सोनभद्र के बीभत्स नर संहार का असली खलनायक है बिहार निवासी बंगाल में तैनात IAS अधिकारी मिश्रा

सोनभद्र, उत्तर प्रदेश (Sonbhadra, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो चीफ राम विलास निषाद की रिपोर्ट, 19 जुलाई 2019। सोनभद्र के बीभत्स नर संहार का असली खलनायक है बिहार निवासी बंगाल में तैनात IAS अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा।
      सोनभद्र में दिनांक 16 जुलाई 2019 को हुए नरसंहार की पटकथा पहले से ही लिखी जा चुकी थी। एक आईएएस अधिकारी (मूल रूप से बिहार का निवासी वर्तमान में बंगाल में कार्यरत) प्रभात कुमार मिश्रा, जिसने अपने पद का दुरपयोग करते हुए अपने बेटी और पत्नी के नाम 639 बीघा जमीन गैरकानूनी तरीके से की। इस अधिकारी के लिए, तत्कालीन तहसीलदार सोनभद्र का पूरा सहयोग रहा। सहयोग हो भी क्यों न हो, अधिकारी और अधिकारी आपस मे भाई-भाई जो होते हैं। अब इतनी बढ़ी जमीन के हिस्से पर  कब्जा की बात आती है, जहां सैकड़ों सालों से आदिवासी अपने पुश्तैनी घर मकान बनाकर खेती-बाड़ी करके किसी तरह गुजारा कर रहे थे उनको आसानी से हटाना मुश्किल था। हां पूर्व में भी हिंसा के बल पर कब्जे  की कोशिश की गयी, किंतु हर बार नाकाम रही। मामला थाने में दर्ज होता रहा ,तहसील में भी दर्ज हुआ, लेकिन हल नहीं निकला।
       कैसे एक मामूली सा ग्राम प्रधान और 639 बीघे की खरीदारी करता है, बड़े आश्चर्य की बात है कि, उसके पास इतना पैसा आया कहां से। जानते हैं वो पैसा कहां से आया, वो करोड़ों रुपया सरकार द्वारा गांवों के विकास के लिए दिया गया पैसा था, जिसको अधिकारियों की मदद से लूटा गया होगा, वैसे भी गौंड आदिवासी पंचायतों में ये आम बात है।
       दूसरी बढ़ी बात जब ग्राम प्रधान 300 लोगों को 30 टैक्टरो में लेकर और अवैध हथियारों की खेप जुटा रहा था तब पुलिस के खबरी या खुफिया एजेंसी क्या कर रहीं थीं ? सवाल यह है कि एक व्यक्ति इतने बड़े नरसंहार की हिम्मत कैसे कर सकता है सरकार को जवाब देना होगा।
     बनारस से सटे सोनभद्र जनपद में 16 जुलाई 2019 को दबंग भूमाफिया ने अवैध तरीके से आदिवासियों की जमीन हथियाने के लिए खूनी खेल खेला। हथियारबंद 300 लोगों ने निर्दोष गौंड वनवासियों पर करीब आधे घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग की। इस घटना में 10 वनवासी मौके पर मारे गए और 26 से ज्यादा अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
        बड़ी बात यह है की घटना के समय गौंड वनवासियों ने सोनभद्र के एसपी व कलेक्टर से लेकर जिले सभी आला अफसरों को फोन किए। सभी के मोबाइल बंद मिले। 100 डायल पुलिस आई, पर तमाशबीन बनी रही। इस पुलिस के सामने ही चार गौंड वनवासियों को गोलियों से छलनी किया गया। घोरावल थाना पुलिस के अधीन वाले इस इलाके में पुलिस तब पहुंची, जब हत्यारे नरसंहार कांड रचने के बाद सुरक्षित स्थानों पर पहुंच गए। घटना के बाद मौके पर कोई प्रशासनिक अफसर नहीं गया। सत्तारूढ़ दल के किसी नेता ने भी शोक संवेदना व्यक्त करने की जरूरत नहीं समझी। अलबत्ता पुलिस नरसंहार कांड की अगुआई करने वाले ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के घर की सुरक्षा करती नजर आई। इस मामले में घोरावल पुलिस तो कटघरे में थी ही, सोनभद्र के एसपी और डीएम भी कम कसूरवार नहीं।
    अब से पहले इतने संवेदनहीन अफसर सोनभद्र में कभी नहीं आए थे। मिर्जापुर के कलेक्टर रहे एक आईएएस अफसर प्रभात कुमार मिश्रा ने आदिवासियों की जमीन हथियाई और बाद में उसे भू-माफिया के हाथ बेच दिया। साल 1955 से मुकदमा लड़ रहे गौंड वनवासियों को न्याय नहीं मिला। जमीन राजा बड़हर की थी और बाद में वह ग्राम सभा की हो गई। रिश्वतखोर अफसरों ने योजनाबद्ध ढंग से उनकी जमीन भू माफिया के हवाले कर दी। हैरान कर देने वाली बात यह है की वनवासियों से उनकी जमीन छीनने के लिए दर्जनभर गौंड लोगों को गुंडा एक्ट में निरुद्ध किया गया और उन्हें जिलाबदर भी करवा दिया गया। करीब 60 गौंड आदिवासियों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए, जिसकी आड़ में पुलिस ने जमकर मनमानी की। पुलिस ने गौंड आदिवासियों को लूटा ही, महिलाओं की आबरू से खेला भी।
      नरसंहार कांड के बाद उभ्भा गांव में महिलाओं व बच्चों की चीत्कार दिल को छलनी कर देती है। इसे बेशर्मी कहें या हठधर्मिता, इन महिलाओं की चीख सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके नुमाइंदों को सुनाई नहीं दे रही है। हम तो अपने आंसू नहीं रोक पाए। भू माफियाओं ने जिन महिलाओं की मांग का सिंदूर पोंछ डाला, उनकी वेदना आप भी सुनिए, जरूर रो पड़ेंगे।
    इस बीभत्स नर संहार काण्ड ने अंग्रेजी सरकार के जनरल डायर के द्वारा किये गए जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें ताजा कर दी है।

(पीड़ितों की चीत्कार देखें इस वीडियो को किलिक करके
        https://youtu.be/couUk88xEIQ )

       एकलव्य मानव संदेश मृतकों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करते हुए, इतना ही कहना चाहता कि यह देश निश्चित ही गृह युद्ध के तरफ बढ़ रहा है और सामंतवादी मानसिकता प्रबल हो रही है । संविधान और लोकतंत्र की हत्या आम हो चुकी है। न्याय मिलना मुश्किल है और गरिबों के लिए न्याय है ही नहीं वरना इतना बढ़ा नरसंहार होने पर भी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठी।