6 जून को सुलतानपुर के सीताकुण्ड घाट पर जल समाधि लेने का निर्णय ले चुका है। किन्तु निषाद समुदाय के अलावा अन्य समुदाय की आवाज अभी तक नहीं उठी।
"योगी सरकार का भांग का नशा 2022 में प्रभावित जन समुदाय तो उतरेगा ही, साथ ही इस तानाशाही सरकार का देश व प्रदेश से अपने मत रूपी हथियार से वध भी करेगा", ऐसा लोगों से बोलते व कहते सुना जा सकता है।
प्रशासन दमन का सहारा लिया तो लाखों की तादात में होंगे जल समाधि लेने को बाध्य यह चेतावनी मोस्ट कल्याण संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही है। जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (N.G.T.) के निर्देश के पालन के अनुक्रम में शासन द्वारा जारी आदेश पर लोकहित व नेचुरल जस्टिस की घोर उपेक्षा का आरोप लगाया है।
मोस्ट कल्याण संस्थान के जिला संयोजक ज़ीशान अहमद के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने जिला प्रशासन को अवगत कराया कि आदिकाल से अन्य जीव-जन्तुओं की भांति गोमती नदी तंत्र में सम्मिलित समुदाय के बसाव व उपयोग को अतिक्रमण घोषित कर नदी तट के दोनों तरफ 200 मीटर से वंचित करने वाले हिटलरशाही फरमान के क्रियान्वित होने से लाखों परिवार आवास व अन्न विहीन होकर फुटपाथ पर रहने और भीख माँगने के लिए बाध्य होने से गम्भीर स्थानीय संकट व अमानवीय दुष्परिणामों के शिकार हो जायेंगे।
नदी तंत्र का हिस्सा रहे समुदाय का अस्तित्व बचाने व मानवीय हितों की रक्षा के लिए दिनाँक 22-02-2020 के मोस्ट कल्याण संस्थान की मीटिंग में निर्णय लिया गया था कि गोमती नदी तट के दोनों तरफ 200 मीटर की अपनी ही भूमि पर बसाव व उपयोग से वंचित करने वाले दमनकारी आदेश को लोकहित में किसी भी हालात में लागू नहीं होने दिया जाएगा तथा ऐसे किसी भी कानून को स्थगित/परिवर्तित कराने तक संघर्ष किया जाएगा।
यदि प्रशासन अस्तित्व मिटाने वाले उक्त आदेश को लागू कराने के लिए जोर-जबरदस्ती या दमन का सहारा लेता है तो हम पीड़ित/आहत/क्षुब्ध लाखों लोग शिक्षक श्यामलाल निषाद "गुरुजी" के नेतृत्व में आगामी दिनांक 6 जून, 2020 को सुबह 10 बजे सीताकुण्ड घाट, सुलतानपुर में जल समाधि लेने को बाध्य होंगे।
जनपद सुलतानपुर में सूखकर नाला बन गयी गोमती नदी आज तक कभी भी पांच सौ मीटर चौड़े फाण्ट तक नहीं उफनी किसी भी बाढ़ में। सन 1971 में आयी बाढ़ सबसे बड़ी मानी जाती है, बुजुर्गों का कहना है कि उस समय भी पांच सौ मीटर की चौड़ी नदी जलधारा नहीं रही। जो भी तराई क्षेत्र है, कुछ इलाकों को छोड़ दे तो ज्यादातर आबादी दूर या ऊँचाई पर ही बसी है, जो खतरे के निशान तक नहीं डूबता है। अतिक्रमण जो है ज्यादा तर शहरों के किनारें ही है।
राजस्व अभिलेखों में नदी की चौड़ाई जो अब तक दर्ज है, लगभग सौ मीटर के आस पास ही है। अब सौ मीटर नदी क्षेत्र के साथ दो-दो सौ दोनों तरफ जोड़कर पांच सौ मीटर नदी का क्षेत्र निर्धारित किया जा रहा है, जिसमें राजस्व टीम लगी है।
उत्तर प्रदेश सरकार नदी के दोनों तरफ दो सौ मीटर के अंतर्गत जमीन पर निर्माण करने से तो रोकने का आदेश जारी कर चुकी है। किन्तु जिनके पुस्तैनी घर इस रेंज में आ रहे हैं, उन घरों की मरम्मत, आवश्यक निर्माण व जिनके पास उक्त रेंज से बाहर जमीन ही नहीं है उनके पुनर्वास के लिए सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया है, ऐसे में लोगों का परेशान होना स्वाभिक है, जिससे लोगों में काफी गुस्सा हैं।
दो सौ मीटर के अंतर्गत सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्य भी स्थगित हो जायेंगे, जो कि निर्धन व भूमिहीन जनसमुदाय के लिए बहुत ही घातक है। इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिलेंगे। भू माफिया खाली जमीनों पर अवैध कब्जा करेंगे। वर्ग संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी। यह एनजीटी का आदेश जो सरकार द्वारा जारी किया जा रहा है, इसे जनहित में वापस लिया जाना चाहिए या पुनर्विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि दो सौ मीटर का दायरा काफी ज्यादा है। अथवा सरकार द्वारा प्रभावितों को उचित मुवाबजा व पुनर्वास की ब्यवस्था की जानी चाहिए।
वहीं गंगा नदी का दायरा 100 मीटर रखा गया है, तो गोमती नदी का 200 मीटर क्यों ?? क्या सरकार ऐसी नीति बनाएगी कि किसी भी मद में अमीरों को 100 और गरीबों को 200 का लाभ मिले !!
