तार्किक रामायण -
1. भगवान श्रीराम क्षत्रिय थे या ब्राह्मण ?
2. भगवान श्रीराम का जन्म उनके माता पिता कौशिल्या और दशरथ के यौन व्यवहार से नहीं हुआ था तो वे क्षत्रिय कैसे हुये ?
3. राजा दशरथ का चौथापन यानी 75 वर्ष पार हो गई थी, इतने अधिक उम्र में संतानोत्पत्ति असंभव होती है क्योंकि गुणसूत्र कमजोर हो जाते हैं।
4. भगवान श्रीराम का जन्म श्रृंगी श्रृषि के द्वारा किया गया पुत्रेष्ठि यज्ञ से हुआ था तो श्रृंगी श्रृषि ही भगवान श्रीराम का जेनेटिक पिता हुआ तो भगवान श्रीराम ब्राह्मण हुए। क्षत्रिय कैसे हुआ ?
5. अगर श्रीराम क्षत्रिय होते तो कोई भी ब्राह्मण श्रीराम की पूजा नहीं करता, क्योंकि वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण का स्थान उच्च होता है।
6. हनुमानजी पवनपुत्र थे या शंकरपुत्र ?
7. अगर हनुमानजी शंकर भगवान के जेनेटिक पुत्र थे तो वह पवनपुत्र कैसे हुये ?
8. हमने आजतक शास्त्रों में तथा फोटो में शंकर भगवान को धनुष रखते हुए नहीं देखा। हां त्रिशुल, डमरू, गले में लिपटा हुआ शर्प, सिर में चन्द्र और जटा से गंगा को बहते हुए जरूर देखा है। फिर शंकर भगवान के कौन से धनुष से जनकपुर में सीता का स्वयंवर हुआ ?
9. अगर शंकर भगवान का धनुष किसी से नहीं उठता था तो जनकपुर किसने लाया होगा ? क्या स्वयं शंकर भगवान अपने धनुष को जनकपुर छोड़ने आये थे?
10. शंकर भगवान का अद्भूत धनुष सीताजी से उठ गया परन्तु रावण ने नहीं उठा पाया।
11. उस विशाल धनुष को उठाने वाली बलशाली सीता को रावण उठाकर ले गया। बेबस सीता विरोध तक नहीं कर सकी।
12. रावण शंकर भगवान के विशाल धनुष को उठानेवाली सीता को आसानी से उठा ले गया परन्तु उस धनुष को नहीं उठा सका। यह क्या चक्कर है ?
13. श्रीराम ब्राह्मण थे इसका एक और सबूत है कि पत्थर पर पैर रखते ही पत्थर अहिल्या हो गयी। किसी भी वेद शास्त्रों में, किसी भी क्षत्रिय या राजाओं में अलौकिक शक्ति होने का वर्णन नहीं मिलता। यह अभयदान सिर्फ ब्राह्मणों को प्राप्त था, उसे किसी भी को यहां तक भगवानों को भी श्राप देने या दण्ड देने का अधिकार प्राप्त था।
14. हालाकि श्रीराम ने पत्थर को अहिल्या बना दिया परन्तु अपने मृत पिता को जीवित नहीं कर सके। यहां तक शक्तिबाण से घायल लक्ष्मण को, घायल जटायु को भी जीवित नहीं कर सके।
15. घायल लक्ष्मण को जीवन दान देने के लिए हनुमान को संजीवनी लाना पड़ी। परन्तु इस संजीवनी का सिर्फ घायल लक्ष्मण पर ही असरदार हुआ और अन्य घायलों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
16. जब समुद्र में राम सेतु नहीं बना था तो जनकपुर में सीताजी के स्वयंवर का निमंत्रण देने लंका कौन गया होगा ?
17. जब रावण राक्षस थे तो उसे सीताजी के स्वयंवर का निमंत्रण क्यों दिया गया?
18. समुद्र में रामसेतु बनाने के लिए वानर लोग पत्थर पर श्रीराम लिख कर डालते थे तो वानरों को लिखना, पढ़ना किसने सिखाया होगा ?
