लखनऊ, उत्तर प्रदेश। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता ही जा रहा है। ऐसे में अब दीर्घकालीन व्यवस्थाएं करनी होगी। ताली-थाली के शोर या दिया-टार्च जलाकर रोशनी जैसे प्रतीकात्मक कर्मकांडों से मनोरंजन भले हो, लेकिन कोरोना का उपचार नहीं होगा।सरकार को कोरोना आपदा के बाद की परिस्थितियों से निपटने की रणनीति पर काम करना चाहिए। नोटबंदी, जीएसटी के दुष्प्रभाव से तमाम उद्योग, धंधे पहले ही बर्बादी की कगार पर पहुंच गए थे। जिन्हें लॉकडाउन ने पूरी तरह बंद कर दिया है। इससे बेरोजगारी का संकट बढ़ेगा। इस पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। प्रधानमंत्री को प्रतीकात्मक कर्मकांडों के बजाय चिंता करनी चाहिए कि गरीबों के घरों के चूल्हे की आग ठंडी न हो। गरीबों के बच्चे दूध के बिना भूखे न सोएं और नौजवानों की आंखो में भविष्य को लेकर धुंध न पनपे। यादव ने कहा कि सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त समाजवादी पार्टी के नेता, कार्यकर्ता देशव्यापी लॉकडाउन में भूखे, प्यासे, गरीबों असहायों की लगातार मदद कर रहे हैं।
तमाम संगठन और नागरिक स्वेच्छा से जो भोजन या खाद्य सामग्री दे रहे है आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ता उसे अपनी ओर से दी गई राहत बता रहे हैं। ग्रामीण जनता तथा सड़कों से दूर रहने वाले गरीबों को फांकाकशी करनी पड़ रही है। राहत सामग्री के वितरण में भी भेदभाव और पक्षपात हो रहा है। गरीबों और भूखे लोगों के लिए भोजन सामग्री लेकर जा रहे सपा कार्यकर्ताओं को जगह-जगह रोका जा रहा है। यह लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा नहीं है।
किसान और नौजवान जीवन के सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में भाजपा का अपने स्थापना दिवस की आड़ में राजनीति करना किसी भी तरह नैतिक नहीं है। देश के सामने समस्याओं का पहाड़ है लेकिन भाजपा नेतृत्व को अगला चुनाव नजर आ रहा है। जनता जब कोरोना संकट के समय अपनी दिक्कतों को भुलाकर सरकारी निर्देशों का एकजुटता से पालन कर रही है तब भाजपा अपनी राजनीति साधने में लोकतांत्रिक मान्यताओं को तिलांजलि देने पर तुली है। भाजपा धन्यवाद पत्र के माध्यम से वोटों को केंद्रित करने में लगी है जबकि धन्यवाद पत्र सरकार को देना चाहिए। आरएसएस और भाजपा किस अधिकार से धन्यवाद पत्र जारी कर सकते हैं ?