एनजीटी का यह काला कानून नदियों के किनारे जीवन यापन करने वाले सभी समुदाय के लिये दूर दूर तक हानिकारक है। इसके विरोध में निषाद समुदाय आगामी 6 जून को सुलतानपुर के सीताकुण्ड घाट पर जल समाधि लेने का निर्णय ले चुका है। किन्तु निषाद समुदाय के अलावा अन्य समुदाय की आवाज अभी तक नहीं उठी।
"योगी सरकार का भांग का नशा 2022 में प्रभावित जन समुदाय तो उतरेगा ही, साथ ही इस तानाशाही सरकार का देश व प्रदेश से अपने मत रूपी हथियार से वध भी करेगा", ऐसा लोगों से बोलते व कहते सुना जा सकता है।
प्रशासन दमन का सहारा लिया तो लाखों की तादात में होंगे जल समाधि लेने को बाध्य यह चेतावनी मोस्ट कल्याण संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही है। जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (N.G.T.) के निर्देश के पालन के अनुक्रम में शासन द्वारा जारी आदेश पर लोकहित व नेचुरल जस्टिस की घोर उपेक्षा का आरोप लगाया है।
मोस्ट कल्याण संस्थान के जिला संयोजक ज़ीशान अहमद के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने जिला प्रशासन को अवगत कराया कि आदिकाल से अन्य जीव-जन्तुओं की भांति गोमती नदी तंत्र में सम्मिलित समुदाय के बसाव व उपयोग को अतिक्रमण घोषित कर नदी तट के दोनों तरफ 200 मीटर से वंचित करने वाले हिटलरशाही फरमान के क्रियान्वित होने से लाखों परिवार आवास व अन्न विहीन होकर फुटपाथ पर रहने और भीख माँगने के लिए बाध्य होने से गम्भीर स्थानीय संकट व अमानवीय दुष्परिणामों के शिकार हो जायेंगे।
नदी तंत्र का हिस्सा रहे समुदाय का अस्तित्व बचाने व मानवीय हितों की रक्षा के लिए दिनाँक 22-02-2020 के मोस्ट कल्याण संस्थान की मीटिंग में निर्णय लिया गया था कि गोमती नदी तट के दोनों तरफ 200 मीटर की अपनी ही भूमि पर बसाव व उपयोग से वंचित करने वाले दमनकारी आदेश को लोकहित में किसी भी हालात में लागू नहीं होने दिया जाएगा तथा ऐसे किसी भी कानून को स्थगित/परिवर्तित कराने तक संघर्ष किया जाएगा।
यदि प्रशासन अस्तित्व मिटाने वाले उक्त आदेश को लागू कराने के लिए जोर-जबरदस्ती या दमन का सहारा लेता है तो हम पीड़ित/आहत/क्षुब्ध लाखों लोग शिक्षक श्यामलाल निषाद "गुरुजी" के नेतृत्व में आगामी दिनांक 6 जून, 2020 को सुबह 10 बजे सीताकुण्ड घाट, सुलतानपुर में जल समाधि लेने को बाध्य होंगे।