19. जिस पत्थर पर मात्र श्रीराम लिख देने से वह पत्थर पानी में नहीं डूबता था तो साक्षात श्रीराम समुद्र में चलकर क्यों पार नहीं हो सके?
20. जो पत्थर पर श्रीराम लिखा गया वह पानी में तैरने लगा डूबा नहीं तो उस पत्थर को हिन्द महासागर से कौन चुरा ले गया ? अभी वहां तैरने वाले एक भी पत्थर क्यों नहीं मिलता ?
वैसे श्रृंगी ऋषि ब्राह्मण नहीं थे, वे निषाद विद्वान थे। और राम का रंग सांवला था। श्रृंगी ऋषि जी ब्राह्मण होते तो उनका मंदिर भी सभी जगह बनाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं है। श्रृंगी ऋषि गुह्य राज निषाद राज के पिता और राजा दशरथ को 14 बार युद्ध में पराजित कर मित्रता के लिए विवश कर देने वाले तीर्थराज निषाद के भाई थे। निषाद का शारीरिक रंग काला होता। इसलिए राम जेनेटिकली निषाद पुत्र थे। राम छत्रिय पुत्र होते तो उनके नाम पर लंका विजय के उपरांत मनाये जाने वाली दीपावली पर लक्ष्मी जी और गणेश की पूजा की जगह राम जी की पूजा होती, लेकिन ऐसा नहीं है।
इसी प्रकार वर्तमान में अयोध्या में बनाये जाने वाले राम मंदिर का निर्माण दीपावली के दिन किया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि दिपावाली राम की लंका विजय का उत्सव है ही नहीं। दीपावली इस देश में पूरी तरह से यहाँ के अंतिम मूलवासी चक्रवर्ती राजा बाली पर विदेशी आर्यों (ब्राह्मणों) की विजय का त्यौहार है।
लेकिन राम ने आर्य साम्राज्य को उत्तर से दक्षिण तक विस्तार करने के लिए युद्ध और मित्रता का सहारा लिया, इसलिए ब्राह्मण और आर्य लोग उनको अपना हित रक्षक मनते हैं और उसी नाम के सहारे आज भी मनगढ़ंत तरीके से ब्राह्मण तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण का उपयोग कर अपनी तरक्की के लिए रास्ते तलासते रहते हैं। ब्राह्मण कभी भी बराबरी के सहारे किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाता है। वह केवल धूर्तता और पाखंड के सहारे ही सत्ता सुख भोगता है। अगर ब्राह्मण को इस देश के मूलवासी लोगों से प्यार होता तो वह मंदिर के लिए नहीं, स्कूल, रोजगार और पाखंडवाद खत्म कर विज्ञानवाद के लिए आंदोलन चलाता लेकिन वह ऐसा कभी भी नहीं करता है। वह गरीबी, बेरोजगारी को भगवान की कृपा और पिछले जन्म के कर्मों का फल बताता है। जबकि उसके चंगुल से निकल कर बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के बनाये संविधान में मिले अधिकारों को मनाने वाले लोग आज है क्षेत्र में तरक्की कर आगे बढ़ रहे हैं और ब्रह्मवाद को चुनौती दे रहे हैं। उसी के लिए ब्राह्मण हिंदुत्व नाम का आतंक चलाने लग गया है। हिंदुत्व में सभी जगह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य काविज हो रहे हैं। भारत के सरकारी उपक्रम सरकार द्वारा एक शाजिश के द्वारा निवेश और बिक्री के सहारे मनुवादी विचारधारा के पूंजीपतियों को दिए जा रहे हैं।
हमारे देशवासी लोग असत्य को ही सत्य समझकर स्वयं को बर्बाद कर रहें हैं। दोस्तों तर्कशील बनिये और पाखण्ड, अंधविश्वास से मुक्ति पाइये। स्वयं के विवेक को जगाइये, अपने अज्ञानता और भ्रांति को मिटा दीजिए।
यथार्थ को जानों, सत्य को छानों और इंसानियत को मानों।
जय इंसान, जय विज्ञान , जय संविधान , जय भारत।
2. भगवान श्रीराम का जन्म उनके माता पिता कौशिल्या और दशरथ के यौन व्यवहार से नहीं हुआ था तो वे क्षत्रिय कैसे हुये ?
