एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh)। गांधी और आंबेडकर दोनों बंधुता (भाईचारा-प्रेम) आधारित समाज चाहते थे, लेकिन कैसे हासिल किया जाए इस मामले में दोनों की सोच में बुनियादी भिन्नता थी। जहां गांधी समता विहीन भाईचारा की बात करते थे, वहीं आंबेडकर का कहना था कि समता बिना भाईचार हासिल ही नहीं किया जा सकता है, उनका कहना था कि बंधुता (भाईचारा) कायम करने की अनिवार्य शर्त है, समता एवं स्वतंत्रता। आंबेडकर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तीनों स्तरों पर समता चाहते थे। संविधान सभा में भी संविधान पेश करते हुए उन्होंने खुले तौर राजनीतिक समता के साथ सामाजिक और आर्थिक समता की चाह प्रकट की थी।
भारत को समता आधारित देश-समाज बनाने की अनिवार्य शर्त के तौर आंबेडकर वर्ण-जाति व्यवस्था और पितृसत्ता के विनाश के प्रति आजीवन प्रतिबद्ध रहे है, जबकि दूसरी ओर गांधी भारत में असमानता की जननी वर्ण व्यवस्था और पितृसत्ता के रक्षा के लिए आजीवन प्रतिबद्ध बने रहे। उनकी नजर स्त्री-पुरूष के आदर्श जोड़ी राम और सीता थी, जो पितृसत्ता का सबसे आदर्श रूप है।
समताविहीन बंधुता (समरसता) भारतीय अपरकास्ट का हमेशा सपना रहा है, जिसके सबसे बड़े प्रतिनिधि गांधी रहे हैं और समता-स्वंतत्रता पर आधारित बंधुता बहुजन-दलित समुदाय का सबसे सपना रहा है, जिसके सबसे बड़े प्रतिनिधि बनकर डॉ. आंबेडकर उभरे।
संघ (आरएसएस) की समता का समता विहीन बंधुता (समरता) की चाह दरअसल अपरकास्ट की चाह को प्रकट करती है और समता-स्वंतत्रता आधारित बंधुता 85 प्रतिशत मूलवासी भारतीयों की चाह को प्रकट करती है।
अकारण नहीं है कि वर्ण-जाति आधारित गांवों को गांधी महिमामंडित करते थे, जबकि आंबेडकर गांवों को कूपमंडूकता का गढ़ कहते थे।
समता विहीन बंधुता की चाह के चलते ही गांधी जमींदारों और पूंजीपतियों को ट्रस्टी के रूप में देखते थे और उन्हें किसानों-मजदूरों के साथ बंधुता के साथ व्यवहार की उम्मीद करते थे।
मेरी जानकारी में गांधी के शब्द कोश में जिस शब्द का सबसे कम इस्तेमाल है, वह है, समता। आरएसएस को भी समता शब्द सबसे अधिक नापसंद है।
इसके उलट आंबेडकर के शब्दकोश में जिन शब्दों का बार-बार उल्लेख होता है, उसमें एक शब्द समता भी है।
असल में भारतीय अपरकास्ट मर्द अधिक से अधिक समताविहीन बंधुता का ही सपना देख पाते हैं, जबकि दलित-मूलवासी एवं महिलाएं समता एवं स्वतंत्रता पर आधारित बंधुता (प्रेम) की चाह रखते हैं।
भारत का यह सबसे बड़ा सामाजिक अंतर्विरोध है।
समताविहीन बंधुता (समरसता) भारतीय अपरकास्ट का हमेशा सपना रहा है, जिसके सबसे बड़े प्रतिनिधि गांधी रहे हैं और समता-स्वंतत्रता पर आधारित बंधुता बहुजन-दलित समुदाय का सबसे सपना रहा है, जिसके सबसे बड़े प्रतिनिधि बनकर डॉ. आंबेडकर उभरे।
संघ (आरएसएस) की समता का समता विहीन बंधुता (समरता) की चाह दरअसल अपरकास्ट की चाह को प्रकट करती है और समता-स्वंतत्रता आधारित बंधुता 85 प्रतिशत मूलवासी भारतीयों की चाह को प्रकट करती है।
अकारण नहीं है कि वर्ण-जाति आधारित गांवों को गांधी महिमामंडित करते थे, जबकि आंबेडकर गांवों को कूपमंडूकता का गढ़ कहते थे।
समता विहीन बंधुता की चाह के चलते ही गांधी जमींदारों और पूंजीपतियों को ट्रस्टी के रूप में देखते थे और उन्हें किसानों-मजदूरों के साथ बंधुता के साथ व्यवहार की उम्मीद करते थे।
मेरी जानकारी में गांधी के शब्द कोश में जिस शब्द का सबसे कम इस्तेमाल है, वह है, समता। आरएसएस को भी समता शब्द सबसे अधिक नापसंद है।
इसके उलट आंबेडकर के शब्दकोश में जिन शब्दों का बार-बार उल्लेख होता है, उसमें एक शब्द समता भी है।
असल में भारतीय अपरकास्ट मर्द अधिक से अधिक समताविहीन बंधुता का ही सपना देख पाते हैं, जबकि दलित-मूलवासी एवं महिलाएं समता एवं स्वतंत्रता पर आधारित बंधुता (प्रेम) की चाह रखते हैं।
भारत का यह सबसे बड़ा सामाजिक अंतर्विरोध है।