नुकसान तो जातियों के बंटवारे से हुआ है

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश (Aligarh, Uttar Pradesh), एकलव्य मानव संदेश (Eklavya Manav Sandesh) ब्यूरो रिपोर्ट, 4 अगस्त 2019। इस समय पिछड़ा समाज जातियों एवं धर्मों में बिखरा पड़ा है। उन्हें विभिन्न खेमों में बांटकर बिखरे समाज का और बिखराव किया जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि इस वर्ग की विभिन्न जातियां इसकी सामाजिक व्यवस्था बनाए बिना राजसत्ता प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। समाज को तैयार किए बिना शासन सत्ता की तैयारी कैसे हो सकती है? पिछड़ा वर्ग, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग शामिल है, अपना एक संगठित समाज न बनाकर विभिन्न जातियों में बिखरा पड़ा है। संविधान (अ. जा.) आदेश, 1950 के अनुसार 29 राज्यों में अनुसूचित जाति की 1,108 जातियां है। ऐसे ही 22 राज्यों में अनुसूचित जनजातियाों की 744 जातियां है। अन्य पिछड़ा वर्ग की 5,013 जातियां है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की आबादी 124.70 करोड़ यानी 125 करोड़ है। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 16.6 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 8.6 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 52.01 फीसदी है। इस आधार पर अनुसूचित जाति की आबादी 20 करोड़, 75 लाख, अनुसूचित जनजाति की आबादी 10 करोड़ 75 लाख तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 65 करोड़ है। इन तीनों वर्गों की आबादी को उनकी जातियों से भाग करके जाति के मुताबिक औसत आबादी प्राप्त होती है, जो इस प्रकार है-अनुसूचित जाति की औसत जातिवार आबादी 1 लाख 87 हजार, अनुसूचित जनजाति की औसत जातिवार आबादी 1 लाख 44 हजार और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातिवार औसत आबादी 1 लाख 30 हजार। इस विश्लेषण से यह तथ्य सामने आता है कि इन तीनों समूहों का जातियों में बंटना इन्हें सत्ता की कुर्सी तक नहीं पहुंचा सकता। समाज में देखने से पता चलता है कि जो भी जाति कुछ समर्थ हुई, वह अपनी जाति का संगठन बना लेती है। ब्राह्मणवादी शोषणकारी व्यवस्था यही तो चाहती है कि ये समूह वर्ण न बनकर जातियों में बटें रहें और ब्राह्मणवाद का समर्थन करते रहें।
      इस समस्या के एक दूसरे पहलू पर प्रकाश डालते हैं। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, ब्राह्मण की, जिसमें भूमिहार भी शामिल हैं, आबादी में हिस्सेदारी 5.52 प्रतिशत थी। अब तो यह और भी ज्यादा होगी। लेकिन इस प्रतिशत पर इस वर्ण की आबादी 2011 की जनगणनानुसार 6.9 करोड़ है। चूंकि ब्राह्मण जातियों में नहीं बंटा है, इस कारण इसकी आबादी 6.9 करोड़ हो गई। जबकि जातियों में बंट जाने के कारण अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की औसत आबादी दो लाख से कम बैठती है। ऐसे में, पिछड़ा वर्ग इस वर्ण से कैसे प्रतियोगिता कर सकता है? सबसे ऊपर का वर्ण ब्राह्मण जागरूक है। जबकि सबसे नीचे का वर्ण यानी दलित जागरूक है। ब्राह्मण वर्ण जागरूक है, तो सत्ता में भी है। मान्यवर कांशीराम के समय दलित जागरूक हुआ था, तो वह भी सत्ता में था और अब भी सत्ता में आने के प्रयास में है। यानी वर्ण व्यवस्था की सीढ़ी में सबसे ऊपर का वर्ण ब्राह्मण एवं वर्ण व्यवस्था से बाहर का समूह यानी दलित जागरूक हैं और अपने उद्देश्य के लिए जातियों को संगठित कर रहे हैं।
      समाज को सत्ता के द्वार पर लाने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं-(1) सत्ता की मांग या आवश्यकता, (2) सत्ता के लिए इच्छा, (3) शक्ति या ताकत। जिस वर्ण में सत्ता की मांग होगी, उसके साथ इच्छाशक्ति भी होगी और वही शासन करेगा। जो वर्ण उसके साथ जुड़े हैं, वे भी सत्ता का मजा लेंगे। सत्ता को बरकरार रखने के लिए वह समाज में विभिन्न हार्डवेयर अर्थात संरचनात्मक विकास एवं सॉफ्टवेयर अर्थात मानसिक विकास भी विकसित करेगा। ब्राह्मण वर्ण को सत्ता में रहने के लिए शक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दी। समय के अनुसार उसकी सामाजिक संगठन व्यवस्था में मजबूती आ रही है। ब्राहमण।
    (4 अगस्त 2019 को अमर उजाला समाचार पत्र में प्रकाशित महिपाल के इस लेख को साभार प्रकाशित किया गया है)