3. राजा दशरथ का चौथापन यानी 75 वर्ष पार हो गई थी, इतने अधिक उम्र में संतानोत्पत्ति असंभव होती है क्योंकि गुणसूत्र कमजोर हो जाते हैं।
4. भगवान श्रीराम का जन्म श्रृंगी श्रृषि के द्वारा किया गया पुत्रेष्ठि यज्ञ से हुआ था तो श्रृंगी श्रृषि ही भगवान श्रीराम का जेनेटिक पिता हुआ तो भगवान श्रीराम ब्राह्मण हुए। क्षत्रिय कैसे हुआ ?
5. अगर श्रीराम क्षत्रिय होते तो कोई भी ब्राह्मण श्रीराम की पूजा नहीं करता, क्योंकि वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण का स्थान उच्च होता है।
6. हनुमानजी पवनपुत्र थे या शंकरपुत्र ?
7. अगर हनुमानजी शंकर भगवान के जेनेटिक पुत्र थे तो वह पवनपुत्र कैसे हुये ?
8. हमने आजतक शास्त्रों में तथा फोटो में शंकर भगवान को धनुष रखते हुए नहीं देखा। हां त्रिशुल, डमरू, गले में लिपटा हुआ शर्प, सिर में चन्द्र और जटा से गंगा को बहते हुए जरूर देखा है। फिर शंकर भगवान के कौन से धनुष से जनकपुर में सीता का स्वयंवर हुआ ?
9. अगर शंकर भगवान का धनुष किसी से नहीं उठता था तो जनकपुर किसने लाया होगा ? क्या स्वयं शंकर भगवान अपने धनुष को जनकपुर छोड़ने आये थे?
10. शंकर भगवान का अद्भूत धनुष सीताजी से उठ गया परन्तु रावण ने नहीं उठा पाया।
11. उस विशाल धनुष को उठाने वाली बलशाली सीता को रावण उठाकर ले गया। बेबस सीता विरोध तक नहीं कर सकी।
12. रावण शंकर भगवान के विशाल धनुष को उठानेवाली सीता को आसानी से उठा ले गया परन्तु उस धनुष को नहीं उठा सका। यह क्या चक्कर है ?
13. श्रीराम ब्राह्मण थे इसका एक और सबूत है कि पत्थर पर पैर रखते ही पत्थर अहिल्या हो गयी। किसी भी वेद शास्त्रों में, किसी भी क्षत्रिय या राजाओं में अलौकिक शक्ति होने का वर्णन नहीं मिलता। यह अभयदान सिर्फ ब्राह्मणों को प्राप्त था, उसे किसी भी को यहां तक भगवानों को भी श्राप देने या दण्ड देने का अधिकार प्राप्त था।
14. हालाकि श्रीराम ने पत्थर को अहिल्या बना दिया परन्तु अपने मृत पिता को जीवित नहीं कर सके। यहां तक शक्तिबाण से घायल लक्ष्मण को, घायल जटायु को भी जीवित नहीं कर सके।
15. घायल लक्ष्मण को जीवन दान देने के लिए हनुमान को संजीवनी लाना पड़ी। परन्तु इस संजीवनी का सिर्फ घायल लक्ष्मण पर ही असरदार हुआ और अन्य घायलों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
16. जब समुद्र में राम सेतु नहीं बना था तो जनकपुर में सीताजी के स्वयंवर का निमंत्रण देने लंका कौन गया होगा ?
17. जब रावण राक्षस थे तो उसे सीताजी के स्वयंवर का निमंत्रण क्यों दिया गया?
18. समुद्र में रामसेतु बनाने के लिए वानर लोग पत्थर पर श्रीराम लिख कर डालते थे तो वानरों को लिखना, पढ़ना किसने सिखाया होगा ?
