पौने दो सौ साल पुरानी लंदन की पत्रिका "द इकोनॉमिस्ट" ने अपने ताज़ा अंक में भारत पर एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें कहा गया है कि नरेंद्र मोदी भारत में लोकतंत्र ख़त्म कर रहे हैं। दूसरी ओर नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) अमिताभ कांत को भारत का लोकतंत्र पसंद नहीं है। 'द इकोनॉमिस्ट" समाचार पत्रिका विश्व पत्रकारिता का जाना माना नाम है। इसकी साख न्यूयार्क टाइम्स और वाल स्ट्रीट जनरल से भी ऊपर है। इसके ताजा अंक में भारत पर India’s diminishing democracy, Narendra Modi threatens to turn India into a one-party state, An increasingly dominant prime minister and the ongoing erosion of checks and balances शीर्षक से एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट का सार ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में लोकतंत्र ख़त्म कर रहे हैं। पत्रिका कहती है कि मोदी सत्ता के भूखे हैं और सारे नियम क़ानून ताख पर रख कर भारत में विरोधी पार्टियां खत्म कर रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत दुनिया के उन चार देशों में सबसे ख़राब हाल में है जहाँ लोकतंत्र को ख़तरा है। बाक़ी तीन देश हैं पोलैंड, हंगरी और तुर्की।
द इकोनोमिस्ट की रिपोर्ट में उच्चतम न्यायालय को भी लोकतंत्र विरोधी बताया गया है। लिखा है कि उच्चतम न्यायालय अर्णब गोस्वामी को चौबीस घंटे में जमानत दे देती है, लेकिन तिरासी साल के फ़ादर स्टैन स्वामी को पानी पीने के लिए स्ट्रॉ तक नहीं देती है। रिपोर्ट कहती है कि दसियों हज़ार अल्पसंख्यक जेल में सड़ रहे हैं, मगर उच्चतम न्यायालय के कान पर जूं नहीं रेंगती है। साथ ही अदालत ने इलेक्टोरल बांड्स क़ानून, सीएए से लेकर कश्मीर तक के मुक़दमों को लटका रखा है। रिपोर्ट में यूएपीए, आरटीआई, जनरल बिपिन रावत, चीनी अतिक्रमण पर मोदी की नींद, चुनाव आयोग, बिकाऊ मीडिया, कपिल मिश्रा, दिल्ली पुलिस द्वारा मुसलमानों की गिरफ़्तारियां इत्यादि पर भी तीख़ी टिप्पणी की गई है।
जब देश में लोकतंत्र अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है, तब नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) अमिताभ कांत को भारत का लोकतंत्र पसंद नहीं है। उन्हें चीन पसंद है जहां लोकतंत्र नहीं है। अमिताभ कांत ने मंगलवार (8 दिसम्बर 2020) को कहा था कि भारत में कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है, जिसके कारण यहां कड़े सुधारों को लागू करना कठिन होता है। उन्होंने एक ऑनलाइन कार्यक्रम में कहा कि भारत में कड़े सुधार नहीं लाए जा सकते हैं, क्योंकि हमारे यहां बहुत ज्यादा लोकतंत्र है। अभिताभ कांत के इस कमेंट को लेकर सरकार को कई सवालों का सामना करना पड़ा। नतीजतन डैमेज कंट्रोल के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को आगे आना पड़ा। उन्होंने कहा कि हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व है। स्वराज्य पत्रिका के कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए कांत ने जोर देकर कहा था कि देश को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए और बड़े सुधारों की जरूरत है। पहली बार केंद्र ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाया है। अब राज्यों को सुधारों के अगले चरण को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि चीन के विपरीत हम एक लोकतांत्रिक देश हैं। हमें वैश्विक चैंपियन बनने पर जोर देना चाहिए। आपको इन सुधारों (खनन, कोयला, श्रम, कृषि) को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि कड़े सुधारों को आगे बढ़ाए बिना चीन से प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है।
नीति आयोग के सीईओ ने कहा कि अगर 10-12 राज्य उच्च दर से वृद्धि करेंगे, तब इसका कोई कारण नहीं कि भारत उच्च दर से विकास नहीं करेगा। हमने केंद्र शासित प्रदेशों से बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के लिए कहा है। वितरण कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए और सस्ती बिजली उपलब्ध करानी चाहिए। मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों के नये कृषि कानूनों को लेकर विरोध-प्रदर्शन पर कांत ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह समझना जरूरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था बनी रहेगी, मंडियों में जैसे काम होता है, वैसे ही होता रहेगा। किसानों के पास अपनी रुचि के हिसाब से अपनी उपज बेचने का विकल्प होना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें लाभ होगा। हालांकि नीति आयोग के सीईओ ने बाद में पलटी मार दी कि देश में अधिक लोकतंत्र का बयान नहीं दिया।
अब अमिताभ कांत से कोई पूछे की जब द इकोनोमिस्ट जैसी अंतररष्ट्रीय पत्रिका में ब्लैक एंड व्हाइट में लिखा जा रहा है कि भारत में लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है और इसके समर्थन में तमाम मामलों का भी उल्लेख किया गया है। फिर भी उन्हें क्यों लगता है भारत में ज़्यादा लोकतंत्र है! दरअसल अमिताभ कांत का ये बयान ऐसे वक़्त में आया है जब मुल्क के अंदर देश का किसान दिल्ली बॉर्डर पर आकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहा है। उसे अपने हक़ की लड़ाई लड़ने का ये अधिकार आज़ाद भारत के संविधान ने दिया है। अमिताभ कांत के बयान से किसानों के आंदोलन के सन्दर्भ में यह ध्वनि निकल रही है कि सरकार की नीतियों, उसके फ़ैसलों पर बोलने की आज़ादी किसी को भी नहीं होनी चाहिए। लोकतंत्र में जनता अपना जनप्रतिनिधि चुनती है शासक नहीं। लोकतंत्र में जनता मालिक होती है और सरकार उसकी नुमाइंदगी करती है। नौकरशाह सरकार के नौकर होते हैं, जिन्हें जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले टैक्स से वेतन मिलता है। लोकतंत्र में नौकरशाहों को यह हक संविधान ने भी नहीं दिया है कि वे संविधान के खिलाफ विषवमन करें। जे.पी. सिंह (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।) (जनजागरण के उद्देश्य से साभार प्रकाशित)