19. जिस पत्थर पर मात्र श्रीराम लिख देने से वह पत्थर पानी में नहीं डूबता था तो साक्षात श्रीराम समुद्र में चलकर क्यों पार नहीं हो सके?
20. जो पत्थर पर श्रीराम लिखा गया वह पानी में तैरने लगा डूबा नहीं तो उस पत्थर को हिन्द महासागर से कौन चुरा ले गया ? अभी वहां तैरने वाले एक भी पत्थर क्यों नहीं मिलता ?
वैसे श्रृंगी ऋषि ब्राह्मण नहीं थे, वे निषाद विद्वान थे। और राम का रंग सांवला था। श्रृंगी ऋषि जी ब्राह्मण होते तो उनका मंदिर भी सभी जगह बनाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं है। श्रृंगी ऋषि गुह्य राज निषाद राज के पिता और राजा दशरथ को 14 बार युद्ध में पराजित कर मित्रता के लिए विवश कर देने वाले तीर्थराज निषाद के भाई थे। निषाद का शारीरिक रंग काला होता। इसलिए राम जेनेटिकली निषाद पुत्र थे। राम छत्रिय पुत्र होते तो उनके नाम पर लंका विजय के उपरांत मनाये जाने वाली दीपावली पर लक्ष्मी जी और गणेश की पूजा की जगह राम जी की पूजा होती, लेकिन ऐसा नहीं है।
इसी प्रकार वर्तमान में अयोध्या में बनाये जाने वाले राम मंदिर का निर्माण दीपावली के दिन किया जाता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि दिपावाली राम की लंका विजय का उत्सव है ही नहीं। दीपावली इस देश में पूरी तरह से यहाँ के अंतिम मूलवासी चक्रवर्ती राजा बाली पर विदेशी आर्यों (ब्राह्मणों) की विजय का त्यौहार है।
लेकिन राम ने आर्य साम्राज्य को उत्तर से दक्षिण तक विस्तार करने के लिए युद्ध और मित्रता का सहारा लिया, इसलिए ब्राह्मण और आर्य लोग उनको अपना हित रक्षक मनते हैं और उसी नाम के सहारे आज भी मनगढ़ंत तरीके से ब्राह्मण तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण का उपयोग कर अपनी तरक्की के लिए रास्ते तलासते रहते हैं। ब्राह्मण कभी भी बराबरी के सहारे किसी भी कार्य में सफल नहीं हो पाता है। वह केवल धूर्तता और पाखंड के सहारे ही सत्ता सुख भोगता है। अगर ब्राह्मण को इस देश के मूलवासी लोगों से प्यार होता तो वह मंदिर के लिए नहीं, स्कूल, रोजगार और पाखंडवाद खत्म कर विज्ञानवाद के लिए आंदोलन चलाता लेकिन वह ऐसा कभी भी नहीं करता है। वह गरीबी, बेरोजगारी को भगवान की कृपा और पिछले जन्म के कर्मों का फल बताता है। जबकि उसके चंगुल से निकल कर बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के बनाये संविधान में मिले अधिकारों को मनाने वाले लोग आज है क्षेत्र में तरक्की कर आगे बढ़ रहे हैं और ब्रह्मवाद को चुनौती दे रहे हैं। उसी के लिए ब्राह्मण हिंदुत्व नाम का आतंक चलाने लग गया है। हिंदुत्व में सभी जगह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य काविज हो रहे हैं। भारत के सरकारी उपक्रम सरकार द्वारा एक शाजिश के द्वारा निवेश और बिक्री के सहारे मनुवादी विचारधारा के पूंजीपतियों को दिए जा रहे हैं।
हमारे देशवासी लोग असत्य को ही सत्य समझकर स्वयं को बर्बाद कर रहें हैं। दोस्तों तर्कशील बनिये और पाखण्ड, अंधविश्वास से मुक्ति पाइये। स्वयं के विवेक को जगाइये, अपने अज्ञानता और भ्रांति को मिटा दीजिए।
यथार्थ को जानों, सत्य को छानों और इंसानियत को मानों।
जय इंसान, जय विज्ञान , जय संविधान , जय भारत।